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चुनौतियों से निबटने की तैयारी है

प्रो डॉ एम वली, राष्ट्रपति के पूर्वचिकित्सक एवं सीनियर फिजिशियन सरगंगा राम हॉस्पिटल delhi@prabhatkhabar.in कोरोना वायरस को लेकर अधिक भयभीत नहीं होना है. हालात अभी भी नियंत्रण में हैं. हमारे पास अभी एक सप्ताह का समय है. इस अवधि में क्या हालात होंगे, यह समय बतायेगा. हमारे सामने मुख्य रूप से दो चुनौतियां है, एक […]

प्रो डॉ एम वली,

राष्ट्रपति के पूर्वचिकित्सक एवं सीनियर फिजिशियन सरगंगा राम हॉस्पिटल

delhi@prabhatkhabar.in

कोरोना वायरस को लेकर अधिक भयभीत नहीं होना है. हालात अभी भी नियंत्रण में हैं. हमारे पास अभी एक सप्ताह का समय है. इस अवधि में क्या हालात होंगे, यह समय बतायेगा. हमारे सामने मुख्य रूप से दो चुनौतियां है, एक तो इस बीमारी पर काबू पाना है, दूसरा गिरती अर्थव्यवस्था को भी संभालना है. हमें प्रधानमंत्री द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों के अनुसार काम करने की आवश्यकता है. साथ ही जांच प्रक्रिया बढ़ाने और मामलों को नियंत्रित करने की सबसे ज्यादा जरूरत है. अभी देखनेवाली बात है कि कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़ेगी. संभव है कि आनेवाले दिनों में यह कई गुना बढ़े, क्योंकि अब हम तेजी से टेस्ट करेंगे. टेस्ट करेंगे, तो कोरोना के ज्यादा से ज्यादा मामले सामने आयेंगे. खास बात है कि जब हम रैपिड टेस्ट शुरू करेंगे, तो हमें एक ऐसी जनसंख्या का पता लगेगा, जिसमें कोरोना के खिलाफ लड़ने की क्षमता अपेक्षाकृत अधिक है, यानी ऐसे लोग जिनमें प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है. उस टेस्ट से यह पता चलेगा कि कोरोना से पीड़ित व्यक्ति में यह प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गयी है और उसका आईइएम पॉजिटिव आया है.

इससे हमें बड़ी सूचना मिलेगी. इसके आधार पर हम लोगों को अलग या आइसोलेट कर सकते हैं और उनका अलग से इलाज कर सकते हैं. अगर उसके बाद लक्षण उभरते हैं, तो अलग से पीसीआर टेस्ट कर लेंगे. अभी जिस तरह से मामले सामने आ रहे हैं और मौतें हो रही हैं, उससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है, उससे कई गुना ज्यादा मौतें रोज अस्पतालों में होती हैं. सामान्य तौर पर बड़े अस्पतालों में रोजाना दो-तीन मौतें होती हैं. अगर हम एक आंकड़ा लगा लें, तो देश में कई बड़े अस्पताल हैं, जहां रोजाना दो-तीन हजार मौतें तो होती ही हैं. इसकी वजह कोरोना ही नहीं होता. उनमें से जो हृदयरोगी, कैंसर, प्रत्यारोपण रोगी, डायलिसिस रोगी, निमोनिया के रोगी हैं, उनकी केवल रोजाना मौतें हो रही हैं.दूसरी बड़ी बात है कि हमारे यहां जो 30 से 40 प्रतिशत मरीज हैं, वे 60 साल से कम आयु वर्ग के हैं. यह एक बड़ी संख्या है, ऐसा यूरोप में नहीं है. स्वास्थ्य मंत्रालय की विज्ञप्ति में भी बताया गया है कि कुल मरीजों में 45 साल की उम्र तक 37 प्रतिशत मरीज हैं, 40 साल से 60 साल के बीच करीब 27 प्रतिशत मरीज हैं. खास बात है कि इन आयु समूह में मौत नहीं होती है, जब तक कि उनमें कोई और बीमारी न हो. बीते दिनों एक 82 वर्ष की महिला इस संक्रमण से उबर कर वापस लौटी हैं. इस प्रकार कह सकते हैं कि इस बीमारी के खिलाफ हम लोगों में प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी है. यूरोप के मामले में देखें, तो वहां टीबी, मलेरिया नहीं होता और न ही वहां लोग गंदी हवा में सांस लेते हैं और वहां प्रदूषण खतरनाक स्तर पर नहीं है. वहां जरा-सा भी वायरस लोगों के लिए जानलेना साबित होता है. हमारे यहां बच्चे गांवों में मिट्टी में कबड्डी खेलते हैं, ट्यूबवेल में नहाते हैं, गर्मी-सर्दी बर्दाश्त करते हैं. उनमें रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, इसलिए हमें ज्यादा डरना नहीं है.

टेस्ट पॉजिटिव आने से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही है, उससे परेशान नहीं होना है.अगर इस बीमारी के संभावित इलाज के बारे में बात करें, तो 17 दवाएं हैं, जिन पर यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में शोध हो रहा है. इस मामले में हमारा देश आगे हैं. जयपुर में हमारे दो डॉक्टरों ने इटली के दो मरीजों को ठीक कर दिया था, जब दुनिया में कहीं भी इलाज की बात नहीं हो रही थी. जहां तक दवाओं का ताल्लुक है, इनमें पांच एंटीवायरल दवाएं हैं, जिन पर काम चल रहा है. इसके अलावा हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन पर काम हो रहा है. डॉक्टरों और शोध विशेषज्ञों ने मॉनिटर्ड इमरजेंसी यूज ऑफ अनरजिस्टर्ड इन्टरवेंशन (एमईयूआरआई) फ्रेमवर्क के तहत एफडीए और डब्ल्यूएचओ से हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन टेस्टिंग के लिए अनुमोदन प्राप्त किया है.

इसके अंतर्गत नैतिक दृष्टि से भी यह अनुमोदित परीक्षण माना जाता है. अन्य देशों से पहले ही हमने इसकी स्वीकृति प्राप्त कर ली है. ट्रंप ने पहले ही यह स्वीकृति हासिल कर ली है, इसलिए वे इस दवाई की मांग कर रहे हैं. हमारे यहां भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इसे डॉक्टरों के लिए मंजूरी प्रदान की है. फिलहाल, इस संक्रमण से आमजन को सतर्क रहने की जरूरत है, विशेषकर साफ-सफाई बहुत अनिवार्य है. सरकार अपने स्तर पर लगातार कोशिश कर रही है. हमारे डॉक्टर पूरी तैयारी के साथ अपने काम में जुटे हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय पूरी सक्रियता के साथ काम कर रहा है. स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन एक डॉक्टर भी हैं. मैं उनकी कार्यशैली को व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं, वे बहुत कर्मठ मंत्री के रूप में काम कर रहे हैं. हमारे तैयारियों को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सराहा है. आगे हम दक्षिण कोरिया के मॉडल पर काम करने जा रहे हैं. हम बड़ी संख्या में लोगों की स्क्रीनिंग कर सकते हैं. प्रत्येक स्तर पर तैयारी की गयी है. किट वाला टेस्ट सस्ता है, इसकी लागत 1200 से 1400 रुपये तक होगी. जबकि दूसरा टेस्ट 4500 रुपये का है. इसका परिणाम तुरंत आता है. आनेवाले दिनों में इससे जल्द ही हम उबरते नजर आयेंगे.

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