भागलपुर: विधानसभा चुनाव में अभी एक साल की देरी है, लेकिन पुराने जनता दल परिवार में एका की कवायद के बाद कोसी व पूर्व बिहार की राजनीति का पारा चढ़ने लगा है.
राज्य में सत्तारूढ़ जनता दल (यू) अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए संपर्क यात्र कर रहा है. कोसी व पूर्व बिहार की 62 विधानसभा सीटों में से अभी 34 पर जदयू व 19 पर भाजपा का कब्जा है, जबकि कांग्रेस व राजद के खाते में क्रमश: पांच व तीन सीटें हैं. एक सीट निर्दलीय के पास है. 2010 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 2015 के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक समीकरण बदला हुआ है. 2010 में जदयू-भाजपा एक साथ थे, तो इस बार दोनों अलग हैं. भाजपा के साथ लोजपा व रालोसपा है.
पुराने जनता दल के फिर से एक होने या करने की कवायद के बीच राजग ने भी कोसी व पूर्व बिहार के विभिन्न जिलों में अपनी राजनीतिक गतिविधियां बढ़ा दी है. खास कर भाजपा को इस क्षेत्र में जबरदस्त झटका लगा था. नयी सीट पर कब्जा तो दूर अपनी सभी जीती हुई सीट भी गंवा दी. अगर पुराना जनता दल एक हो जाता है, तो कांग्रेस का रुख क्या होगा इस पर राजनीतिक पंडित नजर गड़ाये हुए हैं. कांग्रेस के सभी विधायक इसी क्षेत्र से आते हैं. राजद के पास हालांकि सिर्फ पांच सीट ही है, लेकिन इस इलाके में वह एक बड़ी राजनीतिक ताकत है.
उसके सभी सांसद इसी क्षेत्र के हैं. जदयू से अलग होने के बाद भाजपा ने भी अपनी सांगठनिक क्षमता को मजबूत किया है. लोजपा व रालोसपा का साथ मिलने के बाद उसकी भी ताकत बढ़ी है. उप चुनाव कांग्रेस, राजद व जदयू ने साथ मिल कर लड़ा था. इसका लाभ भी मिला. उपचुनाव में भाजपा को अपनी दो सीटें गंवानी पड़ी. कोसी में राजद सांसद पप्पू यादव एक मजबूत राजनीतिक ताकत हैं. इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अपने संगठन युवा शक्ति के जरिये वो क्षेत्र में अपनी पैठ और मजबूत कर रहे हैं. अगर जदयू व राजद एक होंगे तो वो इस क्षेत्र में और मजबूत होंगे. दोनों दलों के जातीय वोट बैंक का भी यहां बड़ा आधार है. पर टक्कर में राजग के घटक दल रालोसपा का भी जातीय आधार यहां मजबूत है. हर दल व गंठबंधन में विधानसभा का टिकट पाने की जुगत में संभावित दावेदार अभी से जुट गये हैं. भाजपा जहां सत्ता पाने की कोशिश कर रही है, वहीं जदयू कब्जा बरकरार रखने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा. टिकट के सबसे अधिक दावेदार भाजपा में हैं. एका के बाद या गंठबंधन जारी रहने के बीच टिकट बंटवारे का आधार क्या होगा यह अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन राजनीति के बनते-बिगड़ते समीकरण के बीच राजनीतिक पारा चढ़ रहा है. झारखंड व जम्मू-कश्मीर का चुनाव परिणाम बहुत हद तक राजनीतिक समीकरण को प्रभावित करेगा.