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अमेरिका से सीखने की जरूरत
आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा सात देशाें के अप्रवासी नागरिकों के अमेरिका में आने पर रोक लगाने से अनेक अमेरिकी नागरिकों को बहुत बुरा लगा है. चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप ने अमेरिका में आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए देश में मुसलमानों के आने पर रोक लगाने का […]
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा सात देशाें के अप्रवासी नागरिकों के अमेरिका में आने पर रोक लगाने से अनेक अमेरिकी नागरिकों को बहुत बुरा लगा है. चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप ने अमेरिका में आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए देश में मुसलमानों के आने पर रोक लगाने का वादा किया था. उन्होंने कहा है कि यह रोक तब तक बनी रहेगी, जब तक वे इस संदर्भ में पूरी बात जान-समझ नहीं लेते हैं.
कार्यभार संभालते ही राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान सहित सात देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर रोक लगा दी. ईरान एक ऐसा देश है, जहां के निवासियों के लाखों ईरानी-अमेरिकियों के साथ रिश्ते हैं. इराक वह देश है, जिसके अनेक नागरिकों ने युद्ध के समय अपने देश की बजाय अमेरिका का साथ दिया था. रोक की इस सूची में सीरिया भी शामिल है, जहां से हिंसा की वजह से लाखों लोगों को पलायन करना पड़ा है. ट्रंप के इस आदेश से कहीं से भी ऐसा प्रतीत नहीं हुआ कि इसे विशेषज्ञों द्वारा पूरी तरह जांचा-परखा गया है.
हालांकि शुरुआती दौर में उन नागरिकों को भी इसमें शामिल किया गया था, जो उन सात देशों के नागरिक तो हैं, लेकिन जिनके पास अमेरिका में रहने के स्थायी अधिकार- स्थायी आवास प्रमाणपत्र (जिन्हें ग्रीन कार्ड कहा जाता है) भी हैं.
यह रोक उन सात देशों के वैसे निवासियों पर भी लगा दी गयी है, जिनके पास अमेरिका के लिए वैध पर्यटक और व्यापार वीजा है. ट्रंप के इस आदेश से एयरपोर्ट पर उथल-पुथल मच गयी है.
ध्यान दें, तो इस रोक में वे देश शामिल नहीं हैं, जिनके साथ ट्रंप के व्यावसायिक हित सधते हैं, जैसे सऊदी अरब (जिनके नागरिक 9/11 हमले में सचमुच शामिल थे). ट्रंप के इस पाखंड और बिना सोचे-समझे रोक लगाने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि उनके इस कदम का अनेक अमेरिकियों ने नागिरक स्वतंत्रता और मानवाधिकार का हनन माना और इसके खिलाफ रोष व्यक्त किया. कई अमेरिकियों ने अपने देश के इस विचार को कि अमेरिका एक ऐसा राष्ट्र है, जहां कानून का राज चलता है और यहां सभी स्वतंत्र और एक समान हैं, को गंभीरता से लिया है.
ऐसे लाेगों ने महसूस किया कि उन्हें इस संदर्भ में आवाज उठानी चाहिए और ऐसा उन्होंने अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (एसीएलयू) को समर्थन देकर किया. एसीएलयू खुद को एक गैर-लाभकारी, गैर-पक्षपाती, कानूनी और हितों का समर्थन करनेवाले संगठन के रूप में परिभाषित करता है, जो अमेरिका में रहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के अधिकाराें की रक्षा के प्रति समर्पित है. अपनी वेबसाइट पर इस संगठन ने ट्रंप के इस कदम के तार्किक विरोध में लिखा है- ‘उन्होंने पक्षपात किया, हमने मुकदमा किया.’
ट्रंप के आदेश पर एक न्यायाधीश ने रोक लगा दी है और रोक के खिलाफ दायर होनेवाले अनेक दूसरे मुकदमे के कारण इस आदेश को लागू करना उनके लिए मुश्किल बना देंगे. पहले ही कुछ मामलों में ऐसा हो चुका है. मसलन, ग्रीन कार्ड रखनेवालों पर लगायी गयी रोक को विरोध के बाद वापस ले लिया गया था.
