14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बिहार : नाबालिग बच्चे महफूज नहीं,हर साल गायब हो रहे हैं पांच सौ बच्चे

पटना: बच्चों की गुमशुदगी को लेकर बिहार सरकार के प्रति सुप्रीम कोर्ट का गुस्सा यूं नहीं है. गंभीर मसले के बावजूद शासन-प्रशासन द्वारा कार्य नहीं किये जा रहे हैं. हालत यह है कि बिहार में नाबालिग बच्चे महफूज नहीं हैं. पुलिस की तरफ से कोई ठोस प्रयास नहीं किये जा रहे हैं. बच्चे कहां जा […]

पटना: बच्चों की गुमशुदगी को लेकर बिहार सरकार के प्रति सुप्रीम कोर्ट का गुस्सा यूं नहीं है. गंभीर मसले के बावजूद शासन-प्रशासन द्वारा कार्य नहीं किये जा रहे हैं. हालत यह है कि बिहार में नाबालिग बच्चे महफूज नहीं हैं. पुलिस की तरफ से कोई ठोस प्रयास नहीं किये जा रहे हैं. बच्चे कहां जा रहे हैं, पुलिस इससे बेखबर है. सभी मामलों में गुमशुदगी दर्ज कर पुलिस कुंडली मार कर बैठ जा रही है. पुलिस के ही आंकड़े पर गौर करें, तो प्रति वर्ष करीब 500 बच्चे गुम हो रहे हैं. ये वे बच्चे हैं जिनके नाम-पता व हुलिया पुलिस के रजिस्टर में दर्ज हैं, लेकिन अघोषित आंकड़ा लगभग 700 के आसपास है. दरअसल कई मामलों में केस दर्ज नहीं हो पाते हैं. सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद भी गाइड लाइन पर काम नहीं हो रहा है. एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान बिहार सरकार को फटकार लगा कर पुलिस की कार्यप्रणाली को बेनकाब किया है.
हकीकत यह है कि गुमशुदगी के मामले में पुलिस सिर्फ हाइ प्रोफाइल केस में तेजी दिखा रही है. आम परिवारों के बच्चे नहीं तलाशे जा रहे हैं. खास बात यह है कि गायब होनेवाले बच्चों में गरीब परिवारों के बच्चों की संख्या ज्यादा है. उन्हें बाल श्रम के लिए ले जाया जा रहा है या फिर किसी और काम के लिए, इसकी खबर शायद गुप्तचर एजेंसियों को भी नहीं हैं. यह हाल तब है, जब आतंकवादी संगठन बम ब्लास्ट जैसी हरकत के लिए लगातार नाबालिगों को मोहरा बना रहे हैं. इनकी बानगी पटना व गया ब्लास्ट से मिलती है. दावे के मुताबिक कोर्ट साक्ष्य के आधार पर असलम परवेज को नाबालिग करार चुकी है. कानूनी नजरिये से आरोपित के लिए यह राहत है, जबकि आतंकवादी संगठन इसे हथियार बना रहे हैं. दूसरी तरफ पुलिस गुमशुदगी के मामलों में सनहा दर्ज कर खामोश हो जा रही है.
जिस तरह से बिहार में आतंकी संगठन की जड़ें गहरी हो रही हैं और उससे नाबालिगों के संगठन से जुड़ने और उनके इस्तेमाल की आशंका बढ़ती दिख रही है. वहीं थानों व अधिकारियों के दफ्तर का चक्कर लगाने के बावजूद बच्चों को खो चुके परिजनों के हाथ निराशा ही लग रही है. इस पर कई बार कोर्ट ने चिंता जतायी है. वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 30 अक्तूबर को नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की जन हित याचिका की सुनवाई के दौरान नाराजगी जाहिर की. इस आदेश के बाद पुलिस महकमे में रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं.
हर तीसरे माह होगी समीक्षा : आइजी
नाबालिगों के गायब होने के प्रकरण में कोर्ट के आदेश के आलोक में पुलिस दृष्टक भाग-2 के मुताबिक 211, 212 एवं 213 का पालन किया जा रहा है. एडीजी सीआइडी द्वारा हर तीसरे माह इसकी समीक्षा की जा रही है. – कुंदन कृष्णन, आइजी, पटना जोन
क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन
मई, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने गुमशुदगी के मामले में प्रचार प्रसार करने को कहा था.
राज्य के कानूनी सेवा प्राधिकरण के साथ जांच रिपोर्ट साझा करने का आदेश दिया था.
गुमशुदगी के चार माह तक सफलता नहीं मिलने पर मामला गैर व्यापार मानव यूनिट को देने की बात कही थी.
पुलिस की तरफ से राज्य सरकार को एक्शन टेकेन रिपोर्ट सौंपनी चाहिए, सरकार को कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल करना चाहिए.
गुमशुदा बच्चे की जानकारी नहीं मिलने पर 72 घंटे बाद अपहरण का केस दर्ज होना चाहिए.
गुमशुदगी से अपहरण में तब्दील हुए मामले की मॉनीटरिंग आइजी व डीआइजी स्तर से होनी चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें