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सरकारी अनुदान के बाद भी बायोगैस में लोगों की नहीं हो रही दिलचस्पी

तय किये गये टारगेट में आये हैं 10 से बारह फीसदी आवेदन बायो गैस लगवाने के लिए नहीं किया संपर्क मदनपुर : कृषि विभाग की अति महत्वाकांक्षी बायो गैस योजना शुरू तो हुई पर इसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी है. इस वजह से पारंपरिक ऊर्जा को बढ़ावा देने की सारी सरकारी तरकीब हाशिये पर […]

तय किये गये टारगेट में आये हैं 10 से बारह फीसदी आवेदन

बायो गैस लगवाने के लिए नहीं किया संपर्क
मदनपुर : कृषि विभाग की अति महत्वाकांक्षी बायो गैस योजना शुरू तो हुई पर इसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी है. इस वजह से पारंपरिक ऊर्जा को बढ़ावा देने की सारी सरकारी तरकीब हाशिये पर चली गई है. योजना के प्रति कृषि विभाग के अधिकारियों की भी कोई खास दिलचस्पी नहीं है .इस साल जिले के लिये तय किये गये टारगेट में दस से बारह फीसदी आवेदन ही आये हैं. उसमें भी अभी तक किसी ने आगे बढ़कर बायो गैस लगवाने के लिए विभाग से संपर्क नहीं किया है. इससे विभाग को आवेदन करने वालों पर भी भरोसा नहीं हो पा रहा है. पिछले साल भी लोगों ने आवेदन तो किया मगर एक व्यक्ति बायोगैस के लिए आगे नहीं आया.
दरअसल बायो गैस योजना मुख्य रूप से किसानों के लिए है. खासकर वैसे किसान जो पशुपालक भी हैं. इस योजना में प्रयोग होने वाले कच्चा माल की जगह महज गोबर लगता है जो पशुपालकों को सहूलियत से मिल जाती है. इससे न सिर्फ खाना बनाने के लिए ईंधन मिल जाता है, बल्कि लाइट जलाने के लिए बिजली भी मिलती है. इसमें प्रयुक्त गोबर एक सप्ताह के बाद अति उत्तम क्वालिटी के कंपोस्ट में तब्दील हो जाता है. महज दो घन मीटर यानी दो मीटर लंबी चौड़ी व गहरी जगह की जरूरत होती है. इसे खाली जमीन पर तो लगाया ही जा सकता है़
दो मॉडलों का विकल्प : कृषि विभाग ने बायोगैस के लिए दो प्रकार के मॉडल लगवाने का विकल्प रखा है. इसमें दीनबंधु मॉडल एवं सिंटेक्स मॉडल हैं . दीनबंधु मॉडल में ईंट का बनाया जाता है उसमें किसान स्वयं काम कर अपनी मजदूरी बचा लेते हैं. इससे किसानों को इस योजना में बचत ज्यादा हो जाती है .दूसरा मॉडल सिंटेक्स मॉडल है जो आर्डर करने के तुरंत बाद लग जाता है. दोनों मॉडलों के लिए किसानों को 38 हजार पांच सौ की लागत आती है .इसमें 25 फीसदी अनुदान सीधे किसानों के खाते में आ जाता है.
योजना हो रही फ्लॉप : प्रचार-प्रसार एवं उचित सलाह के अभाव में ग्रामीण इलाके में बायो गैस योजना फ्लॉप होकर रह गई है. इसके फायदे से ज्यादा, लोगों को परेशानी बता दी जाती है. जैसे लोगों को योजना का लाभ लेने के लिए पहले अपने पास से पूरी राशि खर्च करनी पड़ती है, बाद में अनुदान मिलता है. अनुदान की राशि देने में कृषि विभाग के पंचायतों में काम कर रहे लोग कथित तौर पर नजराना लेने की चाहत रखने लगते हैं.
क्या कहते हैं कृषि पदाधिकारी : प्रखंड कृषि पदाधिकारी हंस कुमार अंचल ने कहा कि पिछले साल का टारगेट 10 था. इस साल भी उतना ही है. पिछले साल एक भी किसान आगे नहीं आए .इस साल भी किसानों ने आवेदन नहीं किया है. शत-प्रतिशत लक्ष्य पूरा करने के लिये आवश्यक निर्देश जारी किये गये हैं.

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