समाचार पत्रों से पता चला कि नरेंद्र मोदी आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं से उनके सशक्तीकरण और अधिकारों की बात करेंगे. यह जान कर खुशी हुई कि चुनाव के कारण ही सही, महिलाओं की चिंता तो हमारे नेताओं को हो रही है. लेकिन क्या यह भी जानना मुनासिब नहीं होगा कि आपके शासन के एक दशक से अधिक समय में गुजरात की महिलाओं को कौन-कौन से अधिकार मिले हैं?
वहां की महिलाओं को अपने मायके, जहां उनकी अपनी जननी और जन्मभूमि है, पर कितना हक प्राप्त है? क्या गुजरात की महिलाओं को अपनी पैतृक संपत्ति पर वही अधिकार प्राप्त है जो एक बेटे या भाई को प्राप्त है? क्या गुजरात के रजिस्ट्री ऑफिस या अंचल कार्यालयों में पिता-माता की मृत्यु के पश्चात बिना बहन, फुआ या बेटी के हस्ताक्षर के चल-अचल संपत्ति की खरीद-बिक्री पर रोक लगी? क्या वहां की महिलाओं को भाई के समान सभी अधिकारों से लैस होकर अपने मायके में रहने का अधिकार मिला, जबकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 को लागू हुए भी आठ वर्षो से अधिक बीत गये हैं? या उन्हें कुछ लेन-देन करके विस्थापन का दंश ङोलने के लिए मजबूर होना पड़ता है? क्या इसके लिए आज भी महिलाओं को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना नहीं पड़ रहा है?
खबरों के अनुसार, आपके शासनकाल में गुजरात में स्थिति ऐसी ही है. इसलिए लगता है कि आप भी चुनाव में वोट प्राप्त करने के लिए लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. फिर भी अगर आप महिलाओं के लिए इन सवालों का सार्थक जवाब दिलाने का वादा करें तो हम आपको वोट देंगे. वरना जब हम अपने घर में ही मूल अधिकारों से वंचित हैं, तो बाकी जगहों की तसवीर महिलाओं की गुलामी की ही बनती है.
सरिता कुमारी, रांची