हमारा पूरा विश्व एक विद्यालय की तरह है. यहां हर कहीं से भी शिक्षा ली जा सकती है. शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सकारात्मक सदुपयोग किया जा सकता है. इसलिए पूरे विश्व को एक ही इकाई मान कर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए. सही मायने में यदि समाज में और बच्चों में सही प्रकार से शिक्षा दी जाये, तो मैं समझता हूं कि हमारे समाज से अनेकों बुराइयों को मिटाया जा सकता है.
इसलिए अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए अच्छे शिक्षक का होना भी जरूरी है. एक शिक्षक वह नहीं होता, जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंस दे, बल्कि वास्तविक शिक्षक वह होता है, जो छात्र को उसके जीवन में आनेवाली कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे. अगर हम दुनिया के इतिहास को देखें, तो यह पायेंगे कि हमारी सभ्यताओं का निर्माण उन महान ऋषियों और खोज करनेवाली वैज्ञानिकों के हाथों से हुआ है, जो स्वयं विचार करने की सामर्थ्य रखते हैं.
ये महान ऋषि और वैज्ञानिक ऐसे शिक्षक की तरह हैं, जो देश और काल की गहराइयों में प्रवेश करते हैं, उनके गूढ़ रहस्यों का पता लगाते हैं और इस तरह से प्राप्त ज्ञान का उपयोग करके वे विश्व श्रेय या लोक-कल्याण के लिए अध्यात्मिक और वैज्ञानिक शिक्षा का सूत्रपात करते हैं. मेरा मानना है कि ज्ञान जहां से भी मिलने की संभावना हो, एक व्यक्ति को उस ज्ञान को तुरंत प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि ज्ञान ही है, जो हमें शक्ति देता है.
प्रेम हमें परिपूर्णता तो देता है, लेकिन ज्ञान की शक्ति से ही समाज को एक नयी दिशा दी जा सकती है. किसी भी देश में वहां के लोगों में शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए, जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके. अच्छी शिक्षा के लिए अच्छी पुस्तकें भी जरूरी हैं.
पुस्तकें वह साधन हैं, जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच एक पुल का निर्माण कर सकते हैं. पुस्तकें पढ़ने से हमारे अंदर एकांत में विचार करने की आदत विकसित होती है और सच्ची खुशी मिलती है. एक साहित्यिक प्रतिभा के बारे में कहा जाता है कि यह प्रतिभा हर एक की तरह दिखती है, लेकिन उस जैसा कोई नहीं दिखता.
– डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन