आज 29 अगस्त है. हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन. इस अवसर पर बिहार के उत्कृष्ट खिलाड़ियों को सम्मानित किया जायेगा, खूब तालियां भी बजेंगी और फिर सब भूल जायेंगे. इन खिलाड़ियों को यहां तक पहुंचने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा है, इससे किसी को कोई मतलब नहीं और कोई जानना भी नहीं चाहता है. आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराना तो दूर की बात है. आज हम बात कर रहे हैं उन खिलाड़ियों के बारे में जो सुविधाओं के अभाव के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनौती पेश कर रहे हैं. अगर इन्हें पर्याप्त सुविधाएं और मदद मिलें, तो देश और राज्य का नाम रोशन करने के लिए ये असंभव माने जाने वाले रिकॉर्ड को भी तोड़ सकते हैं.
कराटे का शौक रखनेवाला हादसे के बाद बना तैराक
यह किसी फिल्म की कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है. 23 साल का नौजवान अपनी आंखों में भविष्य के सपने को संजोये हर दिन खुशी से जी रहा था, लेकिन एक हादसे ने इसे व्हीलचेयर पर बैठा दिया. तब भी उसने हार नहीं मानी और लगातार खुद को साबित करने के लिए जद्दोजहद में जुटा रहा. हम बात कर रहे हैं बिहार के मधुबनी जिला के रथौस गांव के रहनेवाले शम्स आलम शेख के बारे में, जो बिहार के तमाम पैरा खिलाड़ियों के लिए एक मिसाल हैं. शम्स 23 साल के उम्र तक कराटे खिलाड़ी थे, लेकिन रीढ़ की हड्डी में हुए ऑपरेशन ने उन्हें व्हीलचेयर पर ला दिया. शम्स ने जिंदगी में मिले इस झटके से उबरने के लिए खेल का सहारा लिया और उन्होंने पैरा तैराकी चुनी. जिसमें उनकी रैकिंग विश्व नंबर वन तक पहुंची. शम्स ने इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में हुए पैरा एशियन गेम्स 2019 में हिस्सा लिया, लेकिन पदक जीतने में नाकाम रहे. हालांकि राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में आज भी उनका अब भी जलवा है. फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर वह बैक स्ट्रोक 100 मीटर तैराकी में नंबर वन पर हैं. शम्स का कहना है कि राज्य सरकार सामान्य खिलाड़ियों की तरह दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए भी बिहार में ट्रेनिंग सेंटर खोले, जहां हमारे लिए खेल की जरूरी साजो-सामान उपलब्ध हो. यहां सुविधा नहीं होने की वजह से मुझे मुंबई में रहकर अभ्यास करना पड़ता है. ऐसे में कई दिव्यांग हैं, जो खर्च की वजह से खेल से दूर ही रहना चाहते हैं. शम्स को राज्य सरकार ने खेल सम्मान से सम्मानित करने के लिए चुना है.
घर की जिम्मेदारी के साथ-साथ खेल में भी हैं अव्वल
खगड़िया की रहनेवाली कविता उनलोगों के लिए मिसाल हैं, जो घर संभालने के बाद अपना खेल छोड़ देते हैं, लेकिन कविता ने इसे गलत साबित किया है. रग्बी एशियन चैंपियनशिप में खेल चुकी कविता के पिता का स्वर्गवास आज से दो साल पहले हो गया. घर चलाने की जिम्मेदारी कविता और उसके हमउम्र भाई पर है. यह दोनों आस-पास के बच्चों को होमट्यूशन देकर अपने घर का खर्च चलाते हैं और इससे समय निकालकर कविता रोज सुबह और शाम अभ्यास भी करती हैं. कविता ने कहा कि इससे पहले मैं कबड्डी खेलती थी, लेकिन रग्बी फुटबॉल देखने के बाद मैं इससे जुड़ी और पिछले दो सालों से बिहार के लिए पदक जीत रही हूं. नेशनल प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद मेरा चयन भारतीय टीम के कैंप में हुआ. कैंप में बेहतर करने के बाद ब्रुनोई में होनेवाली एशियन रग्बी चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम में जगह मिली. हालांकि टीम इस चैंपियनशिप में चौथे स्थान पर रही. कविता ने कहा कि खगड़िया में रग्बी का अभ्यास करना मुश्किल है, लेकिन खेल संघ की मदद से मैंने यहां पर कुछ खिलाड़ियों को इसकी ट्रेनिंग देनी शुरू की है. यहां रग्बी को लोकप्रिय करने में समय लगेगा.
