पटना : लोकसभा चुनाव में जदयू की करारी हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार के बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिए जाने के बाद इस पूरे साल प्रदेश में सत्ताधारी दल जदयू और विपक्षी पार्टी भाजपा के बीच राजनीतिक शह-मात का खेल जारी रहा.
गत 16 मई को संपन्न लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी नीत भाजपा के हाथों करारी मात जिसमें प्रदेश की 40 संसदीय सीटों में से जदयू के मात्र दो ही सीट पर विजय पाने पर नीतीश ने अपनी पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए गत 17 मई को बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.
दो दिनों के हाई वोल्टेज ड्रामा के दौरान जदयू विधायक दल ने नीतीश के इस्तीफे को पहले तो स्वीकार करने से इंकार कर दिया पर बाद में अपने कद्दावर नेता के इस निर्णय को स्वीकार करते हुए उनसे ही अपना उत्तराधिकारी चुनने का आग्रह किया और गत 19 मई को नीतीश के दलित नेता जीतन राम मांझी को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर चुनाव ने सभी को अचंभित कर दिया.
गत 19 मई को मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद मांझी ने राजद और कांग्रेस के सहयोग से गत 23 मई को बिहार विधानसभा में आसानी से विश्वासमत हासिल कर लिया था.
साढे तीस वर्षो के अपने राजनीतिक सफर में 70 वर्षीय मांझी पूर्व के कांग्रेस और राजद के कार्यकाल में मंत्री रहे थे और मुख्यमंत्री बनने के पूर्व वे नीतीश मंत्रिमंडल में मंत्रियों में 11वें नंबर पर थे.
मांझी को मुख्यमंत्री बनाए जाने से उन्हें ‘कठपुतली’ की संज्ञा देते हुए भाजपा ने नीतीश पर ‘रिमोट के जरिए’ प्रदेश का शासन चलाने का आरोप लगाया और कहा कि नीतीश ने नैतिकता के नाम पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया लेकिन अपना उत्तराधिकारी चुनने में योग्यता के बजाये वोट बैंक पर नजर रखकर उन्होंने किस नैतिकता का निर्वाह किया है.
जीतन राम मांझी मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिलने से नाराज जदयू के कुछ विधायकों के बागी हो जाने से जदयू सरकार के आस्तित्व को लेकर संकट खडा कर देने के बावजूद गत 19 जून को हुए बिहार में राज्यसभा की दो सीटों के उपचुनाव में राजद, कांग्रेस और भाकपा के समर्थन से सत्तारुढ दल के दोनों उम्मीदवार पवन वर्मा और गुलाम रसूल बलियावी विजयी रहे थे.
पवन और बलियावी ने बिहार में सत्तासीन जदयू के कुछ बागी विधायकों और भाजपा समर्थित दो निर्दलीय उम्मीदवारों अनिल शर्मा और साबिर अली को इस उपचुनाव में पराजित किया था.
करीब 20 सालों से एक-दूसरे का विरोध करते आए राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथ मिला लेने से गत 21 अगस्त को बिहार विधानसभा की दस सीटों के उपचुनाव में इस गठबंधन ने इन दस सीटों में से छह सीटों पर विजय हासिल की जबकि भाजपा चार सीटों पर विजयी रही थी.
लालू की पार्टी राजद के ‘जंगल राज’ का विरोध कर वर्ष 2005 में मुख्यमंत्री बने नीतीश के लालू से हाथ मिला लेने पर भाजपा ने उनपर अपनी विचारधारा से पलटने का आरोप लगाते हुए उनसे पूछा कि नीतीश को यह स्पष्ट करना चहिए कि उन्हें किस मजबूरी ने बिहार में 15 सालों तक शासन करने वाले और ‘जंगल राज’ के तौर चर्चित रहे राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए विवश किया.
भाजपा ने नीतीश की पार्टी द्वारा भ्रष्टाचार और अपराध के प्रति ‘जीरो टालेरेंस’ की नीति अपनाने पर उपहास करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार और अपराध को संरक्षण देने वाली राजद के साथ मिलकर वे कैसे अपनी इन नीतियों पर कायम रह पाएंगे.
नीतीश कुमार के गत 13 नवंबर से ‘संपर्क यात्र’ पर निकलने को भाजपा ने इसे जनता को लुभाने की उनकी कोशिश करार दिया और इस यात्र के केवल प्रधानमंत्र्री नरेन्द्र मोदी (नमो) की निंदा यात्र बनकर रह जाने का आरोप लगाया.
गत 21 अगस्त को बिहार विधानसभा उपचुनाव में जदयू-राजद-कांग्रेस के गठबंधन को हासिल सफलता को राष्ट्रीय स्तर पर मूर्त रुप देने के लिए अपनी संपर्क यात्र के बाद नीतीश जनता परिवार के विभिन्न दलों को एकजुट करने के प्रयास में लगे और अंतत: इसमें उन्हें समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह के आवास पर गत चार दिसंबर को संपन्न एक बैठक में जदयू, राजद, सपा, इंडियन नेशनल लोकदल, समाजवादी जनता पार्टी और जदयू एस के विलय को लेकर बनी सहमति से सफलता मिली.
इसी बीच गत 27 नवंबर को केसरी नाथ त्रिपाठी ने प्रदेश के नए राज्यपाल के तौर पर पदभार ग्रहण किया.इस वर्ष नीतीश जहां नरेंद्र मोदी नीत भाजपा के खिलाफ अपने घोर विरोधी लालू सहित जनता परिवार के अन्य दलों को एकजुट करने में लगे रहे वहीं उनके उत्तराधिकारी जीतन राम मांझी के विवादित ब्यानों के कारण नीतीश उनके साथ कई अवसरों पर मंच साझा करने से बचते दिखे वहीं उनकी पार्टी जदयू को लगातार फजीहत ङोलनी पडी.
गत अगस्त में अपना बिजली बिल चुकाने के लिए पांच हजार रुपये घूस देने की बात स्वीकार करने के साथ मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के डाक्टरों का हाथ काटने, सर्वणों को विदेशी बताने, केंद्र से समुचित सहायता नहीं ला पाने पर बिहार से बने सात केंद्रीय मंत्रियों के प्रवेश नहीं करने देने जैसे विवादित बयानों से फजीहत ङोल रही जदयू को अपने मुख्यमंत्री ऐसे बयान देने से परहेज करने की नसीहत देनी पडी.
बाद में मांझी ने नीतीश से अपने ‘मतभेद’ की चर्चा को विराम देते हुए उन्हें जदयू का ‘सुप्रीम’ नेता बताया तथा उन्हें वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में मुख्यमंत्री के पद पर आसीन देखने की इच्छा जतायी तथा उनकी संपर्क यात्र के दौरान गत 25 नवंबर को जहानाबाद में उनके साथ मंच साझा किया.