वाक्शक्ति से संपन्न व्यक्ति जब बोलता है, तब सुननेवाले को लगता है कि मानो वह दूध पी रहा है, मधु चाट रहा है. शब्द इतने मीठे होते हैं. हर व्यक्ति इस शक्ति को प्राप्त कर सकता है. इसके लिए उसे संयम अपनाना होगा और अपनी जिह्वा को पवित्र बनाना होगा. एक राजा एक आचार्य के पास आकर बोला- गुरुदेव! देवताओं की आयु बहुत लंबी होती है.
क्या वे जीते-जीते नहीं अघाते? आचार्य ने कहा- वे इतने सुख में जीते हैं कि उन्हें काल का बोध ही नहीं होता. काल का बोध उन्हें होता है, जो कष्ट में जीवन बिताते हैं. राजा ने कहा- यह कैसे संभव है? काल का बोध क्यों नहीं होता? आचार्य ने कहा- राजन्! कुछ देर उपदेश तो सुन लो. राजा उपदेश सुनने बैठ गया. आचार्य बोलने लगे. दो प्रहर बीत गये, पर राजा तन्मय होकर सुनता रहा. उपदेश के अंत में आचार्य ने राजा से पूछा- कितने समय से उपदेश सुन रहे हो? राजा ने उत्तर दिया- गुरुदेव! अभी मात्र दो क्षण ही तो हुए हैं.
अभी ही तो आपने उपदेश शुरू किया है. आचार्य ने कहा- राजन्! तुम्हें उपदेश इतना मीठा और सरस लगा कि काल का बोध ही नहीं हुआ. मुझे बोलते दो प्रहर हो गये हैं. राजा अवाक् रह गया. यह वाक्शक्ति का एक रूप है.
– आचार्य महाप्रज्ञ