मुख्यमंत्री ने पत्रकारों को पेंशन देने की घोषणा की. मुख्यमंत्री ने कहा कि कोई राज्य दे या नहीं दे, लेकिन हम पत्रकारों को पेंशन देंगे. विभाग इसकी योजना तैयार करे. जितनी राशि की जरूरत होगी सरकार देगी. सीएम ने सभी जिलों में प्रेस क्लब खोलने की भी घोषणा की. उन्होंने कहा कि तीन महीने के अंदर सभी जिलों में प्रेस क्लब स्थापित किये जायें. सभी का उद्घाटन ऑनलाइन करेंगे.
बिचौलियों को उजागर करे मीडिया
मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर रविवार को मीडिया से बिचौलियों के कारनामों को उजागर करने की अपील की. मुख्यमंत्री संवाद कक्ष में सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि राजनेता कई दायरों से बंधे होते हैं. वोट के कारण कई बार उन्हें समझौता करना होता है, लेकिन, पत्रकारों के सामने ऐसी कोई बंदिश नहीं होती. उन्हें गरीबों के हक से जुड़ी ऐसी बातों को खुल कर खबर के रूप में परोसना चाहिए, ताकि सरकार इन पर कार्रवाई कर सके. मुख्यमंत्री ने उदाहरण दिया कि जब इंदिरा आवास में नकद दिया जाता था, तो बिचौलिये उसका अधिकतर हिस्सा मार ले जाते थे. जब चेक दिया जाने लगा, तब भी बिचौलिया अपना हिस्सा ले लेते हैं. लाभुकों को मात्र 20 फीसदी राशि ही मिल पाती है.
गरीबों से जुड़ी चीजों पर ध्यान दे मीडिया : मुख्यमंत्री ने कहा कि बिचौलिया गरीब-अनपढ़ महिलाओं से पैसा निकालनेवाले बैंक स्लिप पर या तो ज्यादा राशि भर कर निकाल लेते हैं या फिर एक साथ दो-तीन स्लिप में हस्ताक्षर करवा लेते हैं और उसे बाद में निकाल लेते हैं. जब लाभार्थी जाता है, तो उसके खाते से पैसा निकल चुका होता है. पत्रकारों को भी यह सब मालूम है. वे क्यों नहीं इसका निराकरण करते हैं? पत्रकारों को गरीबों से जुड़ी इन चीजों पर ध्यान देना चाहिए. सीएम ने कहा कि मीडिया की बड़ी भूमिका है. अगर वे इसे उजागर करें, तो कलेक्टर-एसपी से ज्यादा लोग प्रेस से भय खायेंगे. प्रोफेशनल न बनें और पत्रकारिता को सेवा भाव के रूप में लें. मीडिया को समाज का सच्च प्रहरी होना चाहिए. यह स्तंभ (मीडिया) मजबूत हो, तो जनप्रतिनिधि, अधिकारी या फिर जनता टस से मस नहीं होंगे.
60 फीसदी से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे : मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार में 60 फीसदी से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. इनमें भी 80 फीसदी ऐसे हैं, जिन्हें खाने-पीने, रहने, निकलने का रास्ता, स्कूल तक नहीं है. मीडिया के जरिये ऐसी खबरें आयेंगी, तो 15 दिनों के अंदर उस गांव में रोड बनवा देंगे. हम जनप्रतिनिधि जात-पात, भय से काम करते हैं, मीडिया ऐसा न करे, तो रामराज आ जायेगा. विकास का लाभ अब तक हमारे लोगों के पास नहीं पहुंचा है. जिस गांव ने हमें वोट दिया, वहां हम रोड बनवा देते हैं, जिसने नहीं दिया, वहां नहीं बनवाते. अब हमारे पॉलिटिकल साथी इस पर कई बात भी कहेंगे, लेकिन हम भोग कर आये हैं. तकनीकी सत्र में ‘सार्वजनिक मामलों में पारदर्शिता : मीडिया की भूमिका’ पर चर्चा भी आयोजित की गयी. मौके पर विधायक डॉ इजहार अहमद, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के प्रधान सचिव अतिश चंद्रा, निदेशक विपिन कुमार सिंह, उपनिदेशक नीना झा मौजूद थे.
