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अब नहीं बिकेगी देशी दारू

काफी दिनों तक रहेगा लोगों को इसका मलाल,शराबबंदी अभियान को लेकर शुरू हुई कार्रवाई बेगूसराय(नगर) : गांव हो या शहर सभी जगहों पर देशी दारू का असर देखने को अक्सर मिलता था. इसका इतना व्यापक रूप से असर था कि इसके बगैर कुछ खास वर्ग के लोग एक मिनट भी नहीं रह पाते. इसका असर […]

काफी दिनों तक रहेगा लोगों को इसका मलाल,शराबबंदी अभियान को लेकर शुरू हुई कार्रवाई

बेगूसराय(नगर) : गांव हो या शहर सभी जगहों पर देशी दारू का असर देखने को अक्सर मिलता था. इसका इतना व्यापक रूप से असर था कि इसके बगैर कुछ खास वर्ग के लोग एक मिनट भी नहीं रह पाते. इसका असर भी महज कुछ ही मिनटों में दिखाई पड़ने लगता था.
कई परिवार तो आज की तिथि में भी देसी दारू की चपेट में आकर भयंकर तबाही में जीने को विवश हो रहे हैं. ऐसे समय में बिहार सरकार द्वारा शराबबंदी की पूर्णरूपेण घोषणा से इन परिवारों के चेहरे पर भी मुस्कान की झलक दिखाई पड़ने लगी है.
एक अप्रैल से वीरान हो जायेगा कलाली :दारू के व्यवसाय से काफी लोग न सिर्फ मालामाल हो रहे थे, वरन बड़ी संख्या में मजदूर वर्ग के लोग इससे जुड़ कर अच्छी कमाई करते थे. ऐसे लोगों के चेहरे पर मायूसी देखी जा रही है. अब इन लोगों का क्या होगा यह तो आने वाले समय में ही देखा जा सकता है. फिलहाल इस व्यवसाय से जुड़े लोग अपना बोरिया-बिस्तर समटने में जुट गये हैं. ग्रामीण क्षेत्र में भी दारू का इतना प्रचलन अधिक बढ़ गया था कि लोग इसके बगैर रह नहीं पाते थे.
शराब के नशे में धुत्त होकर परिवार के साथ-साथ गांव या समाज में लड़ाई-झगड़ा होने के दौरान न सिर्फ हो-हंगामा का नजारा उत्पन्न होता था वरन नशे में आकर गंभीर घटना को अंजाम देने से भी नहीं चूकते थे.
अब नहीं दिखेगा देशी दारू का कमाल :शराब के बढ़ते प्रचलन के दौरान देशी दारू भी अपना कमाल दिखाने में पीछे नहीं रहता था. खेत में काम करने वाले मजदूर हों या फिर ठेला-रिक्शा खींचने वाले लोग इसके बगैर नहीं रह पाते थे. अहले सुबह से लेकर देर शाम तक इसका कमाल लोगों को देखने को मिल जाता था.गांव के परचुनिया दुकानों से लेकर बड़े-बड़े दुकानों में सुलभ रूप से यह मिल जाता था. इसकी चपेट में लोग इस तरह आ गये थे कि अगर पास में पैसे नहीं हैं तो घर का राशन भी बेच कर इसकी खरीदारी कर लेते थे. परिवार के लोगों के द्वारा अगर इसका विरोध किया जाता तो फिर शुरू हो जाता हो-हंगामा व नाटक . दारू संस्कृति ने सामाजिक ताना-बाना को पूरी तरह से छिन्न-भिन्न कर दिया था.
घर में महिलाओं का जीना होता था हराम :दारू के बढ़ते प्रचलन का अगर सबसे अधिक किसी के लिए परेशानी का सबब बनता था तो उसमें घर में रहने वाली भोली-भाली महिलाएं शामिल हैं. पुरुष वर्ग अगर घर में दारू के नशे में पहुंचते और अगर महिलाएं इसका विरोध करती तो महिलाओं पर ये नशेड़ी टूट पड़ते थे. कई बार तो इस तरह की परिस्थितियां भी सामने आयी जब ये महिलाएं ऐसे नशाबाज से परेशान होकर घर छोड़ कर चली जाती थी.
सरकार ने शराबबंदी का निर्णय लेकर न सिर्फ एक बार फिर इतिहास रचने का काम किया है वरन बड़ी संख्या में टूट रहे पारिवारिक रिश्ते को जोड़ने की दिशा में भी यह अभियान कारगर साबित होगा.
महिला संगठन हमेशा शराब के विरोध में आवाज बुलंद करते रहे हैं :बढ़ रहे शराब के प्रकोप और इस प्रकोप से आकर परेशान गृहिणियों को देख कर महिला संगठनों के द्वारा लगातार इसके विरोध में न सिर्फ आवाज बुलंद किया जाता रहा वरन बड़ी संख्या में महिलाओं को इससे जोड़ कर शराब भट्ठी, शराब की दुकानों पर झारू -डंडा के साथ प्रदर्शन करते हुए इसे ध्वस्त करने का भी काम किया. आज इसी का नतीजा है कि महिलाओं की आवाज को देख कर बिहार सरकार ने महिलाओं के सम्मान और सामाजिक संरचना को दुरुस्त बनाने के लिए करोड़ों के राजस्व को नजरअंदाज करते हुए ऐतिहासिक फैसला लिया है.
शराबबंदी अभियान की दिशा में जिला प्रशासन पूरी तरह तैयार :जिले में शराब पर पूर्णरूपेण अंकुश लगे,इसके लिए जिला प्रशासन के द्वारा पूरी तैयारी कर ली गयी है. जिला पदाधिकारी मो नौशाद युसूफ और आरक्षी अधीक्षक मनोज कुमार के द्वारा लगातार इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है. इसके लिए जागरूकता अभियान, रैली, जुलूस,दीवार लेखन व अन्य सूचनाओं के माध्यम से जिला प्रशासन और जिला पुलिस प्रशासन ने कोई कसर नहीं छोड़ रखी है.
इस अभियान पर पूर्णरूप से रोक लगाने में महज कुछ घंटे ही शेष रह गये हैं. देखना यह है कि सरकार के पूर्णरूपेण शराबबंदी अभियान को सफल बनाने में बेगूसराय जिला प्रशासन कहां तक कारगर सिद्ध हो पाता है.

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