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भागलपुर : कभी ताली बजा कर, तो कभी गंदगी से बच पूरी की यात्रा
ब्रजेश, भागलपुर : साहेबगंज-दानापुर इंटरसिटी से बुधवार (19 दिसंबर) की पटना तक की यात्रा यादगार रही. ट्रेन के इकलौते एसी बोगी की हालत कहीं से एसी कहे जाने लायक नहीं थी. मजबूरी में यात्रा करने को विवश यात्री अगर इसके लिए रेल को कोस रहे थे तो आम यात्रियों को भी कम बददुआ नहीं दे […]
ब्रजेश, भागलपुर : साहेबगंज-दानापुर इंटरसिटी से बुधवार (19 दिसंबर) की पटना तक की यात्रा यादगार रही. ट्रेन के इकलौते एसी बोगी की हालत कहीं से एसी कहे जाने लायक नहीं थी. मजबूरी में यात्रा करने को विवश यात्री अगर इसके लिए रेल को कोस रहे थे तो आम यात्रियों को भी कम बददुआ नहीं दे रहे थे.
सबसे पहले तो भागलपुर रेलवे स्टेशन के चार नबंर प्लेटफाॅर्म पर एसी बोगी तलाशना ही अपने आप में जोखिम भरा काम था. प्लेटफाॅर्म पर बोगियों के लिए लगे इलेक्ट्रोनिक संकेतक काम नहीं कर रहे थे.
सब तरह तरह की भाषा में कुछ बता रहे थे. ट्रेन के आने की घोषणा के बाद दौड़ कर जब उस प्लेटफाॅर्म पर पहुंचा तो एसी बोगी कहां है यह जानने के लिए ट्रेन के आने के इंतजार करना पड़ा. जब ट्रेन आयी तो लंबी दौड़ लगाने के बाद एसी बोगी में घुसा.
बोगी में जितने टिकटधारी थे, लगभग उतने या उससे कुछ कम ही बेटिकट भी थे. मेरे बगल के सज्जन से जब टीटीइ ने टिकट के संबंध में पूछा तो गुटखा भरे मुंह से कुछ गुलगुलाते हुए उन्होंने जो कहा उससे मैं तो इतना ही समझ पाया कि भइया वो रोज जाते हैं और अगले किसी स्टेशन पर वो उतर जायेंगे.
टीटीइ ने भी जिस भाव भंगिमा से सिर हिलाया उससे लगा कि क्या तालमेल है, तू भी मस्त मैं भी मस्त भाड़ में जायें लाइन में लग कर या कई दिन पहले टिकट बुक करानेवाले यात्री.
मच्छरों ने तालियां बजवायी
नाना पाटेकर याद आ गये जब ट्रेन के खुलते ही मच्छरों ने जब काटना शुरू कर दिया. सब ताली बजा कर मच्छर मार रहे थे. कोई किसी से शिकायत की मूड में नहीं था मानो सब चलता है भाई. सीटों की स्थिति भी मन को खुश करनेवाली नहीं थी.
बाथरूम जाने के नाम से रूह कांपा
भागलपुर से पटना तक की दूरी तय करने मे कई बार बाथरूम जाने की जरूरत महसूस हुई, पर जब भीतर गया उल्टी होते-होतेे बची. बोगी के इकलौते इटालियन बाथरूम का कंबोड टूटा हुआ था.
न ही वाश करने के लिए शावर था और न ही मग. जगह भी इतनी कम की घुसने में परेशानी हो रही थी. ऊपर से गंदगी का भरमार.
अन्य इटालियन शौचालयों में भी गंदगी का अंबार था. गाड़ी के चलने लगनेवाले झटका से लेट्रिन बाहर निकल रहा था. हाथ धोने के लिए रखनेवाले हैंडवाश का पौट किसी ने तोड़ दिया था. बदबू की तो कोई चर्चा भी बेमानी होगी.
पान के पिक से भरा था कोना : बोगी के बाहर दोनों शौचालयों के बीच में शटर और बोगी की दीवाल पर लोगों ने पान की पिचकारी से अच्छी नक्कासी की थी. एक परत पान का पिक.
हथौड़ी भी ले गये : आपातकाल में बोगी का शीशा तोड़ने के लिए बोगी में शीशे में बंद हथौडी भी लोग शीशा तोड़ कर ले गये.
क्या है कारण
यह ट्रेन साहेबगंज से खुलती है. भागलपुर में कोई भी काम नहीं किया जाता है. नियमत: मच्छर मारनेवाली दवा का भी छिड़काव नहीं किया जाता बाथरूम देखने की बात ही दूर है. बस गाड़ी रुकी और खुली इतनी सा कर्तव्य का पालन कर सब शांत हो जाते हैं.
दूसरी ओर इसमें बेटिकट चलनेवालों को रोकने के लिए अब तक कुछ नहीं किया गया है. ऐसे यात्रियों को भी कोई मतलब रहता नहीं है. उनको तो बस अपने गंतव्य से मतलब है. इस कारण भी सब गड़बड़ है.
इस शौचालय में जा कर तो बीमार हो जायेंगे
साथ में यात्रा कर रहे मुंबई के रमेश जैन कहते हैं कि वो भागलपुर से जा रहे हैं. अहले सुबह उनकी फ्लाइट है. इस कारण इस ट्रेन को पकड़ना मजबूरी है, पर ऐसे शौचालय और सीट से परेशान हैं. कहते हैं कि शौचालय जाने से बीमारी हो जायेगी. कई महिलाएं ऐसी थीं जो परेशान थीं.
क्यों नहीं चेक करते सब
लोगों का कहना था रेलवे को चाहिए कि कम से कम एक बार सभी बोगियों की जांच करे. कम से कम शौचालय साफ हो . मकड़े का जाला तो नहीं हो.
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