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राष्ट्रगान पर अहम फैसला

सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि राष्ट्रगान किसी फिल्म, न्यूज रील या वृत्त चित्र का हिस्सा हो, तो दर्शकों के लिए खड़े होने और साथ गाने की बाध्यता नहीं है. नवंबर में इसी अदालत के उस फैसले को कायम रखा गया है, जिसके अनुसार सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने […]

सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि राष्ट्रगान किसी फिल्म, न्यूज रील या वृत्त चित्र का हिस्सा हो, तो दर्शकों के लिए खड़े होने और साथ गाने की बाध्यता नहीं है. नवंबर में इसी अदालत के उस फैसले को कायम रखा गया है, जिसके अनुसार सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने और उस दौरान परदे पर राष्ट्रीय झंडा प्रदर्शित करने का आदेश जारी किया था.
उस समय दर्शकों का खड़ा होना अनिवार्य है, हालांकि दिव्यांग व्यक्तियों को इससे छूट मिली हुई है. इस आदेश के बाद देश के कई शहरों में लोगों के साथ मार-पीट की घटनाएं सामने आयी थीं. इसी बीच ‘दंगल’ फिल्म के एक दृश्य में राष्ट्रगान बजने पर लोगों के नहीं खड़ा होने पर भी कुछ लोगों ने अभद्र व्यवहार किया था.
इन घटनाओं को लेकर दर्ज याचिका पर यह फैसला सुनाया गया है. राष्ट्रवाद और देशभक्ति को लेकर देश में पिछले कुछ समय से जैसा माहौल बनाया गया है, उसे देखते हुए यह एक जरूरी फैसला है. नवंबर के फैसले को लेकर कई याचिकाएं दी गयी थीं, जिन्हें एक साथ रख कर सुनवाई चल रही है. उम्मीद है कि अगली तारीख 18 अप्रैल को पूरे प्रकरण में विस्तृत निर्णय हो जायेगा. याचिकाओं में उठाये गये सवालों के मद्देनजर अदालत ने इस मुद्दे पर आगे बहस की जरूरत बतायी है. अदालत ने यह भी कहा है कि वह नैतिकता का पहरेदार नहीं है.
यह एक महत्वपूर्ण टिप्पणी है. राष्ट्रीय झंडे और राष्ट्रगान पवित्रतम प्रतीक हैं तथा उनके प्रति सम्मान प्रकट करना और उनसे संबद्ध कानूनी प्रावधानों का समुचित पालन करना हर नागरिक का कर्तव्य है. लेकिन, देशभक्ति अंतर्मन से प्रस्फूटित होनेवाली भावना है. किसी दर्शक के साथ उन्माद में मार-पीट करना या झगड़ा करना न सिर्फ कानून अपने हाथ में लेने का मामला है, बल्कि देशभक्ति की पवित्र भावना के विपरीत भी है.
राष्ट्रगान के समय खड़ा नहीं होनेवाले व्यक्ति को समझाया जा सकता है. कई मामलों में यह भी देखा गया कि अति उत्साह में लोगों ने बीमारों, दिव्यांगों और बुजुर्गों के साथ भी राष्ट्रगान के मामले पर अभद्रता की. ऐसे व्यवहारों का सभ्य समाज और राष्ट्रीय जीवन में कोई स्थान नहीं होना चाहिए. राष्ट्रगान देश के अस्तित्व तथा इसकी उद्दातता और विविधता को अभिव्यक्त करता है. यह प्रगति की सतत प्रेरणा देता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्टीकरण और टिप्पणियों के आलोक में देशभक्ति के स्वयंभू ठेकेदार आत्मसुधार का प्रयास करेंगे.

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