जिले में पेयजल संकट भयावह. दक्षिणी बांका से पलायन कर रहे लोग
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पानी को तरस रही आधी आबादी
जिले में पेयजल संकट भयावह. दक्षिणी बांका से पलायन कर रहे लोग जिले में करीब छह हजार चापाकल बेकार पड़े हैं. कुआं, तालाब, नदी आदि सूख चुके हैं. ऐसे में लोगों को पानी के लिए बूंद-बूंद को तरसना पड़ रहा है. लेकिन इससे निबटने की प्रशासनिक तत्परता नहीं दिखती. बांका : जिले में पेयजल संकट […]
जिले में करीब छह हजार चापाकल बेकार पड़े हैं. कुआं, तालाब, नदी आदि सूख चुके हैं. ऐसे में लोगों को पानी के लिए बूंद-बूंद को तरसना पड़ रहा है. लेकिन इससे निबटने की प्रशासनिक तत्परता नहीं दिखती.
बांका : जिले में पेयजल संकट की स्थिति उत्तरोत्तर गंभीर होती जा रही है. कुछ क्षेत्रों में लोग पीने के लिए बूंद बूंद पानी को तरस रहे हैं. जिले के उत्तरी कुछ प्रखंडों में तो फिर भी जैसे तैसे लोग अपनी प्यास बुझा रहे हैं, लेकिन दक्षिणी पठारी भूगोल वाले आधे दर्जन प्रखंडों में पेयजल संकट की स्थिति भयावह दौर में पहुंच चुकी है. जिले में जल संकट के समाधान के तमाम सरकारी दावे कागजी साबित हो रहे हैं.
पीएचइडी पेयजल संकट के समाधान के नाम पर योजनाओं की फेहरिस्त पेश कर रहा है. लेकिन सच तो यह कि तमाम दावों के बीच पीएचइडी जिले में खराब पड़े अपने ही लगाये करीब 6 हजार चापाकलों के मरम्मत तक नहीं करा पा रहा है. अन्य योजनाओं में भी ज्यादातर कागजों तक सीमित हैं. लोग प्यासे बिलबिला रहे हैं और विभाग सिर्फ अपनी फाइलें संभाल रहा है. प्रचंड गरमी और आग बरसाती धूप की वजह से भूमिगत जलस्तर के एकाएक काफी नीचे चले जाने से प्राकृतिक जल श्रोतों के अलावा कुआं, तालाब आदि बिल्कुल सूख चुके हैं. चापाकल भी जवाब दे चुके हैं.
लोग जहां तहां गड्ढों में जमा पानी से अपनी प्यास बुझा रहे हैं. जो चापाकल किसी तरह पानी दे रहे हैं वहां लोगों की भीड़ उमड़ रही है. बूंद बूंद पानी संग्रह कर लोग अपनी जिंदगी बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं. माल मवेशियों के समक्ष जल संकट की वजह से प्यासे मरने की नौबत उत्पन्न हो गयी है. उन्हें बचाने के लिए किसान मवेशियों को लेकर लगातार पलायन कर रहे हैं.
घट रहा भूगर्भ जल का स्तर
जल संकट से निबटने को हो रही हैं तमाम कोशिशें : इइ
विभाग जिले में पेयजल संकट के समाधान के लिए पूरी तत्परता से प्रयत्नशील है. विभाग के वश में जो कुछ है, उसे किया जा रहा है. सौर ऊर्जा तथा विद्युत चालित योजनाओं को कारगर ढंग से चलाया जा रहा है. चापाकलों की मरम्मती एवं नये चापाकल लगाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं. बंद पड़ी ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं को चालू करने की दिशा में प्रयास चल रहे हैं.
मनोज कुमार चौधरी, कार्यपालक अभियंता, पीएचइडी, बांका
गंदे नालों से प्यास बुझा रहे ग्रामीण, पानी के लिए हो रही मारामारी
मवेशियों के भी नहीं मिल रहा है पानी
पानी के लिए दक्षिणी आधे दर्जन प्रखंडों से पलायन कर रहे लोग
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