अमेरिका में ऐसे मजबूत एनजीओ हैं, जिन्हें बड़े पैमाने पर लोगों का, स्वयंसेवकों का और वित्तीय समर्थन प्राप्त है. ट्रंप के खिलाफ मुकदमा करने के कुछ ही दिनों के भीतर, एसीएलयू को 150 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं. एसीएलयू को यह धन प्रमुख तौर पर छोटे-छोटे अनुदान के तौर पर प्राप्त हुआ है. जिस संगठन के लिए मैं काम करता हूं, उसी तरह एसीएलयू भी अधिकांश पैसे सदस्यों द्वारा दिये गये मासिक अनुदान के तहत एकत्रित करता है.
मुसलमानों पर लगनेवाली रोक से उपजे क्रोध के कारण कई प्रमुख हस्तियों ने एसीएलयू को दूसरे लोगों द्वारा दिये गये अनुदान के बराबर धन देने की पेशकश की. अगर 200 लाेगों ने कुल 10 लाख रुपये का अनुदान दिया होगा, तो ऐसी स्थिति में एक सेलिब्रिटी ने खुद 10 लाख रुपये का अनुदान दिया होगा, इस प्रकार एसीएलयू को 20 लाख रुपये प्राप्त हुए होंगे. कई लोगों ने ट्विटर के जरिये एसीएलयू के समर्थन में मदद करनेवालों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया और इस तरह इसके समर्थकों की संख्या बढ़ कर 10 लाख हो गयी. मजे की बात है कि एक सप्ताह में ही इसके समर्थकों की संख्या दो लाख बढ़ गयी.
कई अमेरिकियों ने इस बात को स्वीकार किया है कि ट्रंप द्वारा रोक लगाना 1940 में घटी ऐसी ही एक घटना के समान थी. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, जापान ने अमेरिका के हवाई स्थित नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर हमला किया था. इस हमले के बाद देशद्रोह के संदेह में जापानी मूल के हजारों अमेरिकी नागरिकाें को पकड़ कर युद्धकालीन नजरबंदी में डाल दिया गया था. बाद में यह मामला राष्ट्रीय शर्म का माना गया. ऐतिहासिक भूलों को याद रखना और जब भी वह लोगों के अधिकारों का हनन करे, यहां के नागरिकों को उसे अवश्य चुनौती देनी चाहिए, यही सोच अमेरिका को महान बनाता है. संभवत: ट्रंप अमेरिका की महानता के इस स्रोत को समझते ही नहीं हैं.
अमेरिका सौभाग्यशाली है कि उसके पास एसीएलयू जैसे समूह हैं, जो अमेरिका में प्रत्येक व्यक्ति के अधिकाराें की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. भारत में भी इस तरह के समूहों की आवश्यकता है.
हमें ऐसे समूहों को समर्थन देने की आवश्यकता है, ताकि हम भी ऐसा कानूनी देश बन सकें, जहां सबके अधिकारों का सम्मान हो. बहुत से भारतीय शायद ही जानते हों कि 1962 में चीन युद्ध के दौरान नेहरू ने हजारों चीनी मूल के भारतीय नागरिकों को जेल में डाल दिया था. महज कुछ ही सप्ताह चले इस युद्ध के एवज में कलकत्ता में रह रहे चीनी-भारतीयों को जबरन उनके घर से निकाल कर लगभग दो वर्षों के लिए राजस्थान के जेल में डाल दिया गया था. यह शर्म की बात है कि हम नेहरू के इस कृत्य को उसके सही स्वरूप में स्वीकार नहीं कर पाये.
इन बातों के साथ ही हमें कमजोर भारतीय, दलितों, मुसलमानों और आदिवासियों के खिलाफ होनेवाली बर्बरता का भी ध्यान रखना है. वह दिन भी आयेगा, जब हम यह दावा करेंगे कि हमारे यहां भी एसीएलयू की तरह प्रभावशाली संस्थाएं हैं.
एसीएलयू जैसी संस्था महज इसलिए शक्तिशाली है, क्योंकि लाखों अमेरिकी इसके मूल्यों का समर्थन करते हैं. जब भारतीय दूसरों के साथ गलत तरीके से पेश आने पर क्रोधित होंगे, दूसरों के साथ होनेवाले अन्याय को निजी तौर पर लेंगे, तब सच मायने में हमारे प्रयासों द्वारा भारत को महान बनाने की शुरुआत होगी.
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