भागलपुर: बड़ा, ऐतिहासिक व घनी आबादी वाला शहर होने के बावजूद यहां स्वास्थ्य सेवाओं की समुचित व्यवस्था का अभाव खटकता है. वह भी तब जब यह स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे का गृह शहर है. कहने को यहां तो मेडिकल कॉलेज व सदर अस्पताल दोनों है, लेकिन सदर अस्पताल केवल नाम का ही है. समुचित आधारभूत संरचना के बावजूद इस अस्पताल में स्वास्थ्य संबंधी व्यवस्था का घोर अभाव है.
इस वजह से शहर के मरीजों का सबसे अधिक दबाव मेडिकल कॉलेज पर पड़ता है. सदर अस्पताल में चिकित्सा सुविधा के नाम पर केवल प्रसव व परिवार नियोजन की ही व्यवस्था है. आउटडोर तो चलता है, लेकिन इसमें केवल सर्दी, खांसी व बुखार आदि की मामूली दवा दी जाती है. शहर के बीच स्थित होने के कारण इस अस्पताल की महत्ता और भी बढ़ जाती है. यदि यहां सुविधाओं व संसाधन में बढ़ोतरी कर दी जाये, तो लोगों को इसका लाभ मिलेगा. साथ ही मेडिकल कॉलेज पर भी दबाव काफी कम होगा.
स्टाफ नर्स व बेड की कमी से होती है परेशानी : सौ बेड की स्वीकृति वाले इस अस्पताल में वर्तमान में मात्र 30 बेड है. कमरा छोटा होने के कारण उसमें इतनी मशक्कत से बेड लगाया गया है कि मरीज व सफाई कर्मी दोनों को परेशानी होती है. गायनी वार्ड के दो कमरों में 12 बेड एवं प्रसव कक्ष के पास स्थित हॉल में 10 बेड तथा दूसरे हॉल में आठ बेड लगाये गये हैं. इस वजह से वार्ड में मरीजों को रखने में भी परेशानी होती है.
स्टाफ की भी कमी है. एक नर्स को 12 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ती है. प्रसव कक्ष में भी एक ही नर्स की ड्यूटी रहती है. ममता व आशा के सहयोग से प्रसव कराया जाता है. नतीजतन वार्ड में रहनेवाले मरीजों को ममता का सौ प्रतिशत लाभ नहीं मिल पाता. अगर अचानक ऑपरेशन की जरूरत पड़ जाये तो सभी चीजों को व्यवस्थित करने और चिकित्सक को बुलाने में करीब आधा से एक घंटा लग जाता है. तब कहीं जा कर ऑपरेशन किया जाता है.
सदर का दर्जा तो मिला पर नहीं मिली सुविधाएं
1989 के बाद जब जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल मायागंज में शिफ्ट हुआ तो यह अस्पताल बंद हो गया. उसके बाद 1991 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सुधा श्रीवास्तव के प्रयास से इसे सदर अस्पताल का दर्जा मिला. अस्पताल का उदघाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने किया था. उस वक्त अस्पताल में कुछ समय के लिए आउटडोर की सेवा दी जाती थी, पर कम चिकित्सक होने के कारण यह व्यवस्था नहीं के बराबर कारगर थी. इस बीच यह अस्पताल कहने को अस्पताल की भूमिका में रहा.
2003 में अस्पताल में प्रसव की व्यवस्था करायी गयी. जब अस्पताल में पहले बच्चे ने जन्म लिया तो यहां के कर्मचारियों और परिजनों की सहमति से बच्चे का नाम भारत रखा गया. 2004 में तत्कालीन सिविल सजर्न डॉ आरसी मंडल के कार्यकाल में प्रसव की संख्या बढ़ी. उसके बाद (एनआरएचएम) राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जब से शुरू हुआ प्रसव कराने वालों की संख्या में वृद्धि होती गयी. वर्तमान में 10 से 15 महिलाओं का रोजाना प्रसव कराया जाता है. डेढ़ साल पूर्व यहां ऑपरेशन भी शुरू किया गया. ऑपरेशन से माह में 10 से 20 महिलाओं का प्रसव कराया जाता है. इसके अलावा परिवार नियोजन का भी ऑपरेशन लगभग बीस महिलाओं का किया जाता है. आउटडोर में रोजाना पांच सौ मरीजों की जांच की जाती है.
23 लाख की लागत से अस्पताल के अंत: विभाग का जीर्णोद्धार किया गया था. जिसका उदघाटन 22 नवंबर 2006 को तत्कालीन कल्याण मंत्री रामेश्वर पासवान ने तत्कालीन सिविल सजर्न डॉ आरसी मंडल व जिलाधिकारी विपिन कुमार के कार्यकाल में किया था. इसमें तय किया गया था कि अस्पताल में 107 तरह की दवा दी जानी है. फिलहाल अस्पताल में 53 तरह की दवा दी जा रही है.
ये हैं सुविधाएं
पैथोलॉजी जांच नि:शुल्क
एक्सरे, अल्ट्रासाउंड
एचआइवी जांच
एसटीडी क्लिनिक (गुप्त रोग सलाह)
एचआइवी काउंसेलिंग
सामान्य व सिजेरियन प्रसव
मेडिको लीगल केस
एंबुलेंस
नियमित टीकाकरण
कुपोषित बच्चों के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र
2012-13 में अस्पताल का बजट
जेवीएसवाइ, परिवार नियोजन, ऑपरेशन सहित अन्य खर्च के लिए राज्य सरकार से 2012-13 में स्वीकृत राशि – 86 लाख 96 हजार 473
पोषण पुनर्वास केंद्र – 2012-13 में 35 लाख 4678 रुपये की राशि खर्च