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कब बदलेगी यह सोच!

नये साल के आगमन के साथ ही देश के प्रमुख शहरों में एक कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के पॉश इलाके में लड़कियों को छेड़खानी का सामना करना पड़ा. साल का पहला दिन ही उन लड़कियों के लिए खराब साबित हुआ. इस घटना के खिलाफ सख्त कर्रवाई करने के बजाय राज्य के गृह मंत्री परमेश्वर जी […]

नये साल के आगमन के साथ ही देश के प्रमुख शहरों में एक कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के पॉश इलाके में लड़कियों को छेड़खानी का सामना करना पड़ा. साल का पहला दिन ही उन लड़कियों के लिए खराब साबित हुआ. इस घटना के खिलाफ सख्त कर्रवाई करने के बजाय राज्य के गृह मंत्री परमेश्वर जी ने इसे युवाओं, खास तौर पर लड़कियों के पश्चिमी रहन-सहन को ही घटना का जिम्मेवार ठहराया.

यह पहली बार नहीं है, जब किसी मंत्री ने लड़कियों और महिलाओं के कपड़ों को लेकर गैर-जिम्मेवाराना टिप्पणी की हो. इससे पहले भी कई मंत्रियों और नेताओं ने लड़कियों के पहनावे को लेकर ऐसे बयान दिये हैं, जिससे कि उनकी सोच समाज के सामने आती रही है. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने महिलाओं के पहनावे और उनकी आजादी पर टिप्पणी करते हुए एक बार कहा था, ‘यदि महिलाओं को आजादी चाहिए, तो वे नग्न क्यों नहीं घूमतीं! यदि लड़कियां शालीन कपड़े पहनेंगी, तो कोई लड़का गलत नजर से उन्हें नहीं देखेगा!’ किसी सरकार में बैठे एक जिम्मेवार व्यक्ति की ऐसी भाषा नहीं होनी चाहिए.

गोवा के एक मंत्री रहे सुदीन धवलीकर ने भी महिलाओं के बारे में अपने एक विवादित बयान में कहा था, ‘महिलाओं को यदि अपनी सुरक्षा करनी है, तो उन्हें बीच पर बिकनी पहन कर नहीं जाना चाहिए और न ही पब में छोटी स्कर्ट पहननी चाहिए!’ मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी महिलाओं के कपड़ों को लेकर अभद्र टिप्पणी की थी! विजयवर्गीय ने तो यहां तक कहा था कि महिलाओं को ऐसे कपड़े पहनने चाहिए, जिससे उनके प्रति श्रद्धा बढ़े, न कि उनके छोटे कपड़ों से उत्तेजना पैदा हो!

अब तो हालात ऐसे हो गये हैं कि जब भी देश के किसी हिस्से से किसी लड़की या महिला के साथ छेड़खानी, बलात्कार, हत्या या यौन शोषण की कोई खबर आती है, तो वहां सबसे पहला संदेह उस महिला के कपड़ों और उसके चाल-चलन पर जाता है. यानी मान के चलिये कि यदि महिला ने छोटे या भड़काऊ कपड़े पहने हैं, तो अपने साथ हुई किसी भी आपत्तिजनक घटना के लिए वह खुद ही दोषी है! सामने वाला तो बस भड़क गया, क्योंकि ऐसा होना तो लाजमी है! समाज की नजर महिला के कपड़ों पर अधिक है, बजाय इसके कि उसे घूरनेवाली नजर क्या सोच रही है, उसके इरादे क्या हैं और उसकी नजर से महिला को कैसे बचाया जाये! मंत्रियों के कहे मुताबिक, अगर महिलाओं के साथ होनेवाली ज्यादती के लिए उनके भड़काऊ कपड़ों को जिम्मवार मान भी लिया जाये, तो उस जघन्यता को क्या कहेंगे, जब किसी पांच-छह साल की बच्ची का यौन-शोषण होता है?

दरअसल, यह हमारे पुरुषवादी समाज की कायराना मानसिकता का ठीकरा है, जो अंततः महिलाओं पर ही आकर फूटता है. जैसे कोई वस्तु अपने भड़कीले रंग और सज्जा के साथ लोगों को आकर्षित करती है, ठीक वैसे ही समाज में शायद महिलाओं का वजूद है. यह सोच की विडंबना ही है कि अपराधी बेचारा अपराध करने को बाध्य किया जाता है, क्योंकि महिलाएं तो अपराध करवाने की ताक पर ही बैठी रहती हैं. इस कूपमंडूकता वाली धारणा से हमारा पुरुषवादी समाज बाहर निकलना ही नहीं चाहता. उसे अपना दोष किस तरह महिलाओं पर मढ़ना है, इसके लिए वह पीढ़ियों से अभ्यासरत है. नेताओं की ओछी सोच, सरकार का नकारात्मक रवैया और कमजोर कानून व्यवस्था, ये सब मिल कर महिलाओं के बढ़ते कदमों को एक बार में कई गुना पीछे धकेल देते हैं.

प्रियंका

स्वतंत्र टिप्पणीकार

priyanka2008singh@gmail.com

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