पटना: परीक्षा की तिथियां घोषित हो गयीं, पर अब तक करीब 30-35 लाख बच्चों को पाठ्यपुस्तकें नहीं मिली हैं. एक तो सिर पर परीक्षा, ऊपर से सत्र शुरू हुए साढ़े चार महीने का समय बीत जाना, बच्चों के साथ शिक्षक और अभिभावकों की भी परेशानी बढ़ा दी है. शिक्षा विभाग ने 22 सितंबर को कक्षा तीन, पांच व सात के सभी छात्र-छात्रओं की गुणवत्ता की परीक्षा लेना तय किया है. जिन बच्चों को अब तक किताबें नहीं मिली हैं, वे एक महीने बाद होनेवाली इस परीक्षा में कैसे सवालों का हल करेंगे, यह सबसे बड़ा प्रश्न है?
विभाग ने किताबें बच्चों तक पहुंचाने की डेडलाइन 10 अगस्त निर्धारित की थी. लेकिन, दर्जन भर जिलों में कई क्लास की किताबें नहीं गयी हैं. जिन क्लास की किताबें गयी भी हैं, वे भी शत-प्रतिशत नहीं गयी हैं. हालांकि, बिहार टेक्स्ट बुक कमेटी का दावा है कि सभी जिलों में किताबें भेजी जा चुकी हैं. वहीं, पश्चिमी चंपारण जिले में पांचवीं क्लास की किताबें अब तक नहीं पहुंच सकी हैं.
अन्य क्लास की जो किताबें आयी हैं, वे छात्र-छात्रओं के अनुपात में नहीं हंै. यहां लगभग 60 फीसदी बच्चों को ही किताबें मिली हैं. यही हाल बेतिया के राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय परसंडा, मध्य विद्यालय मंजलपुर, मध्य विद्यालय कुंजलही का है. दरभंगा जिले की स्थिति और खराब है. वहां क्लास तीन, सात और आठ क्लास की ही किताबें स्कूलों में बंट सकी हैं. क्लास एक, दो, चार, पांच की किताबें बच्चों तक नहीं पहुंची हैं. मध्य विद्यालय आनंदपुर (हायाघाट), कन्या मध्य विद्यालय पसोर, मध्य विद्यालय सिधौली, प्राथमिक विद्यालय अनारकोठी समेत जिले के शिक्षक पुराने किताबों से ही बच्चों को पढ़ा रहे हैं. पूर्वी चंपारण के राजकीय प्राथमिक विद्यालय, कवैया में क्लास एक पांच तक की पूरी किताबें हीं पहुंच पायी हैं. एक तो किताबों के सेट की कमी और दूसरी सेट से भी कई किताबें कम हैं. इसके अलावा घोड़ासहन, बनकटवा, मेहषी तेतरिया, हरसिद्धी प्रखंडों के सभी स्कूलों में किताबें नहीं पहुंच पायी हैं. जिले में बाढ़ और आवागमन की सुविधा को किताबें पहुंचाने में देरी का कारण बताया जा रहा है. औरंगाबाद जिले में भी क्लास छह व आठ की मात्र 30-40 फीसदी किताबें बांटी गयी हैं. मध्य विद्यालय, करहरा, मध्य विद्यालय, अरवी, मध्य विद्यालय, सबरावा और मध्य विद्यालय, घोघरडीहा में क्लास चार-सात की किताबें नहीं मिली हैं. प्रारंभिक स्कूलों में करीब दो करोड़ बच्चे पढ़ रहे हैं.
किताबें पहुंचने में ऐसी हुई देरी
प्रारंभिक स्कूलों के क्लास एक से आठ में सत्र अप्रैल से ही शुरू हो गया था, लेकिन पहले दो महीने अप्रैल-मई तक स्कूलों में ‘समझो-सीखे’ कार्यक्रम चलाया गया. इसमें पिछली क्लास की ही किताबों का रिविजन करना था. इस बीच लोकसभा चुनाव आया गया. स्कूलों में बूथ बनाये गये थे. वहां किताबें जाने के बाद रखने में दिक्कत होती, इसलिए शिक्षा विभाग का निर्देश था कि मई के अंत तक किताबें पहुंचायी जाएं, लेकिन नहीं पहुंचायी जा सकी. इसके बाद स्कूलों में गरमी छुट्टी हो गयी. तय हुआ कि गरमी छुट्टी से पहले स्कूलों में किताबें पहुंचा दी जायेंगी, लेकिन एक बार फिर ये दावे फेल हो गये. किताबें पहुंचाने की डेडलाइन 30 जून की गयी, फिर विधानमंडल में शिक्षा मंत्री वृशिण पटेल ने 31 जुलाई तक बच्चों को किताबें पहुंचा देने का आश्वासन दिया. इस डेडलाइन के बीतने तक 74 फीसदी किताबें जिलों को भेजी जा सकीं. इसके बाद जिला शिक्षा पदाधिकारियों की बैठक 10 अगस्त तक किताबें पहुंचा देने का दावा किया गया, लेकिन सूत्रों की मानें तो 15-18 फीसदी किताबें अब तक भी नहीं भेजी जा सकी हैं.