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जीत की ओर कदम है हार
भारत में एक कहावत है- कार्य की सिद्धि सत्व से होती है, वस्तुओं से नहीं. किसी कार्य को सिद्ध करने के लिए सत्व गुण बढ़ना चाहिए और सत्व बढ़ाने के लिए क्या करें? सही आहार, सही व्यवहार और अपने मन को विश्राम देना सबसे पहले है. अगर इसके बावजूद भी कभी कोई हार हाथ लगे, […]
भारत में एक कहावत है- कार्य की सिद्धि सत्व से होती है, वस्तुओं से नहीं. किसी कार्य को सिद्ध करने के लिए सत्व गुण बढ़ना चाहिए और सत्व बढ़ाने के लिए क्या करें? सही आहार, सही व्यवहार और अपने मन को विश्राम देना सबसे पहले है.
अगर इसके बावजूद भी कभी कोई हार हाथ लगे, तो सत्वगुण उत्साह तो कम होने नहीं देता. और फिर छोड़ने का प्रश्न ही मन में नहीं उठता. जब एक बार जीतने का चस्का लग जाये, तो फिर बार-बार खेलने का मन करता है. इधर-उधर कोई हार भी हाथ लगे तो फिर भी मन में कुछ अच्छा करने का विश्वास तो बना ही रहता है. यह विश्वास तब आता है, जब काम के प्रति श्रद्धा हो.
जैसे मन में शांति और कृत में जोश से कितने लोग आजादी के लिए लड़ते रहे. ऐसे लोगों को कोई पैसा नहीं मिलता था, वे चोरी नहीं करते थे, पर वे लोग पीछे नहीं हटे. हर हार जीत की ओर एक कदम है. एक कारण अपने में कोई कमी हो सकती हैं या व्यवस्था में कोई कमी. अपने में कमी जैसे किसी ने सही ढंग से प्रदर्शन नहीं किया.
जैसे अगर तुम एक साक्षात्कार में जाते हो और कुछ ज्यादा बोल देते हो तो साक्षात्कार लेनेवाले के मन में संदेह उठ जाता है कि तुम वह काम कर पाओगे के नहीं. अपने में कमी को दूर करने के लिए योग्यता बढ़ाओ. हर हार जीत की तरफ एक कदम है- तो यह देखो तुमने क्या सीखा! क्या तुम भावनाओं के साथ बह गये? जो लोग उसी काम में हैं, क्या तुमने उन्हे संपर्क किया?
तुम उन पर विश्वास नहीं करते, या तुमने भरोसेमंद लोगों को अपने साथ नहीं रखा? सब कारण हो सकते हैं. तो अपनी योग्यता बढ़ाने के लिए अपने क्षेत्र के ज्ञान की गहराई में जाओ. फिर आता है व्यवस्था को ठीक करना! तो यह तुम अकेले नहीं कर सकते. जैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ करना हो, तो तुम अकेले नहीं लड़ सकते.
समूह के साथ चलो और लोगों को अपने भरोसे में लो. लोगों में जागृति पैदा करके उन्हें अपने साथ लेकर चलने की कोशिश करो. लोग कहते हैं यह समय कलयुग की चरम सीमा है, और ऐसा लगता है जैसे सत्य कहीं दब गया है. अगर तुम्हें ऐसा लगता है, तो समूह में चलो और फिर देखो कि काम होता है या नहीं.
– श्री श्री रविशंकर
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