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खेतों तक पानी पहुंचाने में नाकाम साबित हो रहीं नहरें

नालों में तब्दील हुई ज्यादातर नहरें, पटवन के लिए पानी को तरस रहे किसान बांका : बांका जिले में सिंचाई नहरों की दशा बेहाल हैं. ज्यादातर नहरें खेतों तक पानी पहुंचाने में नाकाम साबित हो रही हैं. विभागीय अधिकारियों और ठेकेदारों के नेक्सस ने इन नहरों का दम निकाल कर रख दिया है. किसान जीर्ण […]

नालों में तब्दील हुई ज्यादातर नहरें, पटवन के लिए पानी को तरस रहे किसान

बांका : बांका जिले में सिंचाई नहरों की दशा बेहाल हैं. ज्यादातर नहरें खेतों तक पानी पहुंचाने में नाकाम साबित हो रही हैं. विभागीय अधिकारियों और ठेकेदारों के नेक्सस ने इन नहरों का दम निकाल कर रख दिया है. किसान जीर्ण शीर्ण नालों में तब्दील हो चुके इन सुखी नहरों को बस देख – देख कर संतोष कर लेने को विवश हैं. जिले के जनप्रतिनिधियों के पास किसानों की इस बड़ी समस्या को लेकर सिवा आश्वासन के और कोई निदान नहीं. किसान अपनी बेवशी पर लाचार हैं.
जबकि विभाग उनकी बदहाली पर मस्त.
66 हजार हेक्टेयर में होती है खेती: बांका जिले की अर्थव्यवस्था लगभग पूरी तरह कृषि पर आश्रित है. जिले के 11 में से 7 प्रखंडों में कृषि प्रमुख कारोबार हैं. कटोरिया, चांदन, बेलहर और बौंसी को छोड़ बांकी प्रखंडों में जीविका का मुख्य आधार खेती ही है. बांका जिले में कुल 7 लाख 47 हजार 801 हेक्टेयर भूमि है. इनमें से 66 हजार 72 हेक्टेयर भूमि कृषिगत है. जहां धान, गेहूं, मकई एवं सब्जियों सहित गन्ने की पैदावार होती है. अमरपुर, रजौन, बांका एवं शंभुगंज में गन्ने की खेती बहुतायत में होती है. जिले में नहरीय व्यवस्था को छोड़ दें तो खेती पूरी तरह दैव आसरा पर आधारित हो जाता है.
लूट का शिकार हुईं सिंचाई योजनाएं: ऐसा नहीं कि जिले में सिंचाई के साधनों का विकास नहीं हुआ. सच तो यह है कि इन साधनों की शुरूआत हुई लेकिन बीतते समय के साथ ये उपेक्षित और बेकार होते चले गये. इसकी मुख्य वजह विभागीय उपेक्षा रही. बांकी काम अधिकारियों और ठेकेदारों की लूट खसोट नीति ने पूरी कर दी है. बांका जिले में चांदन, ओढ़नी, बिलासी, बदुआ, देवासी, बेलहरना आदि बड़े डैम हैं. जहां से नहरों का जाल निकला हुआ हैं. इधर बड़ी बांध, हिरंबी बांध, सरकट्टा डैम, कझिया डांड आदि से भी बड़े पैमाने पर खेतों के पटवन होते है.
दम तोड़ रहे दर्जन भर डैम व बांध : जिले के ज्यादातर डैमों की स्थिति खास्ता हाल हैं. चांदन डैम में बड़े पैमाने पर सिल्टेशन हो जाने की वजह से इसकी जल संग्रहण क्षमता काफी कम हो गयी है. बदुआ डैम की भी कमोबेश यही हालत है. ओढ़नी डैम का स्ट्रक्चर ही कुछ ऐसा है कि सिवा आउटलेट के इसमें और कोई दरवाजा नहीं. सरकट्टा डैम भी रिस कर पानी बर्बाद कर रहा है. विलासी डैम का भी निर्माण आधा अधूरा है. देवासी व बेलहरना में भी जल संग्रह की क्षमता कम हुई है. बड़ी बांध, हिरंबी बांध, कझिया डांड आदि क्षतिग्रस्त है और पटवन में सक्षम नहीं.
जीर्ण-शीर्ण नहरों से सिंचाई की उम्मीद नहीं : इन डैमों व बांधों से निकलने वाले नहरों और डांडों की स्थिति यह हैं कि कई जगहों इनके वजूद मिटने के कगार पर है. चांदन डैम से निकले हाई लेवल केनाल दर्जनों जगह टूट कर ध्वस्त हो चुके हैं. कतरिया प्रशाखा नहर भराव की वजह से डांड़ में तब्दील हो चुका है.
ओढ़नी डैम से निकले नहरों को अब तक पूर्ण नहीं किया जा सका. बस दिखावे भर के लिए इसका निर्माण किया गया है. बदुआ डैम के पूर्वी केनाल का स्तर पश्चिमी केनाल से करीब 15 फीट ऊपर है. लिहाजा पश्चिमी केनाल से मुंगेर जिले को पानी मिलता है लेकिन बांका जिले के हिस्से को पानी नहीं मिल पाता. विलासी, देवासी और बेलहरना डैमों से निकले नहरों की हालत भी खास्ता हैं. टूटे पड़े केनालों से खेतों तक पानी पहुंचने की उम्मीद भी नहीं की जा रही है. बड़ी और हिरंबी बांधों से निकलने वाले डांड़ों में भी अब बारिश होने पर ही पानी बह पाता है.

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