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पुराना बेअसर, नये सॉफ्टवेयर पर चल रहा काम

डाटा मर्ज करने में फंसा सामाजिक–आर्थिक व जाति आधारित जनगणना का प्रारूप पटना : नवंबर से बीपीएल परिवारों को खाद्य आपूर्ति का नया मानक लागू नहीं हो सकेगा. इसकी मुख्य वजह सामाजिक–आर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना के प्रारूप का प्रकाशन कार्य नहीं हो पाना है. 16 अगस्त को नयी जनगणना की सूची के प्रारूप का […]

डाटा मर्ज करने में फंसा सामाजिकआर्थिक जाति आधारित जनगणना का प्रारूप

पटना : नवंबर से बीपीएल परिवारों को खाद्य आपूर्ति का नया मानक लागू नहीं हो सकेगा. इसकी मुख्य वजह सामाजिकआर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना के प्रारूप का प्रकाशन कार्य नहीं हो पाना है. 16 अगस्त को नयी जनगणना की सूची के प्रारूप का प्रकाशन किया जाना था.

लेकिन, डाटा मर्ज नहीं होने के कारण इसका प्रकाशन अटका हुआ है. पहले से तैयार सॉफ्टवेयर बेअसर साबित हुआ है. भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड अब नये सॉफ्टवेयर की तैयारी में जुटा हुआ है. यह बताया जा रहा है कि एक सप्ताह में इसे तैयार कर लिया जायेगा.

जहानाबाद से शुरू हुई थी योजना

अप्रैल, 2012 में जहानाबाद से सामाजिकआर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना की शुरुआत हुई थी. इसके माध्यम से सूबे की 10.40 करोड़ आबादी की जनगणना की जानी है. भारत के ग्रामीण विकास विभाग ने भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड से सॉफ्टवेयर का निर्माण कराया था.

उस सॉफ्टवेयर पर सेवा देनेवाली कंपनी इसीआइएल (इलेक्ट्रॉनिक कंपनी ऑफ इंडिया) को डाटा अपलोड करना था. कंपनी ने नये डाटा को अपलोड तो कर दिया है, लेकिन जब जनगणना 2011 सामाजिकआर्थिक जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों को साथ लेकर नया डाटा तैयार करने का प्रयास किया गया, तो डाटा मर्ज नहीं हुआ.

पहले से की गयी तैयारियों के आधार पर ग्रामीण विकास विभाग ने पूरे राज्य में सामाजिकआर्थिक जाति आधारित जनगणना के प्रारूप प्रकाशन की जिलेवार तिथि भी घोषित कर दी थी.

सात बार भेजा केंद्र को पत्र

ग्रामीण विकास मंत्री नीतीश मिश्र ने बताया कि देश राज्य का पहला जिला अरवल को चुना गया था, जहां 16 अगस्त को नयी जनगणना के प्रारूप को प्रकाशित किया जाना था. जब डाटा मर्ज करने की बारी आयी, तो नया डाटा ही जनरेट नहीं हुआ. जैसे ही नया डाटा जनरेट होगा, अरवल जिला देश के लिए मॉडल बन जायेगा. इस संबंध में भारत सरकार को सात बार मेल भेजा जा चुका है.

विभाग की ओर से 22 अगस्त, जबकि मुख्य सचिव के स्तर से 29 अगस्त को डीओ पत्र भेजा गया. 23 अगस्त को केंद्रीय ग्रामीण मंत्रलय के साथ हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में भी इस मुद्दे को उठाया गया. नया सॉफ्टवेयर के आने में जितना समय लगेगा, उतना ही विलंब होगा. जानकारों का कहना है कि नये सॉफ्टवेयर तैयार करने में छह माह लग सकता है.

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