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लोगों की सुरक्षा के लिए मात्र एक थाना

विकट समस्या. वर्तमान में शहर की आबादी लाख के पार औरंगाबाद शहर की आबादी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. शहर का आकार भी बढ़ रहा है, लेकिन लोगों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था वहीं है, जो 35 वर्ष पहले थी. सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि औरंगाबाद शहर पुरानी जीटी रोड पर बसा है. […]

विकट समस्या. वर्तमान में शहर की आबादी लाख के पार
औरंगाबाद शहर की आबादी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. शहर का आकार भी बढ़ रहा है, लेकिन लोगों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था वहीं है, जो 35 वर्ष पहले थी. सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि औरंगाबाद शहर पुरानी जीटी रोड पर बसा है. वाहन व आबादी बढ़ने से यातायात व्यवस्था अक्सर प्रभावित होता रहता है, लेकिन ट्रैफिक पुलिस की व्यवस्था यहां की गयी नहीं है.
औरगाबाद कार्यालय : औरंगाबाद शहर नगरपालिका से नगर परिषद तो बना. 18 वार्ड से 33 वार्ड बनाये गये, लेकिन पुलिस थाना महज एक ही है, जिसे लोग टाउन थाना के नाम से जानते हैं. इसी थाने के भरोसे शहर की एक लाख से भी अधिक की आबादी की सुरक्षा है. इस कारण इस शहर में आपराधिक घटनाएं अक्सर घटती रहती हैं.
यह बात अलग है कि पुलिस समय-समय अापराधिक घटनाओं का उद्भेदन करते रहती है और अपराधी जेल भी जाते रहे हैं. लेकिन, घटनाओं में कमी आये इसके लिए औरंगाबाद शहर में एक-दो और थाने या फिर तीन-चार पुलिस चौकी खोले जाने की अावश्यकता है.
आजादी के समय से औरंगाबाद शहर में एक थाना था, जिससे शहर व आसपास के 60 से 70 गांव जुड़े थे.1980 में इस शहर की आबादी लगभग 25 हजार के करीब हुई, तो ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अगल से मुफस्सिल थाना बना और शहर के लिये नगर थाना बना. उस वक्त शहर में आठ से दस मुहल्ले ही थे. आसपास के गांव शहर से नहीं जुड़े थे. दो-तीन बैंक ही थे. कल-करखाने नहीं थे. आबादी कम होने के कारण नगर थाना लोगों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त थी, लेकिन वर्तमान समय में इस शहर की आबादी डेढ़ लाख के आसपास पहुंच चुकी है.
28 से 30 बैंक खुल गये हैं. श्री सीमेंट कंपनी सहित कई छोटे-बड़े अद्यौगिक प्रतिष्ठान खुल चुके हैं. वार्ड व मुहल्लों की संख्या में इजाफा हुआ है. शहर के आसपास के गांव रजवारी, कामाबिगहा, गंगटी, बैजनाथबिगहा, जसोइया व रामाबांध जैसे कई गांव इस शहर से जुड़ गये हैं. इन सभी मुहल्लों व गांवों की सुरक्षा की जिम्मेवारी नगर थाना पर है. दूसरा यह कि समय बीतने के साथ-साथ क्राइम का तरीका भी बदला है.
पहले केवल हत्या, चोरी, लूट व् बलात्कार जैसी घटनाएं होती थीं, अब साइबर क्राइम (एटीएम कार्ड से फर्जी तरीके से पैसा निकालने की घटना), बैंक लूट व बाइक चोरी करने की घटनाएं हो रही हैं, जिन पर चाह कर भी पुलिस रोक नहीं लगा पा रही है. क्योंकि इन घटनाओं को अपराधी गिरोह में अंजाम देते हैं, जो पुलिस के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है और आम लोगों के लिए मुसीबत.
शहर में खोले जाएं और थाने
व्यवहार न्यायालय के वरीय अधिवक्ता लक्ष्मण प्रसाद का कहना है कि औरंगाबाद शहर की आबादी के अनुरूप कम से कम तीन-चार और थाने खुलने चाहिए. औरंगाबाद के सटे सासाराम में तीन, गया शहर में चंदौती, डेल्हा, मगध मेडिकल, रामपुर, सिवल लाइंस, विष्णुपद, कोतवाली, मोफस्सिल थाने हैं, तो फिर औरंगाबाद शहर में और नये थाने क्यों नहीं खोले जा रहे हैं
नये थाना खुलने से लोग रहेंगे अधिक सुरक्षित
मुकेश कुमार का कहना है कि एनएच-टू पर के किनारे बसे इस शहर में सरकार को और नये थाने खोलने चाहिए. इससे लोग अधिक सुरक्षित रहेंगे. अंतरराज्जीय आपराधिक गिरोह की नजर इस शहर पर रहती है. वैसे भी यह जिला अति उग्रवादग्रस्त है. शहर में उग्रवादियों को भी पनाह लेने की बात भी सामने आती रही है. इन सभी को देखते हुए शहर में नये थाने खोले जाने चाहिए.
औरंगाबाद में दो हजार आबादी पर एक पुलिसकर्मी
बीपीआरडी (ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवपलमेंट) के रिपोर्ट के
मुताबिक, बिहार में 1433 लोगों की सुरक्षा में एक पुलिसकर्मी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, केवल दादर नगर हवेली में ही 1589 लोगों पर एक पुलिसकर्मी है. दूसरे स्थान पर बिहार है.
इनके अलावा अन्य राज्यों में छतीसगढ़ में 457 व्यक्ति पर एक पुलिसकर्मी, आंध्र प्रदेश में 908 लोगों पर एक पुलिसकर्मी, अासाम में 610 लोगों पर एक पुलिसकर्मी हैं. लेकिन, औरंगाबाद शहर में तो दो हजार लोग पर भी एक पुलिसकर्मी नहीं है. हालांकि इसका प्रमाण उपलब्ध नहीं है़

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