– आइडीबीआइ की सहायक मैनेजर ने सुसाइड नोट में खोला राज, एजीएम ने भी नहीं की थी कार्रवाई
– फर्जीवाड़े में फंसने का स्नेहा को सता रहा था भय
गोपालगंज/पटना : आइडीबीआइ बैंक की सहायक प्रबंधक स्नेहा सिंह की सुसाइड नोट ने बैंक में फर्जीवाड़े का राज भी खोला है. सुसाइड नोट में स्नेहा ने ब्रांच मैनेजर देवेंद्र पाल सिंह एवं शिव कुमार नायक पर फर्जीवाड़े का आरोप लगाया है. उसपर फर्जी वाउचर पर जबरन हस्ताक्षर का दबाव बनाया जाता था.
इनकार जानेवाले गलत वाउचर का भी विरोध करने पर धमकी भी दी जाती थी. स्नेहा ने डीजल का हर दिन बनाये किया था. पटना के राजेंद्रनगर की रहने वाली स्नेहा ने शनिवार को फांसी लगा कर जान दे दी थी. रविवार को उसकी अंत्येष्टि पटना में कर दी गयी. उधर, इस मामले में पुलिस ने ब्रांच मैनेजर समेत तीन लोगों को जेल भेज दिया.
सुसाइड नोट के मुताबिक, स्नेहा ने फरजी वाउचर की शिकायत आइडीबीआइ बैंक के एजीएम रिजवान खान से भी की थी. इसकी जांच तो हुई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस कारण स्नेहा को फर्जीवाड़े में फंसने का डर सता रहा था.
सुसाइड नोट में उसने लिखा है- एवरी डे किल मी. उसने तीनों अधिकारियों को सजा दिलाने की भी अपील की है. इसमें लिखा है कि किसानों को दिये जानेवाले ऋण में फर्जी कागजात का उपयोग किया गया है. लाखों रुपये का लोन फर्जी दस्तावेज पर निकाला गया है. उसे छुट्टी देने में भी आनाकानी की जाती थी.
कार्रवाई होती तो यह नौबत नहीं : चाचा
स्नेहा के चाचा ने बताया कि ब्रांच में हो रही गड़बड़ी की जानकारी आइडीबीआइ बैंक के बिहार- झारखंड के हेड रिजवान खान को भी इ मेल से दी थी, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई. अगर जांच होती, तो आज यह स्थिति नहीं आती. इस आरोप के संबंध में जब रिजवान खान के मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किया गया, तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया.
चाचा ने बताया कि स्नेहा ने अपने कार्यालय में प्रताड़ित होने की जानकारी मां को दे थी, लेकिन उसकी मां हमेशा यह कहती थी कि मामले को ठीक कर दिया जायेगा. हालांकि, उन्होंने कभी इस संबंध में किसी अन्य को जानकारी नहीं दी. मां को जैसे ही जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत बिना सुसाइड नोट देखे ही उन लोगों के नाम गिने दिये, जो स्नेहा को परेशान किया करते थे.
स्नेहा पढ़ने में तेज थी. उसने मैट्रिक तक की पढ़ाई सेंट जोसेफ स्कूल से और स्नातक की पढ़ाई पटना वीमेंस कॉलेज से की थी. चेन्नई में पांच साल उसकी पहली पोस्टिंग हुई थी. इसके बाद वह तीन साल पहले गोपालगंज आयी थी. उसका अंतिम संस्कार गुलबी घाट पर किया गया. मुखाग्नि चाचा ने दी.