पटना: बिहार को उसकी मांग के अनुरूप बिजली तो मिल रही है, लेकिन अब भी बिजली संकट दूर नहीं हुआ है. कहीं ट्रांसफॉर्मर जले हुए हैं, तो कहीं तारों की स्थिति जजर्र है. आधारभूत संरचना के अभाव में टीएनडी लॉस अधिक हो रहा है सो अलग.
छह-सात साल पहले तक जहां सात-आठ सौ मेगावाट बिजली की आपूर्ति होती थी, वहीं अब यह बढ़ कर 2400 से 2600 मेगावाट तक पहुंच गया है. इस समय बिजली की मांग करीब 2600 मेगावाट है. पिछले सप्ताह बाढ़ एनटीपीसी व कांटी थर्मल पावर यूनिट के उद्घाटन से 540 मेगावाट बिजली की बढ़ोतरी हुई. सेंट्रल सेक्टर से बिहार की हिस्सेदारी 2829 मेगावाट हो गयी है. अब सेंट्रल सेक्टर से करीब 2400 मेगावाट बिजली मिल रही है. कांटी थर्मल पावर से दो सौ मेगावाट बिजली मिल रही है. यानी कुल उपलब्धता 2400 से 2600 मेगावाट हो गयी है.
मांग के अनुरूप बिजली की आपूर्ति के बावजूद उपभोक्ताओं को पर्याप्त बिजली नहीं मिल रही है. भले ही शहरों में चौबीस घंटे व गांव-कस्बे में 16 से 18 घंटे बिजली आपूर्ति का दावा किया जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. बिजली कंपनी जिलों को आपूर्ति तो कर रही है, लेकिन इसका पूरा फायदा उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा है. आधारभूत संरचना के अभाव में तकनीकी रूप से लगभग 10 फीसदी बिजली लॉस हो रही है. बिजली कंपनी द्वारा मुख्य शहरों में बिजली भले उपलब्ध करायी जा रही हो, लेकिन गांवों-कस्बे में दस से बारह घंटे ही बिजली मिल रही है.
आधारभूत संरचना के अभाव में उपभोक्ताओं को पर्याप्त बिजली आपूर्ति नहीं मिल रही है. इसकी वजह पावर सब स्टेशन, बिजली तार, कंडक्टर आदि का जजर्र होना है. लोकल फॉल्ट के कारण भी बिजली आपूर्ति पर असर पड़ रहा है. जानकारों के अनुसार गांव-कस्बे में पोल पर लगे बिजली तार की यह स्थिति है कि अगर लगातार आपूर्ति की जाये तो वह गल कर खुद गिर जायेगा. वर्तमान में ट्रांसफॉर्मर जिस क्षमता के हैं, उनमें अधिक लोड देने पर उसके जल जाने का खतरा है. बिजली कंपनी ने मार्च 2014 तक सभी प्रमुख शहरों व दिसंबर तक सभी अनुमंडल मुख्यालय में पर्याप्त बिजली देने की घोषणा की थी. इसके लिए योजना भी बनायी गयी, जिसके तहत उस पर काम चल रहा है. लेकिन स्थिति यह है कि दिसंबर आने में मात्र दस दिन शेष बचे हैं. जिस धीमी गति से काम हो रहा है, उसमें दिसंबर तक अनुमंडलों में पर्याप्त बिजली शायद ही पहुंच जाये. अगले साल बाढ़ एनटीपीसी के एक यूनिट व कांटी थर्मल पावर की दो यूनिट से बिजली उत्पादन शुरू होगा. अगर सिस्टम में सुधार नहीं हुआ, तो इसका लाभ उपभोक्ताओं को नहीं मिल पायेगा.
राज्य में कुल 8394 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइन में 828 सर्किट किलोमीटर का रिकंडक्टरिंग हुआ है. 72 हजार किलोमीटर बिजली तार में लगभग 50 हजार किलोमीटर बिजली तार नया बदला जा चुका है. राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत 45 हजार गांवों में बिजली परियोजना पर काम हो रहा है. राज्य में लगभग 51 लाख बिजली उपभोक्ता हैं.
पीक आवर में खास कर गरमी में तीन हजार से 3300 मेगावाट बिजली की आवश्यकता है. वर्तमान में लगभग 2600 मेगावाट पर्याप्त माना जा रहा है. केंद्रीय सेक्टर सहित कांटी थर्मल पावर से 2400 से 2600 मेगावाट मिल रही है. 13 नवंबर को करीब 2550 मेगावाट बिजली की आपूर्ति की गयी. जरूरत भी करीब इतनी ही थी.
लोकल फॉल्ट के कारण थोड़ी दिक्कत : सीएमडी
बिहार स्टेट पावर होल्डिंग के सीएमडी प्रत्यय अमृत ने बताया कि राज्य को आवश्यकतानुसार बिजली मिल रही है. उपभोक्ताओं तक पर्याप्त बिजली आपूर्ति हो रही है. कहीं-कहीं लोकल फॉल्ट के कारण असुविधा हो सकती है. बिजली आपूर्ति में व्यापक सुधार के लिए बिजली परियोजना पर काम हो रहा है. बिजली आपूर्ति के लिए बीआरजेएफ, आरएपीडीआरपी, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना (अब दीन दयाल उपाध्याय योजना) के तहत काम हो रहा है. सभी चीजों को दुरुस्त किया जा रहा है, ताकि पर्याप्त बिजली मिले.
दावा
1शहर में 24 घंटे बिजली, गांव-कसबे में 16 से 18 घंटे
2ट्रांसफॉर्मर रिपेयर शहर में 24 घंटे, गांव में 72 घंटे
3दिसंबर तक अनुमंडल में पर्याप्त बिजली की घोषणा
हकीकत
1शहर में 22 घंटे, गांव-कसबे में 10 से 12 घंटे
2ट्रांसफॉर्मर रिपेयर शहर में 24 घंटे से अधिक, गांव में निश्चित नहीं
3योजना की गति धीमी होने से संभव नहीं
उपाय
22 हजार किमी तार को बदलना
ट्रांसमिशन सिस्टम को दुरुस्त करना
टीएनडी लॉस को 20 फीसदी तक लाना
कम क्षमता के ट्रांसफॉर्मर को उच्च क्षमता में बदलना
बिजली की डिमांड का नये सिरे से आकलन