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गृह मंत्री का ‘लठमार संदेश’
पुष्पेश पंत वरिष्ठ स्तंभकार भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह की पाकिस्तान यात्रा का तटस्थ विश्लेषण करने की जरूरत है. भले ही यह दौरा सार्क शिखर सम्मेलन में शिरकत की रस्म अदायगी के कारण ‘सहज’ हुआ था, जिस माहौल में यह संपन्न हुआ, उसमें इसे एक कठिन चुनौती ही कहा जा सकता है. इसके पहले […]
पुष्पेश पंत
वरिष्ठ स्तंभकार
भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह की पाकिस्तान यात्रा का तटस्थ विश्लेषण करने की जरूरत है. भले ही यह दौरा सार्क शिखर सम्मेलन में शिरकत की रस्म अदायगी के कारण ‘सहज’ हुआ था, जिस माहौल में यह संपन्न हुआ, उसमें इसे एक कठिन चुनौती ही कहा जा सकता है.
इसके पहले जब कभी प्रधानमंत्री मोदी ने उभयपक्षीय रिश्ते सुधारने की पहल की है, निराशा ही हाथ लगी है. भारत-पाक संबंध ऐतिहासिक कारणों से इस कदर जटिल अौर दूषित हैं कि नेताअों की व्यक्तिगत दोस्ती भी इसका कायाकल्प नहीं कर सकती. पाकिस्तान अौर चीन तथा पाकिस्तान अौर अमेरिका के सामरिक संबंध आधी सदी से अधिक समय से आत्मीय हैं अौर इस तिकोनी धुरी का मकसद दक्षिण एशिया में भारत का कद बौना करना ही रहा है. अतः मोदी ही राजनयिक असफलता के लिए जिम्मेवार हैं, यह सोचना गलत है.
दूसरी बात यह है कि भारत-पाक रिश्तों को विदेश तथा रक्षा मंत्रालय अपना विशेष क्षेत्राधिकार (एकाधिकार?) समझते हैं. बहुत कम आंतरिक सुरक्षा के लिए जिम्मेवार गृह मंत्रालय को सक्रिय होने का मौका मिलता है. राजनाथ सिंह स्वभाव से मितभाषी अौर विनयशील हैं.
उनके आलोचक भी यह नहीं कह सकते कि वे स्वदेशी मतदाता को या अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ध्यान में रख वक्तव्य देते हैं. यह रेखांकित करना जरूरी है कि गृह मंत्री को भारत के कठोर रुख के लिए पाकिस्तान भेजने का निर्णय प्रधानमंत्री ने ही लिया होगा. इस बारे में विपक्ष भी एक राय है कि राजनाथ सिंह ने खरी-खरी सुना कर ठीक किया है. पाकिस्तान के साथ सुलह का समूहगायन करनेवाले अमन के शाश्वत पुजारी फिलहाल मौनव्रत धारण किये हुए हैं.
पाकिस्तानी मेजबान गृह मंत्री ने अपने भाषण में जिस अभद्र शैली को अपनाया, वह राजनयिक शिष्टाचार के अनुकूल नहीं थी. सम्मेलन के पहले भी ‘कश्मीर’ के बारे में जो बयानबाजी शरीफ ने की थी, उसके बाद यह सोचना नामुमकिन था कि सार्क के इस जलसे में आतंकवाद को छोड़ किसी दूसरे विषय पर भारत संवाद में गंभीरता से भाग लेगा.
भारतीय गृह मंत्री ने अौपचारिक दावतों में भाग लेने से सविनय इनकार कर दिया अौर कुछ बातें मुंहफट ढंग से कहीं- आतंकवादियों का महिमामंडन मुक्ति सैनिकों या शहीदों के रूप में नहीं किया जाना चाहिए अौर दहशतगर्दों को पनाह देनेवाला कोई भी देश आतंकवाद की जिम्मेवारी से बच नहीं सकता. उन्होंने साफ कहा कि आज दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद ही है. ढाका में हुए हमले के तत्काल बाद फ्रांस अौर तुर्की उसी खूंखार ‘जिहादी’ दहशतगर्दी का निशाना बने हैं, जिसने भारत को लहूलुहान किया है.
अमेरिका को झक मार कर पाकिस्तान को दी जानेवाली 300 मिलियन डॉलर की सहायता रद्द करनी पड़ी है. वहां यह राष्ट्रपति चुनाव का वर्ष है अौर डोनाल्ड ट्रंप के भड़काऊ भाषणों ने राजनीतिक पारा इतना चढ़ा दिया है िह कम-से-कम कुछ समय के लिए पाकिस्तानी सीनाजोरी का खुल्लम-खुल्ला समर्थन असंभव हो गया है. अोबामा का डेमोक्रेटिक प्रशासन अपनी छवि नरम/कमजोर नहीं दिखला सकते. दाऊद इब्राहिम हो या हाफिज सईद, पाकिस्तान इन्हें पनाह ही नहीं देता, अकसर भारत को खिजाने के लिए इनकी नुमाइश भी करता है.
पाकिस्तानी मीडिया ने भले ही राजनाथ सिंह के बयानों को जगह न दी हो, लेकिन उनका ‘लठमार संदेश’ अनसुना नहीं रह सकता.
जम्मू-कश्मीर हो या पंजाब, राजस्थान हो या गुजरात पाकिस्तान के साथ सटी सीमा वाले राज्यों में घुसपैठ अौर मादक पदार्थों की तस्करी रोकने की, शांति अौर सुव्यवस्था बनाये रखने में राज्य सरकारों की मदद करने की प्राथमिक जिम्मेवारी गृह मंत्रालय की ही है. सेना से पहले हर खतरे से सीमा सुरक्षा बल अौर केंद्रीय आरक्षी पुलिस के जवान ही निबटते हैं.
राज्यों में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने के लिए भड़काये जानेवाले प्रायोजित दंगों की रोकथाम का काम भी गृह मंत्रालय का ही है. यह संतोष का विषय है कि साउथ ब्लॉक अौर रक्षा मंत्रालय के साथ अब बैरी के साथ राजनय में गृह मंत्रालय को भी मोर्चे पर उतारने की रणनीति अपनायी जा रही है.
यह जगजाहिर है कि आतंकवाद, संगठित अपराध को अपने ‘राष्ट्रहित’ के लिए जायज हथियारों की तरह लगातार इस्तेमाल करनेवाले राज्यों को कटघरे में खड़ा कर दंडित करने का वक्त आ चुका है. मानवाधिकारों के कवच का इस्तेमाल बहुत हो चुका. कश्मीर घाटी में असंतोष अौर आक्रोश के कारण अनेक हैं.
केंद्र व राज्य सरकार को उसकी जिम्मेवारी-जवाबदेही से बरी नहीं किया जा सकता, लेकिन अलगाववादी हिंसा को भड़काने की पाकिस्तानी साजिश को सुलह के नाम पर लगातार नजरअंदाज करना आत्मघातक साबित होता रहा है. यह आशा की जानी चाहिए कि गृह मंत्री की पाकिस्तान यात्रा के बाद इस बारे में कोई भ्रम बचा नहीं रहेगा.
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