37.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

जानें! आयुर्वेद शास्त्र में हनुमान जी के कुछ प्रभावी मंत्र

आयुर्वेद शास्त्र की गणना उपवेदों में है. श्रीराम दूत हनुमान शास्त्रों में अमर माने गये हैं. एसका एक कारण तो सीता माता की ओर से उन्हें मिला आशिर्वाद है – ‘अजर अमर गुननधि सूत होहू.’ दूसरा कारण उनका ब्रह्मचर्य व्रत का पालन है. जिसके संबंध में शास्त्रों का मत है – ‘मरणं विन्‍दुपातेन जीवनं विन्‍दुधारणात्.’ […]

आयुर्वेद शास्त्र की गणना उपवेदों में है. श्रीराम दूत हनुमान शास्त्रों में अमर माने गये हैं. एसका एक कारण तो सीता माता की ओर से उन्हें मिला आशिर्वाद है – ‘अजर अमर गुननधि सूत होहू.’ दूसरा कारण उनका ब्रह्मचर्य व्रत का पालन है. जिसके संबंध में शास्त्रों का मत है – ‘मरणं विन्‍दुपातेन जीवनं विन्‍दुधारणात्.’ इसके अतिरिक्त हनुमान जी को आयुर्वेद का अच्छा ज्ञाता भी माना जाता है. शास्त्रों का मत है कि जब लक्ष्‍मण जी को शक्तिबाण लगा था तब वैद्यराज सुसैन ने संजीवनी बुटी लाने के लिए हनुमान जी को ही भेजा था. वे जानते थे कि हनुमान जी आयुर्वेद के ज्ञाता हैं. पवनकुमार हनुमान भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्र हैं और पवन पुत्र होने के कारण उनका वायु से घनिष्‍ठ संबंध है. एकादश रुद्रों के बारे में शास्त्रों का एक मत यह भी है आत्मा सहित दसो वायु – 1. प्राण, 2. अपान, 3. व्यान, 4. समान, 5. उदान, 6. देवदत्त, 7. कूर्म, 8. कृकल, 9. धनंजय और 10. नाग भी ग्यारह रुद्र हैं. इस वायु पर जो विजय प्राप्त कर लेता है, वह योगी प्राणवायु को प्रह्मांड में स्थिर कर लेने में समर्थ हो जाता है. तभी उसे अष्‍टसिद्धियां भी प्राप्त होती हैं. हनुमान जी अष्‍टसिद्धियों के दाता हैं. उनके द्वारा समय-समय पर प्रदर्शित किये गये अष्‍टसिद्धियों के उदाहरण भी गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में विभिन्न स्थालों पर दिये हैं.

आयुर्वेद के आचार्य चरक, वाग्भट, सुश्रुत आदि महर्षियों ने इस शास्त्र को मुख्‍यत: तीन तत्वों या दोषों पर अवलम्बित बताया है. ये हैं 1. वात, 2. पित्त और 3. कफ. ये तीनों दोष आयुर्वेद के स्तंभ हैं. इसकी वशिमता ही विभिन्न रोगों को दावत देती है. श्री हनुमान जी पवनपुत्र हैं अत: वे वायुस्वरुप और प्रधान वायु के अधिष्‍ठाता हैं. वात के अधिष्‍ठाता होने के कारण हनुमानजी की आराधना से संपूर्ण वात व्याधियों का नाश होता है. हनुमान जी सभी रोगों को नष्‍ट करने वाले हैं. यदि वात शुद्ध रूप में उपस्थित हो तो प्राणी निरोग रहता है. आध्‍यात्मिक दृष्टिकोण से संपूर्ण रोगों के मूल कारण पा्रणी के पूर्व या इसी जन्म के पाप ही होते हैं, अत: आयुर्वेद के ज्ञाता महर्षियों ने अपनी संहिता में स्पष्‍ट किया कि देवार्चनपूर्वक ओषधि सेवन से ही मानसिक और शारीरिक व्याधियां दूर होती हैं.

जो असाध्‍य रोगी हों और जीवन से हताश हो चुके हों, उन्हें हनुमान जी की आराधना अवश्‍य करनी चाहिए. वात व्‍याधियों के लिए श्रीपवनकुमार की उपासना और उनके मंत्रों का जप विशेष रूप से लाभ पहुंचाने वाला होता है. गोस्वामी तुलसीदास की भुजाओं में वायु प्रकोप से भीषण पीड़ा हो रही थी. उसी समय उन्होंने ‘हनुमानबाहुक’ की रचना करके उसके चमत्कारिक प्रभाव का अनुभव किया था.

“हनूमन्नञ्जनीसूनो वायुपुत्र महाबल।

अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते।।”

इस मंत्र का जाप 11 दिनों तक 3 हजार माला का करना होता है. इसके जाप से अकास्‍मात आई हुई कोई भी विपत्ति से पार पाया जा सकता है. मंत्र के जाप के बाद हवन कर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और उन्हें यथा शक्ति दान देना चाहिए.

नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

यह घोर वात व्याधि का शामक है. इसका जाप अधिक से अधिक करने से हर प्रकार का रोग व्याधि दूर होता है. सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है.

बुद्धिहीन तनुजानिकेसुमिरौं पवन कुमार ।

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस विकार ।।

इस दोहे का जाप कलह, क्लेश, रोग एवं शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों का नाश होता है. जबतक रोग नष्‍ट ना हो जाए तब तक इसका जाप करते रहना चाहिए

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें