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एक राजनीतिक बजट

ग्रामीण क्षेत्रों और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ाने तथा गरीबी से लड़ने की सरकार की प्रतिबद्धता के संकेत आम बजट में जरूर हैं, पर घोषणाएं नोटबंदी से परेशान तबकों को साधने की कवायद अधिक लगती हैं. इस अर्थ में इसे एक राजनीतिक बजट माना जाना चाहिए. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह भी आश्वासन दिया है […]

ग्रामीण क्षेत्रों और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ाने तथा गरीबी से लड़ने की सरकार की प्रतिबद्धता के संकेत आम बजट में जरूर हैं, पर घोषणाएं नोटबंदी से परेशान तबकों को साधने की कवायद अधिक लगती हैं. इस अर्थ में इसे एक राजनीतिक बजट माना जाना चाहिए. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह भी आश्वासन दिया है कि आर्थिक वृद्धि पर नोटबंदी के नकारात्मक असर से भी जल्दी ही निजात मिल जायेगी. आठ नवंबर को पांच सौ और हजार के नोटों को चलन से बाहर करने के फैसले तथा उसके बाद पैदा हुई नकदी के संकट की सबसे अधिक मार छोटे कारोबारियों और निम्न आय वर्ग पर पड़ी है. छोटे उद्यमियों और स्टार्ट-अप को करों में छूट देकर उनके नुकसान को कुछ हद तक कम करने का प्रयास बजट में हुआ है. असंगठित क्षेत्र में हुए नुकसान का भुक्तभोगी गरीब तबका बना. सरकार ने इन वर्गों को राहत की सौगात दी है.

जेटली ने तो अपने चौथे बजट को गरीबों के लिए बजट की संज्ञा भी दी है. कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास पर ध्यान देने के साथ सामाजिक क्षेत्र के लिए बड़ा आवंटन स्वागतयोग्य है. ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का विस्तार, गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहे लोगों को रसोई गैस देने तथा नयी स्वास्थ्य रक्षा योजना निम्न वर्ग के लिए खुशखबरी हैं.

दलितों और आदिवासियों में उद्यमिता को बढ़ावा देने की घोषणा भी हुई है. बीते वर्षों के सूखे और आर्थिक झटकों से वंचित वर्ग सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं. इनके सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि आवंटित धन सही तरीके से खर्च हो. इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में 2.21 लाख करोड़ से अधिक के खर्च का प्रावधान उद्योग और रोजगार को बढ़ावा देने में बहुत मददगार हो सकता है. लंबित परियोजनाएं आर्थिक लक्ष्यों की पूर्ति में बड़ी रुकावट हैं. इस आवंटन से उन्हें पूरा करने में सहयोग मिलने की संभावना बढ़ी है.

रोजगार के नये अवसरों के सृजन के मोर्चे पर पिछले कुछ सालों से निराशाजनक स्थिति बनी हुई है. विभिन्न योजनाओं में सरकारी खर्च में बढ़ोतरी, कौशल विकास तथा उद्यमिता पर जोर जैसे उपाय बेरोजगारी की चुनौती का सामना करने के उद्देश्य से प्रेरित हैं. कम आयवाले समूह को आयकर में छूट से बचत और घरेलू मांग में इजाफा होने की गुंजाइश बनी है. फंसे हुए कर्जों के बोझ से दबे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए 25 हजार करोड़ नियत किये गये हैं.

पिछले बजट में भी इतनी ही रकम मुहैया करायी गयी थी, हालांकि बैंकों ने कम-से-कम 80 हजार करोड़ की मांग की थी. नोटबंदी के बाद कहा गया था कि बैंकों के पास भारी मात्रा में नकदी जमा हुई है तथा इससे उनकी वित्तीय हालत सुधरेगी और वे ग्राहकों को सस्ती दर पर ऋण दे पायेंगे. ऐसे में पुनर्पूंजीकरण के लिए धन देने का औचित्य समझ से बाहर है.

बजट में डूबे हुए कर्जों की वसूली पर भी कोई स्पष्टता नहीं है. नोटबंदी के बाद से सरकार ने डिजिटल लेन-देन पर आधारित कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने की बात बार-बार की है. बजट में भी उसकी भरपूर अनुगूंज है. लेकिन इसके लिए व्यापक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की दरकार है.

ग्रामीण, कस्बाई और पहाड़ी क्षेत्रों में तो वित्तीय कारोबार का यह ढांचा लगभग अनुपस्थित है. बजट में इस दिशा में न तो कोई खास पहल की गयी है और न ही ठोस आवंटन. यह एक बड़ी खामी है और इसे दूर करने की कोशिश होनी चाहिए. देश में करदाताओं की संख्या बढ़ाने पर समुचित ध्यान न देकर कर वसूली की मौजूदा स्थिति को बनाये रखने की कोशिश की गयी है. कम आय वर्ग को राहत दी गयी है, लेकिन इसकी भरपाई उच्च स्तर पर सरचार्ज लगा कर की गयी है.

राजनीतिक पार्टियों द्वारा चंदा लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की कोशिश इस बजट की सबसे अहम बात है. ऐसी पहल बजट प्रस्ताव में पहली दफा की गयी है. मौजूदा नियमों के अनुसार पार्टियों को 20 हजार से कम के चंदे का विवरण नहीं देना होता है. इस रकम को अब दो हजार पर सीमित कर दिया गया है तथा चंदे के लिए रिजर्व बैंक द्वारा बॉन्ड जारी किये जाने का प्रावधान किया गया है.

पार्टियों के चंदे की गड़बड़ी चुनाव से लेकर शीर्ष पदों पर व्याप्त भ्रष्टाचार और कालेधन की बड़ी वजह है. लोकतंत्र की मजबूती के लिए ऐसे सुधारों की मांग लंबे समय से की जा रही है. इस संदर्भ में यह शुरुआती पहल बहुत सकारात्मक है तथा उम्मीद है कि आगे भी इसे जारी रखा जायेगा.

शीतकालीन सत्र सत्ता पक्ष और विपक्ष की खींचतान से पैदा हुए हंगामे की भेंट चढ़ गया था. आशा है कि मौजूदा बजट सत्र में सरकार और विरोधी पार्टियां बजट प्रावधानों पर स्वस्थ और समुचित चर्चा को अंजाम देंगी ताकि इसके विविध पहलु देश के सामने स्पष्ट हो सकें. विपक्ष के संशोधनों के प्रति भी सरकार को गंभीर रुख अपनाना चाहिए और विरोधी दलों को भी सरकार की भली मंशाओं का अनुमोदन करना चाहिए. किसी भी बजट की सफलता उसके प्रारूप की स्पष्टता और ठीक से लागू करने के प्रयास पर निर्भर करती है.

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