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छठ पूजा की पौराणिक कथाएं : नदी में एक पैर पर खड़े होकर सूर्योपासना किया करते थे कर्ण

भारत में सूर्योपासना ऋग्वैदिक काल से होती आ रही है. सूर्य और उपासना की चर्चा विष्णुपुराण, भगवतपुराण, ब्रहापुराण, वैवर्तपुराण आदि में विस्तार से मिलती है. मध्यकाल तक आते-आते छठ सूर्योपसना के एक व्यवस्थित पर्व के रूप में समाज में प्रतिस्थापित हो चुका था. छठ के धार्मिक इतिहास पर नजर डालें, तो हमें इसकी समृद्धता का […]

भारत में सूर्योपासना ऋग्वैदिक काल से होती आ रही है. सूर्य और उपासना की चर्चा विष्णुपुराण, भगवतपुराण, ब्रहापुराण, वैवर्तपुराण आदि में विस्तार से मिलती है. मध्यकाल तक आते-आते छठ सूर्योपसना के एक व्यवस्थित पर्व के रूप में समाज में प्रतिस्थापित हो चुका था. छठ के धार्मिक इतिहास पर नजर डालें, तो हमें इसकी समृद्धता का पता चलता है. छठ पर्व हिंदू कैलेंडर के कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है.
हालांकि चार दिनों के इस त्योहार की शुरुआत चतुर्थी तिथि से ही हो जाती है, पर मुख्य पूजा षष्ठी को की जाती है. इसी वजह से इस त्योहार का नाम छठ पड़ा है. इसकी शुरुआत को लेकर कई मान्यताएं हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीराम सूर्यवंशी थे. सूर्य देव उनके कुल देवता थे. रावण वध के बाद जब वह सीता को लेकर अयोध्या लौट रहे थे, तो सरयू नदी के तट पर उन्होंने अपने कुल देवता सूर्य देव की पूजा की थी. वह तिथि कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी ही थी.
अपने राजा को सूर्य देव की पूजा करतेे देख कर वहां की प्रजा ने इस दिन पूजा करना प्रारंभ कर दिया, जो कि आज तक छठ के रूप में जारी है. एक दूसरी कथा के अनुसार महाभारत काल में जब महाराज पांडु अपनी पत्नी कुंती और माद्री के साथ वन में दिन गुजार रहे थे, उन दिनों पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महारानी कुंती ने सरस्वती नदी में सूर्य की पूजा की थी. फलस्वरूप ही कुंती के गर्भ से कर्ण पैदा हुए.
इसी वजह से आज भी लोग संतान प्राप्ति की इच्छा से छठ पर्व करते हैं. वहीं एक कथा यह भी है कि जब पांडव पुत्र राज पाट हार कर वन में भटक रहे थे, तो द्रौपदी और कुंती ने एक साथ मिल कर सुख और समृद्धिशाली परिवार की कामना करते हुए छठ पर्व को किया था. कुंती पुत्र कर्ण भी सूर्य के उपासक थे. मान्यता है कि कर्ण रोजाना नदी में एक पैर पर खड़े होकर सूर्योपासना किया करते थे.

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