13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बद्धजीवन से मुक्ति

शरीरगत भेद अर्थहीन होते हैं. परम सत्य का ऐसा ज्ञान वास्तविक (यथार्थ) ज्ञान है. जहां तक विभिन्न जातियों या विभिन्न योनियों में शरीर का संबंध है, भगवान सभी पर समान रूप से दयालु हैं, क्योंकि वे प्रत्येक जीव को अपना मित्र मानते हैं, फिर भी जीवों की समस्त परिस्थितियों में वे अपना परमात्मा स्वरूप बनाये […]

शरीरगत भेद अर्थहीन होते हैं. परम सत्य का ऐसा ज्ञान वास्तविक (यथार्थ) ज्ञान है. जहां तक विभिन्न जातियों या विभिन्न योनियों में शरीर का संबंध है, भगवान सभी पर समान रूप से दयालु हैं, क्योंकि वे प्रत्येक जीव को अपना मित्र मानते हैं, फिर भी जीवों की समस्त परिस्थितियों में वे अपना परमात्मा स्वरूप बनाये रखते हैं.
शरीर तो प्रकृति के गुणों से उत्पन्न हुए हैं, किंतु शरीर के भीतर आत्मा तथा परमात्मा समान आध्यात्मिक गुण वाले हैं. परंतु आत्मा तथा परमात्मा की यह समानता उन्हें मात्रत्मक दृष्टि से समान नहीं बनाती, क्योंकि व्यष्टि आत्मा किसी विशेष शरीर में उपस्थित होती है, किंतु परमात्मा प्रत्येक शरीर में है. आत्मा तथा परमात्मा के लक्षण समान हैं क्योंकि दोनों चेतन, शात तथा आनंदमय हैं.
किंतु अंतर इतना ही है कि आत्मा शरीर की सीमा के भीतर सचेतन रहती है, जबकि परमात्मा सभी शरीरों में सचेतन है. परमात्मा बिना किसी भेदभाव के सभी शरीरों में विद्यमान है. मानसिक समता आत्म-साक्षात्कार का लक्षण है.
जिन्होंने यह अवस्था प्राप्त कर ली है, उन्हें भौतिक बंधनों- जन्म तथा मृत्यु पर विजय प्राप्त किये हुए मानना चाहिए. जब तक मनुष्य शरीर को आत्मस्वरूप मानता है, वह बद्धजीव माना जाता है, किंतु जैसे ही वह आत्म-साक्षात्कार द्वारा समचित्तता की अवस्था को प्राप्त कर लेता है, वह बद्धजीवन से मुक्त हो जाता है. दूसरे शब्दों में, उसे इस भौतिक जगत में जन्म नहीं लेना पड़ता, अपितु अपनी मृत्यु के बाद वह आध्यात्मिक लोक को जाता है.
स्वामी प्रभुपाद

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें