– सुधीर कुमार सिन्हा –
औरंगाबाद : हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य शुभ मुहूर्त में ही आरंभ करना लोग भले ही बेहतर मानते हो. लेकिन आज धर्म पर भी आधुनिकता हावी हो रहा है. इसी का नतीजा है कि खरमास जैसे मौके पर भी वर-वधू की तलाश लगातार जारी रहा. आधुनिक जीवन चर्या ने लोगों को पुरानी परंपराओं को छोड़ने पर मजबूर कर दिया है.
शुभ कार्य के लिए बेहतर नहीं माने जाने वाले खरमास में भी लोग बेटे-बेटियों की शादी के लिए योग्य वर-वधू की तलाश जम कर की. यही नहीं धार्मिक कर्म कांडों के ज्ञाता भी समय के अनुसार, परिस्थितियों को देखते हुए मंदिरों में विवाह की रस्म पूरी करने की सलाह दे रहे हैं.
यही कारण है कि जिले के देव सूर्य मंदिर, देव कुंड मंदिर व अंबा सतबहिनी मंदिर समेत प्रमुख मंदिरों में भी खरमास में शादियां हुई. पंडित धर्मेद्र पाठक का कहना है कि पढ़े लिखे व संपन्न परिवारों में शुभ लगन में ही शादियां होती थी, किंतु अब अधिकांश लोग वर-वधू की खोज कभी भी कर रहे है.
ऐसे लोगों का कहना है कि विदेशों व दूसरे प्रखंडों में रहने वाले लोगों के लिए लगन व शुभ मुहूर्त का महत्व कम होता जा रहा है. उनके लिए अनुकूल समय व छुट्टियां ज्यादा मायने रख रही है. पंडित श्री पाठक कहते है कि हिंदू परिवार के लिए विवाह महज सामाजिक रस्म नहीं है, बल्कि यह सोलह श्रृंगारों में शुमार है.