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स्वार्थ छूटे, तो त्याग संभव

यदि तुम ईश्वर को पाना चाहते हो, तो तुम्हें काम-कांचन का त्याग करना होगा. अंधकार और प्रकाश क्या कभी एक साथ रह सकते हैं? यह संसार असार, मायामय और मिथ्या है. लाख यत्न करो, पर इसे बिना छोड़े ईश्वर को कदापि नहीं पा सकते. यदि यह न कर सको, तो मान लो कि तुम दुर्बल […]

यदि तुम ईश्वर को पाना चाहते हो, तो तुम्हें काम-कांचन का त्याग करना होगा. अंधकार और प्रकाश क्या कभी एक साथ रह सकते हैं? यह संसार असार, मायामय और मिथ्या है. लाख यत्न करो, पर इसे बिना छोड़े ईश्वर को कदापि नहीं पा सकते. यदि यह न कर सको, तो मान लो कि तुम दुर्बल हो; किंतु स्मरण रहे कि अपने आदर्श को कदापि नीचा न करो.
सड़ते हुए मुरदे को सोने के पत्ते से ढकने का यत्न न करो. अस्तु, यदि धर्म की उपलब्धि करनी है, यदि ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो भूल-भुलैया का खेल खेलना छोड़ना होगा. केवल त्याग के द्वारा ही इस अमृतत्व की प्राप्ति होती है. त्याग से ही महाशक्ति का आविर्भाव होता है. वह और की तो बात क्या, विश्व की ओर नजर उठा कर नहीं देखता. तभी सारा ब्रह्मांड उसके निकट गोष्पद-सा नजर आता है. त्याग ही भारत की सनातन पताका है.
इसी पताका को समग्र जगत में फहरा कर, मरती हुई सभी जातियों को भारत यही एक शाश्वत विचार बार-बार प्रेषित कर उन्हें सब प्रकार के अत्याचारों एवं असाधुताओं के विरुद्ध सावधान कर रहा है. वह मानो ललकार कर उनसे कह रहा है, ‘सावधान! त्याग के पथ का, शांति के पथ का अवलंबन करो, नहीं तो मर जाओगे!’ त्याग का अर्थ है- स्वार्थ का संपूर्ण अभाव. बाह्य रूप से संपर्क न रखने से त्याग नहीं हो जाता. जैसे हम अपना धन दूसरे के पास रखें और स्वयं उसे छुएं तो नहीं, पर उससे लाभ पूरा उठाएं, तो यह त्याग नहीं है. सभी प्रकार का स्वार्थ छोड़ें, तो ही त्याग संभव है.
स्वामी विवेकानंद

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