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उपलब्धियों का सिलसिला
आठ उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के अलावा उन्हें अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित कर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंस्थान संस्थान (इसरो) ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है. एक ही प्रक्षेपण में उपग्रहों को दो भिन्न कक्षाओं में स्थापित करने का भारत के लिए यह पहला अवसर है. इन उपग्रहों में सागरीय और मौसम के अध्ययन के लिए […]
आठ उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के अलावा उन्हें अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित कर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंस्थान संस्थान (इसरो) ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है. एक ही प्रक्षेपण में उपग्रहों को दो भिन्न कक्षाओं में स्थापित करने का भारत के लिए यह पहला अवसर है.
इन उपग्रहों में सागरीय और मौसम के अध्ययन के लिए स्कैटसैट-1, दो भारतीय विश्वविद्यालयों के अकादमिक उपग्रह तथा अमेरिका, कनाडा और अल्जीरिया के उपग्रह शामिल हैं. यह भी एक शानदार उपलब्धि है कि आइआइटी बॉम्बे के छात्रों द्वारा निर्मित उपग्रह भी इस उड़ान में रवाना हुआ है. पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हिकल (पीएसएलवी) की यह 37वीं उड़ान और लगातार 33वां सफल प्रक्षेपण है. इस मिशन के साथ भारत 79 विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचा चुका है और इसकी कमाई 12 करोड़ डॉलर के करीब है.
बीते कुछ सालों में इसरो ने कामयाबी की कई बुलंदियों को छुआ है, पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यावसायिक प्रक्षेपण उद्योग में प्रतिद्वंद्विता भी खूब बढ़ी है. यूरोपियन स्पेस एजेंसी और जापानी जाक्सा ने जहां अपना कारोबार तेजी से बढ़ाया है, वहीं फ्रांस में स्थित एरियनस्पेस के पास इस बाजार में 50 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी है.
एलन मस्क के स्पेसएक्स ने मूल्यों में कमी कर खींचतान को और बढ़ा दिया है. ऐसे वैश्विक माहौल में इसरो की लगातार कामयाबी बहुत महत्वपूर्ण है. ज्ञान, विज्ञान, प्रसारण, मौसम आदि के क्षेत्र में अनेक उपग्रहों के अलावा इसरो का मंगलयान मंगल ग्रह की परिक्रमा कर रहा है. वर्ष 2017 के अंत या 2018 के प्रारंभ में चंद्रयान परियोजना के दूसरे चरण में पूरी तरह से स्वदेशी यंत्र चंद्रमा पर उतारने की संभावना भी है. सूर्य के अध्ययन के लिए 2020 तक ‘आदित्य’ नामक मिशन भेजने की परियोजना भी चल रही है.
पिछले साल अगस्त से इस वर्ष अगस्त के बीच इसरो 10 भारतीय सैटेलाइट प्रक्षेपित कर चुका है. अगले तीन सालों में 70 भारतीय सैटेलाइट भेजे जाने की योजना है. इस वर्ष जून में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एक साथ 20 देशी-विदेशी उपग्रह छोड़ कर इसरो के वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों की टीम ने वैश्विक स्तर पर अपनी क्षमता का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था. ये तथ्य संस्थान के कौशल और प्रबंधन के उच्च स्तर को रेखांकित करते हैं.
पहले उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ से संभावित ‘आदित्य’ तक का 47 वर्षीय इसरो का सिलसिला न सिर्फ भारतीय उपलब्धि का प्रमाण है, बल्कि इस दौरान अनेक देशों के अंतरिक्ष अध्ययन और अनुसंधान में उसकी मदद अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा का परिचायक भी है. इसरो की उपलब्धियों के इस सिलसिले से अन्य भारतीय संस्थान प्रेरणा ले सकते हैं.
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