हमारे समाज की निर्माता आम जनता होती है. आम जनता अगर एकजुट हो जाये, तो क्या नहीं हो सकता! अनेकता में एकता ही हिंद की विशेषता है. तो क्यों समाज के लोग अपने विकास के लिए सरकारी फंड का इंतजार करते हैं? जब कोई बड़ी दुर्घटना होती है, आम जनता तब हरकत में आती है. क्या हम दुर्घटना को रोक नहीं सकते हैं? उदाहरण के तौर पर हमारे समाज में दुर्गा पूजा, काली पूजा, सरस्वती पूजा आदि बड़े पैमाने पर मनाये जाते हैं.
इनमें लाखों-करोड़ों का खर्च आता है. यह पैसा सरकार से तो आता नहीं. इसे लोगों के परस्पर सहयोग के जरिये इकट्ठा किया जाता है. जब सामूहिक सहयोग से इतने बड़े त्योहार, पूजा आदि संपन्न हो सकते हैं तो क्या इससे हमारे आसपास की समस्या का हल नहीं हो सकता है? उदाहरणत: सड़कों में गड्ढे, बिजली के तार-खंभों की जजर्रता, पानी की समस्या, पुल-पुलिया टूटने या न होने के लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं. कहते हैं कि इन सब पर ध्यान नहीं देती है, फंड जारी नहीं करती है. अफसर भी फंड का समुचित उपयोग नहीं करते.
औरों को दोष देते हुए हम दिन, महीने और साल गुजार देते हैं, लेकिन अपनी ओर से एक कदम नहीं बढ़ाते. हम ये नहीं देखते हैं कि सरकार और नेताओं ने जो किया सो किया, पर मैंने क्या किया? आम जनता ने क्या किया? क्या चंदे से सड़कों के गड्ढे ठीक नहीं किये जा सकते, बिजली के तार नहीं बदलवाये जा सकते! आम जनता की समस्या आम जनता की होती है, किसी नेता या सरकार की नहीं, वे करें भी तो कितना? अपने और देश के प्रति क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं? ये ऐसी असुविधाएं हैं, जिनसे हम खुद निबट सकते हैं. आम जनता अपनी छोटी-छोटी असुविधाओं को समस्या न बनने दे.
सुदर्शन बेहरा, दाहिगोड़ा, घाटशिला