निलेश
भागलपुर : भागलपुर शहर को सिल्क सिटी के नाम से प्रसिद्धि दिलाने वाला क्षेत्र नाथनगर और चंपानगर आज विकास का रोना रो रहा है. जिन बुनकरों से भागलपुर की पहचान है, उनकी बदहाली पूछने वाला कोई नहीं है. हर छोटे-बड़े नेता का स्वागत करने वाला चंपानाला पुल कब गिर कर ध्वस्त हो जाये, कहना मुश्किल है. लेकिन इसकी चिंता किसी को नहीं. कच्ची सड़कों व चचरी पुलों के जरिये शहर से जुड़े ग्रामीण इलाके को बाढ़ और सुखाड़ दोनों का दर्द है.
आयुर्वेदिक कॉलेज जैसे संस्थान खंडहर में तब्दील हो रहे हैं. बाजार सिमट कर संकुचित हो गया है. महिला शिक्षा, स्वास्थ्य, शौचालय जैसी आधारभूत सुविधाओं से लोग महरूम हैं. यहां एकमात्र महिला उच्च विद्यालय हैं, जहां क्षमता से ज्यादा छात्रएं हैं. नाथनगर की बदहाली दूर करने और यहां विकास कार्य करने के मुद्दे नेताओं के घोषणा-पत्र में शामिल नहीं हैं. उन्हें यहां रहनेवाले साढ़े तीन लाख मतदाताओं का वोट तो दिखता है, लेकिन विकास की बात हो तो केवल शहर ही ध्यान में रहता है.
स्वच्छ पेयजल : स्वच्छ जल के लिए ऑर्सेनिक व फ्लोराइड मुक्त जलापूर्ति योजना के लिए 2007-08 में सहमति मिली. छ: साल बाद लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के अंतर्गत 44.43 लाख की राशि स्वीकृत होने के बाद भी लोगों को बस इंतजार है. इसमें भागलपुर के बरारी, तिलकामांझी, इशाकचक आदि सहित नाथनगर भी शामिल है.
बावजूद इसके यहां के शहरी व ग्रामीण इलाके में लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं.
शौचालय योजना फेल : आजादी के 65 वर्ष बाद भी इलाके में घर-घर शौचालय की योजना साकार नहीं हो पायी है. महिलाओं के खुले में शौच को जाने से बीमारी तो फैलती ही है, साथ ही दुष्कर्म व छेड़छाड़ जैसी घटनाओं की आशंका भी रहती है. अन्य मुद्दों के साथ यह मुद्दा भी गौण है.