छत से गिरने के बाद अर्चना को खेल का मिला सहारा
10 साल की उम्र में छत से गिरने के बाद अर्चना फिर कभी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पायीं. व्हीलचेयर पर बैठकर अर्चना ने अपनी किस्मत लिखी है. 2009 से लेकर अबतक अर्चना ने 10 सालों में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक जीते हैं. बांका के नगरी गांव की रहनेवाली अर्चना ने इन टूर्नामेंटों में छह गोल्ड मेडल जीते हैं. जकार्ता में हुए पैरा एशियन गेम्स में अर्चना का चयन भारतीय टीम के साथ हुआ था. जहां वह चौथे स्थान पर रहीं. 2006 में हुए हादसे से पहले अर्चना का लगाव कबड्डी से रहा, लेकिन हालात बदलने के बाद वह एथलेटिक्स से जुड़ गयीं. अर्चना ने बताया कि दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए राज्य सरकार को ट्रेनिंग सेंटर बनानी चाहिए. उनके अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में आने-जाने का खर्च भी वहन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि मेरे पिता महेश मंडल छोटे किसान हैं, जो मेरा खर्च वहन करने में अक्षम हैं. फिर भी उन्होंने अपने खर्च पर मुझे बिजिंग और दुबई में होनेवाले टूर्नामेंटों के लिए भेजा, जिससे मेरे घर की आर्थिक स्थिति और खराब हो गयी. अर्चना को पैरा एशियन गेम्स में सहभागिता के लिए बिहार सरकार 29 अगस्त को सम्मानित करेगी.
एशियन कराटे में कांस्य जीत कर अनन्या बनीं बिहार की श्रेष्ठ खिलाड़ी
पटना की रहने वाली अनन्या आनंद को इस वर्ष खेल सम्मान में श्रेष्ठ खिलाड़ी के सम्मान से नवाजा जायेगा. पहली बार इस सम्मान के लिए चुने जाने पर अनन्या ने कहा कि यह मेरा विगत 10 सालों के परिश्रम का फल है. अनन्या ने अपने कराटे की शुरुआत चौथी क्लास से शुरू की थी, जो अनवरत जारी है. अनन्या के इस सफर में उनका परिवार हमेशा साथ रहा. अनन्या के पिता ओंकार शरण ने कहा कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि मेरी बेटी को श्रेष्ठ खिलाड़ी के सम्मान से नवाजा जायेगा. अनन्या की ट्रेनिंग और टूर्नामेंट के लिए अभी तक जितने भी हमने प्रयास किये, वह सफल हुआ है. सरकार से अनुरोध है कि कराटे खिलाड़ियों के लिए ट्रेनिंग सेंटर बनाये, जिसमें सभी सुविधाएं मौजूद हों. क्योंकि इनके अभ्यास और मैच के दौरान आनेवाली चोटों में बहुत खर्च होता है, जिससे गरीब परिवार के खिलाड़ी वहन करने में सक्षम नहीं होते हैं और उन्हें बीच में ही खेल छोड़ना पड़ता है. अनन्या ने राष्ट्रीय विद्यालय में कुल चार मेडल जीते हैं, जिसमें तीन कांस्य और एक गोल्ड मेडल शामिल है. स्कूलिंग खत्म होने के बाद भी अनन्या का जलवा बरकरार है. टीपीएस कॉलेज में अंग्रेजी से स्नातक कर रही अनन्या ने इसी वर्ष ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में गोल्ड मेडल जीता है.
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