यह कैसा विकास, एनओसी के चक्कर में पहले से डूब रही है नप की बड़ी राशि
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बगैर एनओसी पुन: 1.59 करोड़ की लागत से बन रहा है नाला
यह कैसा विकास, एनओसी के चक्कर में पहले से डूब रही है नप की बड़ी राशि फिर िबना एनओसी लिये ही कैसे होने लगा नाला का निर्माण एनएचआइ ने कहा, नप को नहीं दिया गया है नाला निर्माण करने के लिए एनओसी अररिया : कहावत है दूध का जला, छाछ भी फूंक कर पीता है, […]
फिर िबना एनओसी लिये ही कैसे होने लगा नाला का निर्माण
एनएचआइ ने कहा, नप को नहीं दिया गया है नाला निर्माण करने के लिए एनओसी
अररिया : कहावत है दूध का जला, छाछ भी फूंक कर पीता है, लेकिन अररिया नगर परिषद की कहानी ही अजीब है. यह गरम दूध से घबराकर नहीं बल्कि दूध को उफान दे-दे कर पी रहा है. नगर परिषद वर्ष 2011 से ही लगभग 75 लाख के प्राक्कलन से मार्केटिंग भवन बनाकर अदालतों का चक्कर काट रहे हैं. बावजूद यह मामला अभी लटका ही हुआ है कि नगर परिषद ने अचानक से एनएचआइ की जमीन पर बगैर एनओसी लिये ही नाला का निर्माण कार्य शुरू कर दिया है.
नगर परिषद द्वारा एनएच 327 ई चांदनी चौक से लेकर कोसी धार तक लगभग एक किमी लंबा नाला का निर्माण लगभग 1.59 करोड़ के प्राक्कलन से कराया जा रहा है. ताज्जुब की बात तो यह है कि यह नाला एनएचआइ की जमीन पर तो बन रहा है, लेकिन अब तक इसके लिए एनएचआइ से अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं लिया गया है. ऐसा खुद एनएचआइ के कार्यपालक अभियंता खुद बोल रहे हैं.
पीडब्ल्यूडी न दर्ज करायी है आपत्ति
हालांकि यह नाला के बनने से शहर के जल जमाव की बड़ी समस्या तो दूर हो सकती है, लेकिन नाला के निर्माण से पूर्व एनएचआइ से एनओसी ले लिया जाता तो क्या हर्ज होता. कहने वालों की माने तो एक छोटा सा कागज का टुकड़ा जिसे एनओसी कहते हैं नहीं लिया गया, तो इसका खामियाजा नगर परिषद भुगत रहा है. सदर अस्पताल के सामने बना मार्केटिंग कॉम्पलेक्स विगत सात वर्षों से अदालतों का चक्कर काट रहा है. पीडब्ल्यूडी द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया है कि नगर परिषद ने उससे बगैर अनुमति लिये उनकी जमीन पर दो मंजिला मार्केटिंग कॉम्पलेक्स बनाया. इस मामले का खुलासा तब हुआ था जब वर्ष 2012 में पूर्व पार्षद परवेज दास द्वारा जनहित याचिका दायर किया गया. कहा गया कि नगर परिषद बगैर संबंधित विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लिये हैं बिल्डिंग का निर्माण करा रही है. उनके जन हित याचिका पर विचारोपरांत हाइकोर्ट ने पीडब्ल्यूडी के कार्यपालक अभियंता से भी पक्ष जाना तो उन्होंने स्वीकार किया बगैर उनके अनुमति के बिल्डिंग बनाया गया है. फिर क्या वर्ष 2017 में हाइकोर्ट ने मार्केटिंग कॉम्पलेक्स को तोड़ने का आदेश दिया. बाद में नप की सशक्त स्थायी समिति की बैठक आयोजित की गयी, जिसमें तोड़ने के आदेश पर रोक लगाने के लिए नवंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट में अनुरोध याचिका दायर की गयी.
कहते हैं कार्यपालक पदाधिकारी
इधर इस संबंध में पूछे जाने पर कार्यपालक पदाधिकारी भवेश कुमार ने बताया कि जहां पर नाला बन रहा है. वहां नगर परिषद का पूर्व में ही नाला बना हुआ था. इसलिए बने हुए स्थान पर पुन: एनओसी लिये जाने की जरूरत ही क्या है. अगर आवश्यकता पड़ी तो एनएचआइ से पत्राचार किया जायेगा.
कहते हैं कार्यपालक अभियंता
इधर इस संबंध में पूछे जाने पर एनएचआइ के कार्यपालक अभियंता उदय सिंह ने बताया कि नाला के निर्माण से पूर्व नगर परिषद को एनओसी लेना चाहिए था. अगर नप द्वारा एनओसी के लिए आवेदन किया गया हो तो इसकी उन्हें जानकारी नहीं है, लेकिन एनएचआइ द्वारा नाला के निर्माण के लिए एनओसी नहीं दिया गया है.
75 लाख अधर में फिर 1.59 करोड़ को डुबाने की मंशा क्यों
खास बातें
वर्ष 2011 में नप ने लगभग 75 लाख की लागत से सदर अस्पताल के पास बनाया था दो मंजिला मार्केटिंग कॉम्पलेक्स
जनहित याचिका दायर हुआ तो पता चला, नहीं लिया गया है पीडब्ल्यूडी से एनओसी
वर्ष 2012 में मामला पहुंचा हाइकोर्ट, कोर्ट ने 2017 में मार्केटिंग कॉम्पेलक्स तोड़ने का दिया आदेश
वर्ष 2017 नवंबर में नगर परिषद के सशक्त स्थायी समिति ने दायर किया सुप्रीम कोर्ट में याचिका, हाइकोर्ट के आदेश पर हुआ स्टे
वर्ष 2018 जनवरी पुन: चांदनी-चौक से सदर अस्पताल जाने वाली सड़क पर हो रहा नाला का निर्माण, नहीं लिया गया है एनओसी
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