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हमारी मातृभाषा हिंदी

गुजरे हुए सालों को हम देखें तो आज का दौर हिंदी के स्वर्णकाल का दौर कहा जा सकता है. हमारी हिंदी आज सिर्फ देश की ही भाषा नहीं रही, बल्कि पूरी दुनिया में फैल चुकी है. हिंदी के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह बिना किसी सत्ता के संरक्षण के जनभाषा के रूप […]

गुजरे हुए सालों को हम देखें तो आज का दौर हिंदी के स्वर्णकाल का दौर कहा जा सकता है. हमारी हिंदी आज सिर्फ देश की ही भाषा नहीं रही, बल्कि पूरी दुनिया में फैल चुकी है. हिंदी के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह बिना किसी सत्ता के संरक्षण के जनभाषा के रूप में आगे बढ़ रही है. यह वैश्वीकरण का दौर है, यानी सीधे-सीधे बाजारवाद. अब हर संस्कृति, हर विचार एक उत्पाद में तब्दील हो बाजार में बिकने को तैयार है. जाहिर है बेचने के लिए उस भाषा की जरूरत होती है जो आम भाषा हो. आज हिंदुस्तान बहुत बड़ा बाजार है.
अतः हिंदी अपनी पैठ बना रही है. इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस तरह भी लगाया जा सकता है कि आज दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है. इसके लिए हमारे हिंदी सिनेमा के योगदान को भूला नहीं जा सकता, जो विश्वपटल पर साख जमा रहा है. इंटरनेट ने भी आज क्रांति-सी ला दी है, जहां अनेक लेखक, पाठक और हिंदी प्रेमी बेहिचक अपनी बातों का आदान-प्रदान कर रहे हैं. ब्लॉग और वेबसाइट हिंदी की नयी कहानी लिख रहे हैं. मैं तो इतना ही कहूंगी कि मैं हिंदी को मां जैसा ही प्यार करती हूं. हिंदी में सोचती हूं, हिंदी में बात करती हूं, हिंदी में गुनगुनाती हूं. हिंदी पर गर्व करती हूं.
सत्या शर्मा कीर्ति, रांची

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