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जान दे देंगे, खेत नहीं देंगे

-सफदर की याद में ‘रंग-ए-मजमा’ के दूसरे दिन हुआ नाटक, गोष्ठी व लोकार्पण-कंपनी बहादुर’ नाटक में दिखी किसानों की त्रासदीसंवाददाताभागलपुर : वे हमारा खेत छीन लेंगे, हम मना कर रहे थे, हम नहीं देंगे, जान दे देंगे, लेकिन खेत नहीं देंगे…..मंच पर अंधेरा, खाट पर लेटा धन्नू नींद में ही बड़बड़ा रहा है. आलय के […]

-सफदर की याद में ‘रंग-ए-मजमा’ के दूसरे दिन हुआ नाटक, गोष्ठी व लोकार्पण-कंपनी बहादुर’ नाटक में दिखी किसानों की त्रासदीसंवाददाताभागलपुर : वे हमारा खेत छीन लेंगे, हम मना कर रहे थे, हम नहीं देंगे, जान दे देंगे, लेकिन खेत नहीं देंगे…..मंच पर अंधेरा, खाट पर लेटा धन्नू नींद में ही बड़बड़ा रहा है. आलय के बैनर तले राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस पर सैंडिस कंपाउंड के मुक्ताकाश परिसर में आयोजित रंग-ए-मजमा कार्यक्रम के दूसरे दिन सोमवार को किसानों की त्रासदी दिखाती नाटक ‘कंपनी बहादुर’ का मंचन हुआ. डॉ देवेंद्र सिंह लिखित व रंगकर्मी मदन द्वारा निर्देशित यह नाटक भूमि अधिग्रहण पर चोट करता दिखा. नाटक में नाचारी, निरगुन व भोरहर गीत ने किसानों की पीड़ा को मंच पर झोपड़ी के सेट के साथ और जीवंत कर दिया. मुख्य भूमिका में चैतन्य प्रकाश, ओम सुधा, सूरज, विक्रम के अलावे राजेश झा, रंजीत व अमन आर्यन ने भी भूमिका निभायी. इससे पहले मुक्ति निकेतन, घोघा की नाट्य मंडली ने ‘देश आगे बढ़ाओ’ नाट्य प्रस्तुति दी. नुक्कड़ रंगयात्रा पर विशेष बुलेटिन का लोकार्पण किया गया.नुक्कड़ नाटक की दशा व दिशा पर रंगकर्मी चंद्रेश, देवेंद्र सिंह, विनय, दीपू, मनोज, श्रीकांत, कपिलदेव, मिथिलेश, अजय, दिवाकर, रिंकू आदि ने विचार व्यक्त किये. वक्ताओं ने कहा कि नुक्कड़ नाटक का शिल्प सशक्त होने के कारण अब निजी कंपनियां भी उत्पाद व सेवा प्रचार में इसका प्रयोग कर रही है. कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन आलय के अध्यक्ष मनोज कुमार सिंह ने किया.

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