भागलपुर : मां की बुलंद हौसलों की कहानी है सिंह परिवार की. जिच्छो निवासी वीणा सिंह पर मुसीबतों का पहाड़ तब टूट पड़ा जब उनके पति की मृत्यु 1994 में हो गयी. उनके पति का सिल्क का कारखाना था.
चार बच्चों की जिम्मेवारी उनके सिर पर आ गयी. लेकिन विपरीत परिस्थिति में भी उन्होंने संघर्ष की धार नहीं खोने दी. तीन बेटियां और एक बेटे की जिम्मेवारी कोई आसान बात नहीं थी. आस पड़ोस व समाज के लोग बेटियों की जल्दी शादी करने की सलाह देते थे. वीणा सिंह कहती हैं कि मैं खुद मैट्रिक पास थी. इतनी कम योग्यता के कारण कहीं नौकरी नहीं मिली.
मैं अपने सभी बच्चों को ऊंची शिक्षा देने का फैसला किया. फैक्टरी का लोन चुकाने के लिए सारे गहने बेचने पड़े. पर बच्चों पर इसकी आंच नहीं आने दिया. जो भी थोड़े बहुत खेती से पैसे आते उसे घर व बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करती. वो कहती हैं जब पति की मृत्यु हुई उस समय बेटा मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था.
उसने भी मेरा साथ दिया. हालांकि बेटे की मेडिकल की पढ़ाई छूट गयी. पर आज बेटा बिजनेस बखूबी संभाल रहा है. बड़ी बेटी ने बीएड कर लिया है. मंझली बेटी सिविल सर्विस की तैयारी कर रही है. छोटी बेटी पेंटिंग के क्षेत्र में अच्छा कर रही है.
वीणा की छोटी बेटी विनीता कहती हैं कि अगर मां हमारी ढाल बन कर ना खड़ी होती तो पूरा परिवार बिखर जाता. आज मुझे अपनी मां पर गर्व है. मैं हर जन्म में उनकी बेटी बनना चाहती हूं. वीणा सिंह कहती हैं कि आज जब अपने बच्चों को देखती हूं तो पिछला सारा दुख भूल जाती हूं. मेरे बच्चे ही मेरी संपत्ति हैं.
– मोनिषा प्रांशु –