ट्रंप के शपथ लेते ही इसराइल का पश्चिमी तट में ढाई हजार और मकान बनाने का ऐलान करना, क्या दर्शाता है? जबकि अभी एक पखवाड़ा पहले ही सुरक्षा परिषद् ने सर्वसम्मति से, इसराइल के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था. अमेरिका ने वीटो तो नहीं किया, लेकिन मतदान में भाग भी नहीं लिया.
काश ऐसा रवैया आठ साल पहले अपनाया होता, जब पहली बार ओबामा ने राष्ट्रपति पद का शपथ लिया था. फ्रांस, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और रूस, जिनके पास वीटो शक्ति है, ने पूरे संस्थान को बंधक बना रखा है.
ट्रंप साहब का शायद यह सोचना कि इसराइल की दुश्मनी इसलािमक देशों से है. इस नाते वो इसका सहज मित्र हुआ. जबकि इसलािमक आतंकवाद को जन्म देने में इसराइल की ज्यादतियां ही जिम्मेदार रही हैं. आतंकवाद को रोक पाना, ट्रंप के द्वारा नामुमकिन होगा. जबतक फिलिस्तीनियों को न्याय नहीं मिल जाता, तब तक आतंक के साये में विश्व को जीना ही पड़ेगा.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी