भागलपुर: तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में अराजकता का माहौल है. छात्रों व शिक्षकों की भी मानें तो विश्वविद्यालय अपना मूल स्वरूप व उद्देश्य से भटक चुका है. हर दो-चार दिनों में छात्र संगठन आंदोलन कर रहे हैं. कभी तालाबंदी हो रही है, कभी धरना प्रदर्शन, तो कभी पुतले जलाये जा रहे हैं.
परीक्षा विभाग समय पर न तो परीक्षा ले पा रहा है और न ही रिजल्ट प्रकाशित कर पा रहा है. सात जिलों में फैले महाविद्यालयों के मुख्यालय की इस विकट परिस्थिति पर कुलपति डॉ एनके वर्मा से विभिन्न सवालों पर प्रभात खबर ने बातचीत की. डॉ वर्मा ने सभी सवालों का जवाब बेबाकी से दिया. यदि इन समस्याओं पर निराकरण की दिशा में बिंदुवार कदम बढ़ाया जाये, तो विवि का माहौल जरूर बदलेगा.
सवाल : विश्वविद्यालय में मूल समस्या क्या है.
जवाब : मेरी समझ में विश्वविद्यालय की मूल समस्या शिक्षकों व कर्मचारियों की अपर्याप्त संख्या है. छात्रों की संख्या निरंतर बढ़ रही है. विश्वविद्यालय में कई नये पाठ्यक्रम की पढ़ाई हो रही है, लेकिन शिक्षकों व कर्मचारियों की नियुक्ति छात्र संख्या के अनुपात में नहीं हो रही है. प्रति वर्ष कई शिक्षकों व कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के कारण छात्र व शिक्षक-कर्मचारियों के अनुपात में गिरावट जारी है. यह विश्वविद्यालय की गंभीर समस्या है. दूसरी समस्या छात्र संगठनों द्वारा विश्वविद्यालय के प्रशासनिक कार्यो में हस्तक्षेप व निर्देशात्मक रवैया में वृद्धि है. तीसरी समस्या शिक्षक, कर्मचारी व छात्रों में अपने दायित्वों के प्रति उदासीनता व कर्तव्य के प्रति समर्पण का अभाव है.
सवाल : खास कर परीक्षा व रिजल्ट क्यों विवाद का कारण बनता है, जबकि यह एक सामान्य प्रक्रिया है.
जवाब : परीक्षा शिक्षण प्रक्रिया का अभिन्न अंग है, पर लंबे अंतराल पर परीक्षण की व्यवस्था इसके प्रति सहजता का भाव खत्म कर देता है. छात्रों की नजर में यह बहुत महत्वपूर्ण व जिंदगी का सवाल बन जाता है, जबकि ऐसी बात नहीं है. परीक्षा को लेकर विवाद दो कारण से उत्पन्न होता है. पहला जब पढ़ाई नहीं हो और परीक्षण की बात की जाती है. दूसरा यह कि मूल्यांकन प्रक्रिया में अनियमितता व पक्षपात का समावेश. कई कारणों से परीक्षा समय पर आयोजित नहीं हो रही है या पाठ्यक्रमों के पूर्व ही आयोजित किये जा रहे हैं, जो विवाद का कारण है. परीक्षार्थियों की बढ़ी संख्या व उनके उत्तर पुस्तिकाओं को जांचने के लिए परीक्षकों की भारी कमी है. कम समय में उत्तर पुस्तिकाओं को जांचने के लिए नवनियुक्त शिक्षकों को भी जोड़ा जा रहा है, जिनसे मूल्यांकन का कार्य संतोषप्रद नहीं हो रहा है. अनुभवहीनता के कारण परीक्षकों पर पक्षपात का आरोप लगता है और मूल्यांकन कार्य में अतिरिक्त समय लगने के कारण परीक्षाफल के प्रकाशन में विलंब हो जाता है. स्वाभाविक विलंब को संदेहात्मक मानते हुए भी सवाल उठ रहे हैं. कुछ निजी एजेंसियों व बिचौलियों की भूमिका भी विवाद के कारणों में एक माना जा सकता है.
सवाल : भागलपुर शैक्षणिक दृष्टि से हब है. यहां बाहर के बच्चे दूसरे राज्य से पढ़ने के लिए आते हैं. वह क्यों कुछ लोगों के चंगुल में फंस रहे हैं.
जवाब : भागलपुर पूर्व बिहार का शैक्षणिक हब है, लेकिन यह कुछ दक्ष शिक्षकों पर अधिक निर्भरता के कारण बदनाम हो रहा है. कुछ शिक्षक कई संस्थाओं से जुड़ गये हैं. संस्थाएं उन पर आश्रित प्रतीत हो रही है. इन शिक्षकों का एक नेटवर्क तैयार हो चुका है, जिसके कारण छात्र इनके चंगुल में फंस रहे हैं. अगर बाहर से दक्ष शिक्षकों को लाया जाये और उन्हें आने-जाने व अन्य सुविधाएं दी जाये, तो नेटवर्क कमजोर हो जायेगा और छात्र उनके चंगुल में फंसने से बच सकते हैं.
सवाल : क्या विश्वविद्यालय आंतरिक राजनीति का शिकार हो रहा है.
जवाब : मैं ऐसा महसूस करता हूं, क्योंकि दबे व मुखर स्वर में किसी निर्णय का विरोध किसी न किसी वर्ग द्वारा होना इसका संकेत देता है.
सवाल : शैक्षणिक व्यवस्था बहाल हो, इसके लिए आपकी नजर में क्या होना चाहिए.
जवाब : शिक्षकों व कर्मचारियों की नियुक्ति शैक्षणिक व्यवस्था बहाल करने में मददगार होगी. साधनों के अनुरूप ही महाविद्यालयों में छात्रों का नामांकन सुनिश्चित करना भी शैक्षणिक व्यवस्था को स्वस्थ बना सकता है. सीटों में वृद्धि, समुचित व्यवस्था किये बिना करना शैक्षणिक जगत में अराजकता की स्थिति के लिए उत्तरदायी है. ऐसा मैं समझता हूं.
सवाल : एसएम कॉलेज जैसे मामले क्या किसी खास रणनीति के कारण हुआ है.
जवाब : एसएम कॉलेज में प्राचार्य द्वारा नामांकन की सभी पहलू को जांच कमेटी की रिपोर्ट में प्रस्तुत न करना और केवल आरक्षण की नीति के कतिपय उदाहरणों के तथ्यों के आधार पर उद्धृत करना यानी कुछ तथ्यों का उल्लेख न करना प्रकाश में आया है. इसलिए एसएम कॉलेज प्रकरण किसी खास रणनीति का कारण हो सकता है.
सवाल : इस विश्वविद्यालय का कोई कुलपति क्यों नहीं छात्रों, शिक्षकों व कर्मियों को भा रहे हैं.
जवाब : निजी स्वार्थ की सिद्धि व वर्चस्व में वृद्धि के लिए विश्वविद्यालय में सक्रिय विभिन्न संगठन कुलपति पर दबाव डालते हैं. कुलपति के लिए सभी को खुश रखना संभव नहीं है. सबों की दुकानदारी चलती रहे, जिसमें कुलपति का सहयोग न मिलने से इन संगठनों की नजर में कुलपति पक्षपाती, भ्रष्ट, निकम्मा, अयोग्य घोषित किये जा रहे हैं. सच्ची बात यह है कि दुकानदारी व आमदनी में कमी के कारण इन वर्गो को कुलपति नहीं भा रहे हैं.