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रेशमनगरी की पहचान में वार्ड तीन का भी योगदान (वार्ड वाच की विशेषता वाली खबर)

-आधा से ज्यादा आबादी बुनकर वर्ग की संवाददाता, भागलपुर भागलपुर को विश्वपटल पर रेशम नगरी के रूप में जाना जाता है, तो इसमें चंपानगर के वार्ड तीन का भी योगदान है. वार्ड की आधी से ज्यादा आबादी कपड़ा बुनने का काम करती है. यहां तैयार रेशमी व मखमली कपड़े जब बिचौलियों के रास्ते विदेश पहुंचते […]

-आधा से ज्यादा आबादी बुनकर वर्ग की संवाददाता, भागलपुर भागलपुर को विश्वपटल पर रेशम नगरी के रूप में जाना जाता है, तो इसमें चंपानगर के वार्ड तीन का भी योगदान है. वार्ड की आधी से ज्यादा आबादी कपड़ा बुनने का काम करती है. यहां तैयार रेशमी व मखमली कपड़े जब बिचौलियों के रास्ते विदेश पहुंचते हैं, तो उन कपड़ों में सिल्क सिटी की खुशबू बरकरार रहती है. लेकिन जिन मेहनतकश बुनकरों के हाथ उन्हें तैयार करते हैं, उनके हाथ महज मामूली मजदूरी रह जाती है. सीधा बाजार उपलब्ध नहीं होने के कारण कर्ज लेकर धागा खरीदना और कपड़ा तैयार कर व्यापारी के हाथों कम कीमत पर बेच देना इनकी मजबूरी होती है. बुनकर बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण छोटे-बड़े नेताओं की सभा भी मसजिद के आसपास होती रहती है. बुनकरों के हित की बात की जाती है, लेकिन महज वोट की खातिर. प्रभात खबर की टीम से वार्ड तीन के लोगों ने जब अपना दुखड़ा साझा किया, तो कुछ ऐसी ही स्थिति सामने आयी. लोगों का साफ कहना है कि उन्हें हमेशा से वोट बैंक समझा जाता रहा. क्षेत्र के बुनकर पावरलूम व हैंडलूम बुनकर वर्ग में बांटे जाने के कारण आहत हैं. इसी आधार पर बुनकर अलग-अलग वर्ग में संगठन बना संघर्षरत हैं. वार्ड तीन में अधिकतर पावरलूम बुनकर हैं. हैंडलूम बुनकर के लिए को-ऑपरेटिव के जरिये सरकारी मदद मिलती है, लेकिन पावरलूम बुनकर इससे महरूम रह जाते हैं.

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