कश्मीर में तनावपूर्ण हालात का सियासी फायदा उठाने की कोशिश में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भारत से कश्मीर में जनमत संग्रह कराने की मांग की है. घाटी समेत पूरे भारत में अस्थिरता और अशांति फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका जगजाहिर है. आतंकी गिरोहों और गतिविधियों को शह देने की उसकी नीति दक्षिण एशिया में हिंसा का वातावरण बनाने में जिम्मेवार रही है. उसकी विध्वंसक हरकतों के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी कई बार आलोचना कर चुका है. बीते दशकों के घटनाक्रम इस तथ्य की ओर साफ संकेत करते हैं कि पाकिस्तान अपनी शरारतों को ढकने के लिए कश्मीर का राग अलापता रहता है.
यदि नवाज सचमुच कश्मीरियों के हितों के प्रति समर्पित हैं, तो सबसे पहले उन्हें जम्मू-कश्मीर के उस हिस्से को छोड़ देना चाहिए, जिस पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है और जो उस रियासत का बड़ा भाग है जिसका भारत में विलय हुआ था. यदि कश्मीरियों के लिए उनके मन में सही मायने में लगाव है, तो वे पाक-अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान के लोगों को स्वतंत्र रूप से आत्म-निर्णय करने का अवसर दें. नवाज शरीफ को यह नहीं भूलना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर की जनता 1977 से अब तक अनेक चुनावों के माध्यम से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भारी संख्या में हिस्सा लेती रही है. एक-दो मौकों को छोड़ दें, तो अधिकतर चुनावों को उनकी निष्पक्षता के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है.
पाकिस्तान को वर्ष 2002 से लेकर 2015 तक के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के विवरण देखना चाहिए. कश्मीर की आग में अपनी स्वार्थ-सिद्धि करने के चक्कर में नवाज शरीफ यह भूल रहे हैं कि पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान में दमन और शोषण के विरुद्ध गंभीर असंतोष है. बलूचिस्तान में कई दशकों से पाकिस्तानी सरकार की नीतियों के विरोध में आंदोलन चल रहा है.
सरकार और सेना द्वारा आतंकवाद के राजनीतिक और कूटनीतिक इस्तेमाल का खामियाजा भी पाकिस्तानी जनता को भुगतना पड़ रहा है. नवाज शरीफ और पाकिस्तान के लिए उचित यही होगा कि वे भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के बजाय अपनी नीतियों पर आत्ममंथन करें तथा अपनी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करें. कश्मीर के नाम पर अपनी जनता को गुमराह कर नवाज शरीफ और उनकी सरकार को कुछ हासिल नहीं होगा.