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नीमहकीम के सहारे तीन लाख लोग

बेगूसराय/नीमाचांदपुरा : आम-अवाम को रोटी, कपड़ा और मकान के बाद स्वास्थ्य सेवाओं की खासी दरकार है. शासन-प्रशासन के स्तर पर समाज के आखिरी आदमी तक सहज स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने का संकल्प दर्शाया जाता है. लेकिन सरकारी तंत्र की उपेक्षा के चलते प्रखंड क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं खुद ऑक्सीजन पर चल रही हैं. आलम यह है […]

बेगूसराय/नीमाचांदपुरा : आम-अवाम को रोटी, कपड़ा और मकान के बाद स्वास्थ्य सेवाओं की खासी दरकार है. शासन-प्रशासन के स्तर पर समाज के आखिरी आदमी तक सहज स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने का संकल्प दर्शाया जाता है. लेकिन सरकारी तंत्र की उपेक्षा के चलते प्रखंड क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं खुद ऑक्सीजन पर चल रही हैं.

आलम यह है कि कई स्वास्थ्य केंद्रों को अब तक न तो अपना भवन है और न ही सृजित पदों के अनुरूप स्वास्थ्यकर्मी ही पदस्थापित किये गये हैं. नतीजा है कि बेगूसराय प्रखंड के दर्जनों गांवों की बड़ी आबादी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए दर-दर भटक रहे हैं. लगातार शिकायत के बाद भी इस दिशा में साकारात्मक पहल नहीं हो पाया है.

स्वास्थ्य केंद्रों को अपना भवन नहीं : सदर प्रखंड में छह-छह बेड वाले पांच अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है. परंतु एक मात्र मोहनपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को अपना भवन उपलब्ध नहीं है. जानकारी के अनुसार भेरवार पीएचसी आयुर्वेद अस्पताल भवन,विनोदपुर का पीएचसी पुस्तकालय व हैवतपुर पीएचसी पंचायत भवन में चल रहा है.
इन सभी केंद्रों पर दो डॉक्टर, फर्मासिस्ट, प्रशिक्षक, पुरू ष कक्ष सेवक, महिला कक्ष सेवक का एक-एक पद सृजित है. इतना ही नहीं इन केंद्रों पर ए ग्रेड नर्स, दो एएनएम, दो लिपिक एक चतुर्थवर्गीय कर्मचारी के एक पद सृजित है. किसी भी केंद्रों पर सृजित पदों के अनुरू प स्वास्थ्यकर्मी तैनात नहीं है. जिसका नतीजा है कि इलाज से पहले डॉक्टर रेफर की तैयारी करने लगते हैं. यहां पर बुनियादी सुविधाओं के नाम पर कोई व्यवस्था नहीं दिखती है. उपकेंद्रों का कोई ठौर-ठिकाना ही नहीं है.
वर्षों से मुखिया के दलान पर चलता है स्वास्थ्य उपकेंद्र : ऐसे तो अभी तक स्वास्थ्य उपकेंद्र पंचायत भवन या सामुदायिक भवन में संचालित होते देखा व सुना है. परंतु सदर प्रखंड के चिलमिल पंचायत में वर्षो से मुखिया के दलान पर उपकेंद्र संचालित किये जा रहे हैं. तुर्रा यह है कि मुखिया शंकर शर्मा के नेम प्लेट के बगल में स्वास्थ्य उपकेंद्र का बोर्ड टंगे देखकर हर कोई अंचभित रह जाते हैं. बताया जाता है कि अधिकारियों की लापरवाही के कारण जमीन उपलब्ध रहने के बाद भी अपना भवन नसीब नहीं हो पा रहा है.
उत्क्रमित मध्य विद्यालय चिलमिल के बगल में स्वास्थ्य उपकेंद्र का भवन निर्माण हेतू साढ़े तीन कट्ठा जमीन राज्यपाल के नाम से रजिस्टर्ड है. विभाग की लचर व्यवस्था के कारण उक्त स्वास्थ्य उपेंद्र पर दवाओं सहित कई बुनियादी सुविधाओं का भी घोर अभाव है. चिलमिल गांव की आबादी लगभग आठ हजार बताया जाता है.
इन लोगों की स्वास्थ्य सेवा यही उपेंद्र के जिम्मे है. स्वास्थ्य उपकेंद्र की स्थापना वर्ष 1980 में हुई थी. तब से आज की तारीख में भी शंकर शर्मा के दलान पर ही उपकेंद्र चल रहा है.
नीमहकीम के सहारे मरीजों की जिंदगी :जानकारों की माने तो प्रखंड में कई ऐसे पंचायत हैं जहां सरकारी स्वास्थ्य सेवा के नाम पर कोई चीज नहीं है. वजह है कि यहां के मरीजों की जिंदगी झोलाछाप यानि ग्रामीण चिकित्सकों के सहारे है.
सदर, डंडारी और नावकोठी की सीमा पर अवस्थित नीमा पंचायत में कहने को स्वस्थ्य उपकेंद्र है पर इसमें अधिकांश दिन ताले लटके रहते हैं. कुछ ऐसी ही बानगी चांदपुरा, कुसमहौत, परना, अझौर, रचियाही में देखी जा सकती है.
बताया जाता है कि सप्ताह में दो ही दिन एएनएम आती है. नेताजी चांदपुरा में 100 बेड वाले अस्पताल बनवाने की घोषणा कर चुनाव जीत कर एमएलए व एमपी बन जाते हैं लेकिन आज तक इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा में सुधार नहीं होना शासन और प्रशासन की उदासीनता को दर्शाता है.

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