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काश! जनप्रतिनिधियों की जुबान पर चढ़ता प्रेक्षागृह
भागलपुर: पिछले 20 वर्षों से शहर के संस्कृतिकर्मी प्रेक्षागृह के सवाल को उठाते रहे हैं. नुक्कड़ बैठक से लेकर परचा वितरण, हस्ताक्षर अभियान, धरना आदि कार्यक्रम लगातार चलाते रहे और कई बार जिला प्रशासन को स्मार पत्र सौंपते रहे हैं, लेकिन आज तक इस मामले में प्रगति शून्य है. जिला प्रशासन इस मामले में पूरी […]
भागलपुर: पिछले 20 वर्षों से शहर के संस्कृतिकर्मी प्रेक्षागृह के सवाल को उठाते रहे हैं. नुक्कड़ बैठक से लेकर परचा वितरण, हस्ताक्षर अभियान, धरना आदि कार्यक्रम लगातार चलाते रहे और कई बार जिला प्रशासन को स्मार पत्र सौंपते रहे हैं, लेकिन आज तक इस मामले में प्रगति शून्य है. जिला प्रशासन इस मामले में पूरी तरह से संवेदनहीन बना है. विडंबना है कि भागलपुर के किसी जन प्रतिनिधि ने आजतक प्रेक्षागृह के सवाल को न तो उठाया है और न कभी यहां के संस्कृतिकर्मियों से इस विषय पर संवाद करने की कोशिश की.
कला केंद्र व शारदा संगीत सदन को संवारने की जरूरत : सांस्कृतिक संस्था परिधि के संस्कृतिकर्मी उदय का कहना है कि ध्वनि व प्रकाशयुक्त अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण एक प्रेक्षागृह का निर्माण हो या भागलपुर में कुछ ऐसे संस्थान शारदा संगीत सदन, कला केंद्र आदि हैं, उन्हें विकसित किया जाये. सरकार हस्तक्षेप करे. उसका स्वयं मैनेजमेंट संभाले और आम संस्कृतिकर्मियों को भागीदार बनाये. साहित्यकार देवेंद्र सिंह का कहना है कि शहर में एक अच्छा प्रेक्षागृह बने, वर्षों के प्रयास के बावजूद ऐसा कुछ नहीं हो पाया. कुछ ऐसा अवसर बना भी जैसे केंद्र सरकार ने रवींद्र भवन बनाने के लिए प्रस्ताव मांगा. यहां से प्रस्ताव भेजा भी गया, मामला अब तक अधर में है. कथाकार पीएन जायसवाल का कहना है कि भागलपुर में प्रेक्षागृह के नाम पर कुछ नहीं है. यहां के साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी व कलाकारों ने बार-बार प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधि से प्रेक्षागृह की मांग की है. धरना दिया, ज्ञापन सौंपा. बावजूद यहां के जनप्रतिनिधियों ने आज तक इसे अपने चुनावी एजेंडे में शामिल नहीं किया. युवा रंगकर्मी रितेश का कहना है कि हम रंगकर्मियों की यही अपेक्षा है कि जल्द से जल्द एक सुसज्जित प्रेक्षागृह बने. जहां पर सभी प्रकार के संसाधन उपलब्ध हो.
अंग सांस्कृतिक केंद्र बना है गोदाम
बड़ी संख्या में संस्कृतिकर्मियों की नयी पीढ़ी रिहर्सल से लेकर नाटक करने तक यहां-वहां की भाग-दौड़ लगाती रहती है. नाट्य गतिविधियों पर इसका सीधा असर पड़ रहा है. उन्हें अपनी क्षमता व योग्यता को प्रदर्शित करने का मौका ही नहीं मिल पाता है. प्रेक्षागृह के नाम पर जो अंग सांस्कृतिक केंद्र बना है, वह पूरी तरह से कबाड़ घर बन गया है. सैंडिस कंपाउंड स्थित ओपेन एयर थियेटर की स्थिति भी ठीक नहीं है. यहां पर भी समुचित व्यवस्था नहीं होने से बिजली के खंभे टूटते जा रहे हैं. रेलिंग टूटती जा रही है. यहां कभी-कभार नाम के सांस्कृतिक आयोजन हुए हैं.
काफी समृद्ध रहा है सांस्कृतिक इतिहास
दिशा संस्था के रंगकर्मी चंद्रेश का कहना है कि भागलपुर की काफी समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास रहा है. शरत से बनफूल तक की लंबी परंपरा है. नाटक के क्षेत्र में भी इस शहर की अपनी पहचान रही है. यहां के रंगकर्मियों ने शहर से बाहर जाकर नाम रोशन किया है, लेकिन दुर्भाग्य है कि कमिश्नरी मुख्यालय होने के बाद व सांस्कृतिक गतिविधि का केंद्र होने के बावजूद शहर में एक सुसज्जित प्रेक्षागृह का न होना चिंता का विषय है. यहां के किसी जनप्रतिनिधि ने इसकी सुधि नहीं ली.
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