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झारखंड में मेक इन इंडिया

केंद्र सरकार के मेक इन इंडिया के स्वप्न को साकार करने की राह में झारखंड सरकार के अथक प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन पिछले दिनों गोला के टोनागातू में हुई घटना इस प्रयास को सशंकित करती है, जहां राज्य की जनता अपनी जमीन देने के बावजूद गोली खाने को मजबूर हैं. ऐसे में मेक इन इंडिया […]

केंद्र सरकार के मेक इन इंडिया के स्वप्न को साकार करने की राह में झारखंड सरकार के अथक प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन पिछले दिनों गोला के टोनागातू में हुई घटना इस प्रयास को सशंकित करती है, जहां राज्य की जनता अपनी जमीन देने के बावजूद गोली खाने को मजबूर हैं.
ऐसे में मेक इन इंडिया के स्वप्न को दिवास्वप्न ही कहा जा सकता है, क्योंकि इस तरह की घटना के उपरांत कोई किसान अपनी जमीन को किसी उद्योग, संयत्र, माइंस, सड़क तथा सरकारी भवन आदि के लिए देने हेतु शायद ही सोचेगा़ यह सोचने योग्य बात है कि आम सहमति होने के बावजूद ऐसी परस्थितियां क्यों बन जाती हैं. मेरी समझ से इसका एक बड़ा कारण है सरकार की प्रबंधन नीति, जो किसानों, जमीन मालिकों एवं निवेशकों के बीच की दूरी को कम करने के बजाय बिचौलियों को जगह बनाने का मौका देती है.
पुनर्वास के लिए सरकार की कोई कारगर नीति नहीं है़ रोजगार के नाम पर गैर विस्थापितों एवं गैर-झारखंडियों को दलालों के माध्यम से नये खुल रहे निजी उपक्रमों में नियाेजित किया जा रहा है़ सरकार को एक विकसित राज्य बनाने से पहले इन आधारभूत समस्याओं के बारे में समुचित निदान तलाशना चाहिए.
बिरेंद्र कुमार, बोकारो स्टील सिटी

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