भारतीय संस्कृति पर पहले से ही आक्रमण होते आये हैं. फिर भी उस चीज का कायम रहना अध्यात्मशास्त्र की तरफ ध्यान आकर्षित करता है. अाध्यात्मिक भूमि होने के कारण यहां की संस्कृति को नष्ट करने के लिए आगे बढ़े कालचक्र में खुद ही नष्ट हो गये. पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति का महत्त्व होने पर भी सिर्फ मौजमस्ती करने के लिए हमें हमारी संस्कृति पर आक्रमण करने वाले विदेशी रीति-रिवाजों की क्या जरूरत है?
विदेशों की तरह देश के पाठशाला-महाविद्यालयों के छात्र ड्रग्स के चपेट में आ चुके हैं. सही और गलत का भेद अगर उन्हें पता रहता, तो यह मुसीबत न आती. संस्कृति अपने स्थान पर अटल है. लेकिन उसे न पहचानने वाले गलत रास्ते पर भटक गए है. 31 दिसंबर को तो इस में और ही बढ़ोत्तरी हो जाती है.
सी.कुणाल, इमेल से