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गांगेय डॉल्फिन की कैसे हो रही सुरक्षा

– न मोटर वोट, न डॉल्फिन मित्र, खर्च के नाम पर आवंटन का रोना – घटना के बाद ही सजग होता है वन विभाग, छापेमारी में जब्त होते हैं जालवरीय संवाददाता,भागलपुर गांगेय डॉल्फिन की सुरक्षा के नाम पर वन विभाग के पास न मोटर वोट है न ही डॉल्फिन मित्र. पेट्रोलिंग के नाम पर आवंटन […]

– न मोटर वोट, न डॉल्फिन मित्र, खर्च के नाम पर आवंटन का रोना – घटना के बाद ही सजग होता है वन विभाग, छापेमारी में जब्त होते हैं जालवरीय संवाददाता,भागलपुर गांगेय डॉल्फिन की सुरक्षा के नाम पर वन विभाग के पास न मोटर वोट है न ही डॉल्फिन मित्र. पेट्रोलिंग के नाम पर आवंटन का रोना यहां के अधिकारी रोते हैं और डॉल्फिन की मौत हो जाती है. नतीजतन जब भी डॉल्फिन के मौत की घटना सामने आती है, तो विभाग दो-चार दिनों तक छापेमारी अभियान चलाता है. इस दौरान चंद मछली पकड़ने के जाल जब्त कर अपने कर्तव्यों को पूरा कर खुद ही अपनी पीठ थपथपा लेता है. जानकारी के अनुसार गंगा में अभी भी छोटे-बड़े जाल धड़ल्ले से डाले जा रहे हैं और विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा है. विभाग के अधिकारियों की मानें तो उनके पास वनपाल से लेकर अन्य कर्मचारियों व संसाधनों का अभाव है. इसके चलते दैनिक कार्यों के निष्पादन में भी परेशानी आती है. 10 दिन पूर्व डॉल्फिन की मौत के बाद डीएफओ ने राज्य सरकार से डॉल्फिन की सुरक्षा के लिए आवंटन भेजने का अनुरोध किया था, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं किया गया है. रेंज अधिकारी बीपी सिन्हा कहते हैं कि छापेमारी के दौरान जाल पकड़े गये थे और केस भी दर्ज किया गया है. आगे भी अभियान जारी रहेगा. कोटमैनेजमेंट प्लान बनाने का जिम्मा जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को दिया गया है, लेकिन अब तक प्लान नहीं तैयार हो सका है. प्लान बन जायेगा, तो सालाना बजट तय हो जायेगा और उस अनुपात में काम होगा. डीएफओ ने आवंटन मांगा था. उन्हें कैंपा योजना में बचे तीन लाख 87 हजार रुपये दिये गये हैं. फिलहाल उसी पैसे से काम चलाने को कहा गया है.एके पांडेय, क्षेत्रीय वन संरक्षक

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