पटना: प्रदेश की सिंचाई परियोजनाओं के पैसों से भ्रष्टाचार की फसल लहलहा रही है. आलम यह है कि लघु जल संसाधन विभाग के मंत्री अवधेश प्रसाद कुशवाहा का आदेश भी दो माह तक धूल खाता रहा. वह भी तब जब मंत्री ने विधानसभा में एक परियोजना में जांच को कहा था.
प्रदेश में अफसरशाही की मनमानी का यह एक और मिसाल है. दो महीने बाद जब मंत्री ने फिर अपने लेटर पैड पर आदेश जारी किया, तब अफसर हिले. प्रारंभिक जांच में यह पता चला कि 30 से 50 प्रतिशत काम करनेवाले ठेकेदार को पूरी राशि दी जा चुकी है. एक अन्य समीक्षा में यह भी सामने आया कि बिना पूरी हुई दो दर्जन से अधिक परियोजनाओं में पूरी राशि भुगतान कर दी गयी है. यह राशि सौ करोड़ रुपये तक हो सकती है. अभी सिर्फ दो दर्जन परियोजनाओं में ही यह गड़बड़ी सामने आयी है. कई और परियोजनाएं इसमें जुड़ सकती हैं.
करोड़ों के भुगतान का अंदेशा : विभाग में लगभग 650 करोड़ की 420 परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ. इनमें से लगभग दो सौ परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और 350 करोड़ रुपये भी खर्च हो चुके हैं. लेकिन, बाकी 220 परियोजनाओं में अब भी 300 करोड़ की परियोजनाओं पर काम हो रहा है. ऐसे में अगर दर्जनों बड़ी परियोजनाओं में बिना पूरा काम किये ही राशि का भुगतान कर दिया गया होगा, तो वह राशि 100 करोड़ तक हो सकती है. वैसे यह मुख्य अभियंता के स्तर से बननेवाली सूची से ही पता चल सकेगा कि ऐसी परियोजनाओं की वास्तविक संख्या और इनकी राशि क्या है.
ठेकेदारों को शत-प्रतिशत राशि भुगतान करने में अभियंताओं की अहम भूमिका होती है. कनीय, सहायक व कार्यपालक अभियंता अगर एक हो जाएं, तो ठेकेदार सभी तरह की आवश्यक प्रक्रियाओं को पूरी कर आसानी से पूरी राशि प्राप्त कर लेते हैं. जिन परियोजनाओं में अभियंताओं ने ठेकेदारों को पूरी राशि का भुगतान कर दिया है, उन पर विभागीय कार्रवाई तय है. इसके तहत अभियंताओं को निलंबन से लेकर अनुशासनात्मक कार्रवाई तक की जा सकती है. विभागीय अभियंताओं की मदद से ठेकेदार शत-प्रतिशत राशि हासिल करने में सफल हो रहे हैं.
.. और कागज पर पूरी हुईं परियोजनाएं : लघु जल संसाधन विभाग ने सिंचाई के लिए 647 करोड़ की योजना बनायी. 420 परियोजनाओं के मद में दो लाख 22 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में पटवन का दावा किया गया था. इन परियोजनाओं में बीते महीने तक लगभग दो सौ का काम पूरा हो चुका था. कुल आवंटित राशि में 328 करोड़ खर्च हो चुके हैं. चालू वित्तीय वर्ष में लक्ष्य था कि इन सिंचाई परियोजनाओं से एक लाख 79 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में पटवन किया जायेगा. लेकिन, सितंबर की रिपोर्ट के अनुसार इन परियोजनाओं से सिर्फ 33 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में ही पटवन हो सका है. विभागीय अधिकारी बताते हैं कि इन परियोजनाओं की डीपीआर तैयार करते समय ही सभी बातों का ख्याल नहीं रखा गया, खासकर पानी की गणना या अन्य तकनीकी बिंदुओं की सही तरीके से आकलन नहीं किये जाने के कारण परियोजना पूरी होने पर भी किसानों को उसका समुचित लाभ नहीं मिल पाता है.
ऐसे हुआ उजागर
बिहार विधानसभा में जहानाबाद में उतरामा आहर पइन की 52 लाख की परियोजना में गड़बड़ी का मामला उठा. विभागीय मंत्री अवधेश प्रसाद कुशवाहा ने अपने जवाब में माना कि ठेकेदार को 32 लाख रुपये भुगतान कर दिया गया है. इस पर प्रश्नकर्ता ने कहा कि जमीनी स्तर पर काम हुआ ही नहीं है, तो मंत्री ने इस मामले की जांच कराने को कहा. दो महीने तक जांच प्रक्रिया ठंडे बस्ते में रही. विधायक द्वारा बार-बार इस मामले में प्रगति की जानकारी मांगे जाने पर मंत्री ने विभाग को अपने पैड पर लिखित आदेश दिया.
विभाग के संयुक्त सचिव के नेतृत्व में जांच कमेटी बनी. जांच में पाया गया कि इस परियोजना में भारी गड़बड़ी हुई है. बिना खुदाई के ही जमीन की सतह से ही सिंचाई परियोजना की संरचना का काम किया गया है.
मिट्टी का काम बमुश्किल 30 प्रतिशत पूरा हुआ है. इस रिपोर्ट के बाद विभाग अब ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी में है. इस परियोजना में गड़बड़ी उजागर होने के बाद अब अन्य परियोजनाओं पर भी विभाग की नजर है. बीते दिनों समीक्षा के क्रम में विभागीय सचिव मिहिर कुमार सिंह ने पाया कि विभाग की कई सिंचाई परियोजनाएं पूरी नहीं हुईं, लेकिन उस मद की पूरी राशि का भुगतान कर दिया गया. प्रारंभिक आकलन में इस तरह की दो दर्जन योजनाओं के होने के आसार हैं. सचिव को गड़बड़ी का शक हुआ, तो उन्होंने सभी मुख्य अभियंताओं को कहा है कि वे विभाग की सभी सिंचाई परियोजनाओं का खाका तैयार करें. किस परियोजना में कितना काम हुआ है और कितनी राशि का भुगतान किया गया है. सचिव के आदेश पर विभाग में हड़कंप मचा हुआ है. सभी मुख्य अभियंता अब सिंचाई परियोजनाओं की अद्यतन स्थिति की जानकारी हासिल कर उसकी सूची तैयार करने में लगे हुए हैं.