नोटबंदी से आम जनता पर दो तरह का प्रभाव पड़ रहा है. तत्काल भारी समस्या है. सब्जी खरीदने को नकद नहीं है, लेकिन यह समस्या एक या दो माह तक ही रहेगी. मुझे निश्चित भरोसा है कि रिजर्व बैंक द्वारा नये नोट छाप कर शीघ्र ही बैंकों को उपलब्ध कराये जायेंगे. कुछ ही समय में जीवन पुनः पटरी पर आ जायेगा. सर्वे बताते हैं कि समस्याओं के बावजूद देश की अस्सी प्रतिशत जनता नोटबंदी के पक्ष में है. बड़े लोगों द्वारा कालेधन के धंधे से जनता क्षुब्ध थी. नोटबंदी को इस दुष्ट परंपरा के खात्मे के रूप में देखा जा रहा है, जो कि सही है.
दीर्घकाल में नोटबंदी का जनता पर अलग प्रकार का प्रभाव पड़ेगा. अब तक तमाम छोटे धंधे नकद में चल रहे थे. छोटी फैक्ट्रियों द्वारा माल का उत्पादन कर बिना टैक्स अदा किये बाजार में माल बेचा जा रहा था. जैसे टेबल फैन कंपनी अपने माल को बाजार में नकद में बेच रही थी. दुकानदार नकद में कंपनी को पेमेंट करता था और ग्राहक से नकद में दाम लेता था. माल के उत्पादन पर एक्साइज ड्यूटी तथा सेल्स टैक्स अदा नहीं किया जा रहा था. अब नकद में धंधा करना कठिन हो गया है.
ग्राहक दुकानदार को डेबिट कार्ड से पेमेंट करेगा. दुकानदार कंपनी को चेक से पेमेंट करेगा. कंपनी के खाते में टेबल फैन की बिक्री से मिले 1000 रुपये दर्ज हो रहे हैं. फलस्वरूप कंपनी को इस उत्पादन पर एक्साइज ड्यूटी तथा सेल्स टैक्स देना होगा. पहले जिस टेबलफैन को वह 1000 रुपये में बेच रहा था, अब उसी टेबलफैन को उसे 1300 रुये में बेचना होगा, चूंकि अब 300 का टैक्स अदा करना है. ग्राहक को जो टेबलफैन 1000 रुपये का मिल रहा था, वही अब 1300 रुये में मिलेगा. ग्राहक के जीवन स्तर में गिरावट आयेगी, चूंकि उसे टैक्स पेड महंगा माल खरीदना पड़ेगा.
टैक्स के इस अतिरिक्त बोझ के कारण ग्राहक की हानि होना जरूरी नहीं है. इस वसूली का अंतिम परिणाम इस पर निर्भर करेगा कि सरकार द्वारा रकम का उपयोग किस दिशा में किया जाता है. मूल रूप से सरकारी खर्च की दो दिशा होती है- खपत एवं निवेश. सरकार द्वारा पुलिस के लिए वायरलेस खरीदा गया अथवा पटवारी को मोटरसाइकिल दी गयी अथवा सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार कर्मियों के वेतन में वृद्धि की गयी, तो सरकारी खपत में वृद्धि हुई. बढ़ा हुआ सरकारी खर्च इन मदों पर किया गया, तो उपभोक्ता के लिए बढ़ा हुआ टैक्स अदा करना हानिप्रद हो जायेगा. लेकिन टैक्स की इसी रकम का उपयोग यदि सरकार द्वारा झुग्गी में नाली एवं सड़क बनाने के लिए किया गया, तो पूरी प्रक्रिया लाभप्रद हो सकती है. जैसे झुग्गी में पक्की नाली बनने से मच्छर कम हो गये.
झुग्गीवासियों के स्वास्थ में सुधार हुआ. डाॅक्टर और दवा पर हर माह होनेवाला 100 रुपये का खर्च बचा. एक बार टेबल फैन की खरीद पर 300 रुपये का अतिरिक्त टैक्स अदा करने से एक वर्ष में 1200 रुपये की बचत हो गयी. अतः संपूर्ण आकलन इस प्रकार है- नोटबंदी के कारण जनता को टैक्स पेड महंगा माल खरीदना पड़ेगा. इससे उसके जीवन स्तर में तत्काल गिरावट आयेगी. यह नोटबंदी का अल्पकालीन प्रभाव हुआ. लेकिन, यदि अतिरिक्त राजस्व का उपयोग निवेश के लिए किया गया, तो जनता के लिए नोटबंदी लाभप्रद हो जायेगी.
वर्तमान संकेत ऐसे नहीं हैं. सरकारी खर्चों में निवेश का हिस्सा घट रहा है. हाल में अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों- स्टैंडर्ड एंड पूअर तथा फिच ने भारत की रेटिंग में सुधार करने से इनकार कर दिया है. रेटिंग एजेंसियों ने कहा है कि सरकारी बजट की हालत अच्छी नहीं है. मेरी समझ से इस खराब स्थिति का एक कारण सरकारी खर्चों की नकारात्मक दिशा है. इसलिए आम जनता का अंतिम प्रभाव नकारात्मक होने की संभावना ज्यादा है. हां, आम आदमी को साफ-सुथरी अर्थव्यवस्था जरूर मिलेगी.
कुछ समय पहले गुजरात जाने का अवसर मिला था. वहां के टैक्सी ड्राइवर ने कहा कि लाइसेंस बनवाने में घूस चलना बंद हो गया है. पहले कुछ मुहल्ले ऐसे थे, जिनमें रात में जाने में भय होता था. मोदी ने पुलिस व्यवस्था को चुस्त कर दिया कि किसी भी इलाके में आप भयहीन होकर जा सकते हैं. ये उदाहरण बताते हैं कि राजस्व खर्च भी सार्थक हो सकते हैं. लेकिन वह गुजरात की बात है. वर्तमान सरकार के पिछले ढाई साल के कार्यकाल में निचले स्तर के सरकारी कर्मियों की कार्यशैली में गिरावट आयी ही आयी है. घूस की दरें बढ़ा दी गयी हैं. अतः बढ़े हुए राजस्व खर्चों का सही परिणाम आना कठिन ही दिखता है.
इन नकारात्मक प्रभावों के बावजूद मैं नोटबंदी का समर्थन करता हूं, चूंकि अर्थव्यवस्था में स्वच्छता जरूरी है. लेकिन, नोटबंदी को सही दिशा देने के लिए टैक्स की दरों में कटौती की जानी चाहिए, जिससे उपभोक्ता पर टैक्स का भार न पड़े. टेबल फैन 1100 रुपये में उपलब्ध हो जाये. साथ-साथ नीचे के स्तर पर सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना जरूरी है. इन दोनों कदमों को लागू करने से ही नोटबंदी आम आदमी के लिए सार्थक सिद्ध होगी.
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री