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आये दिन सुनाई पड़ती है नक्सलियों की आहट
नक्सली संगठन के गंगा-गंडक एरिया का मध्य क्षेत्र माना जानेवाला बेगूसराय-समस्तीपुर व खगड़िया जिले की सीमाओं से सटे इलाके में वैसे भी आये दिन नक्सली गतिविधि की आहट सुनायी पड़ती है. क्षेत्र की भौगोलिक बनावट के चलते इसके सुदूर पूवरेत्तर व पूर्वी दक्षिणी सीमा क्षेत्र नक्सली का रेड कॉरीडोर के नाम से चर्चित रहा है. […]
नक्सली संगठन के गंगा-गंडक एरिया का मध्य क्षेत्र माना जानेवाला बेगूसराय-समस्तीपुर व खगड़िया जिले की सीमाओं से सटे इलाके में वैसे भी आये दिन नक्सली गतिविधि की आहट सुनायी पड़ती है. क्षेत्र की भौगोलिक बनावट के चलते इसके सुदूर पूवरेत्तर व पूर्वी दक्षिणी सीमा क्षेत्र नक्सली का रेड कॉरीडोर के नाम से चर्चित रहा है.
सदियों से लो लैंड व बाढ़ग्रस्त क्षेत्र होने से यह इलाका दुर्गम व पिछड़ा रहा है. नेपाल से लेकर मुंगेर की पहाड़ी तक के लगभग 100 किलोमीटर लंबे कॉरीडोर में मध्य क्षेत्र नक्सलियों के लिए सेफ जोन माना जाता है. गंगा-गंडक एरिया के समस्तीपुर-खगड़िया-बेगूसराय के इस मध्य क्षेत्र से अंतरराष्ट्रीय सीमा नेपाल तकरीबन 50 किलोमीटर व मुंगेर की पहाड़ी भी 50 किलोमीटर की दूरी में आंका जाती है.
नक्सली संगठन के द्वारा इसी सेफ जोन में शरण लेकर अपने संगठन विस्तार की कवायद को अंजाम देने की चर्चा होती रही है. यह दुरूह इलाका समस्तीपुर, सहरसा, खगड़िया व दरभंगा जिलों की सीमाओं से लगता है. क्षेत्र से बहनेवाली मृत चंद्रभागा, काबर झील, करेह नदी व कोसी के खुले पानी का फैलाव इस क्षेत्र की दुर्गमता को और ही बढ़ावा देता रहा है.
इस सुदूर पिछड़े इलाके की दुर्गमता व पिछड़ेपन के मद्देनजर नक्सली संगठन यहां किस हद तक अपनी जड़े जमाने में कामयाब हुई होगी, यह हकीकत सुरक्षा एजेंसियों के लिए चौंकानेवाला हो सकता है.
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