सरकार, जनप्रतिनिधि व प्रेस में हो पारदर्शिता
वरिष्ठ पत्रकार व राज्यसभा सांसद हरिवंश ने कहा कि आज नॉलेज सोसाइटी बनाने का दायित्व मीडिया पर है. जनता के बीच सही खबरों को पहुंचाना भी मीडिया का काम है. इसके लिए सरकार, जनप्रतिनिधि व प्रेस के बीच पारदर्शिता होनी चाहिए. पारदर्शिता लोकतंत्र में अनिवार्य है. उन्होंने कहा कि मीडिया का फोकस आज डेवलपमेंट के पॉलिटिक्स पर होना चाहिए.
मुख्यमंत्री ने दोहराया, आदिवासी ही मूल निवासी
मुख्यमंत्री मांझी ने एक बार फिर कहा कि आदिवासी और अनुसूचित जाति ही बिहार के मूल निवासी हैं. उन्होंने कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया. उस गांव में आठ लोगों की हत्या हुई थी. वहां के लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए कहा था कि वे ही मूल निवासी हैं. तुम जागो, सत्ता तुम्हारे हाथ में आये, ऐसा बनो. जब कोई 12 साल तक कहीं रहता है, तो वोटिंग का अधिकार उसे मिल जाता है और जमीन पर भी हक होता है. यहां तो लोग 500 या 1000 साल से रह रहे हैं. ऐसे में वे भी बिहार के निवासी हैं, विदेशी नहीं हैं, लेकिन आदिवासी व अनुसूचित जाति मूल निवासी हैं. कई इतिहासकारों ने भी इसका जिक्र किया है. पार्टी के कुछ विधायकों की नाराजगी के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मामले पर कौन लोग हल्ला कर रहे हैं यह आप नहीं जानते हैं? मैं उनका नाम नहीं लेना चाहता. इस मामले में न तो शरद यादव और न ही नीतीश कुमार ने कुछ कहा है. वे लोग सब समझते हैं कि कुछ लोग क्यों ऐसा विरोध कर रहे हैं.
मैंने नहीं की मदद तो हार गया चुनाव
मुख्यमंत्री ने अपने जीवन का एक वाकया सुनाने हुए कहा कि 1990 में करीब 185 वोटों से चुनाव हार गये, तो लोग रो रहे थे. इस चुनाव से पहले उन्हीं की जाति के लालजी मांझी की जमीन एक-दो रुपया में जंगल के राजा कहे जानेवाले मुखिया टेकनारायण ने जबरन लिखवा लिया था. लालजी मांझी एक बार उनके पास आये और कहा कि वह जमीन तो ले लिये अब मेरे घर की इज्जत सुरक्षित नहीं है. यादव का वह पूरा बेल्ट था. हमें वोट लेना था, इसलिए उनकी मदद नहीं की. हमें लगा कि मुखिया के खिलाफ जायेंगे, तो 50 हजार वोट स्वाहा हो जायेंगे. इसी के बाद हम चुनाव हार गये थे.
पढ़ने के कारण मेरी हत्या की थी साजिश
मैं पढ़ना चाहता था. मेरे माता-पिता जहां बंधुआ मजदूरी करते थे, वहां चार भाई थे. उनमें से एक कामेश्वर सिंह मुङो पढ़ाने के पक्ष में थे, लेकिन बाकी कहते थे कि अगर मैं पढ़ गया, तो उन्हीं के लिए घातक हो जाऊंगा. मेरा साथ देने पर कामेश्वर सिंह की कई बार पिटाई भी हुई. जब एमए में पढ़ रहे थे, तो गांव में ही मेरी हत्या की साजिश रची गयी. पढ़ने के दौरान भी शनिवार-रविवार को घर जाते थे. एक बार बस से उतरने के बाद सड़क से चार किमी अंदर जाना था. दो रास्ते थे. मैं सीधा न जाकर दूसरे रास्ते से चल गया. सुबह पता चला कि एक व्यक्ति तलवार लेकर मेरा इंतजार कर रहा था.